तुम ने अपने आप को फ़ितनों में डाल दीया

उस रोज़ कहेंगे मुनाफ़िक़(वे लोग जीन की जबान पर कूच ओर दील मे कूच हो) मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें ईमान वालों से (ए नेक बख़तो!) ज़रा हमारा भी इंतेज़ार करो हम भी रोशनी हासिल करलें तुम्हारे नूर से।

(उन्हें) कहा जाएगा लौट जाओ पीछे की तरफ़ और (वहां) नूर तलाश करो। पस(फीर) खड़ी करदी जाएगी उन के और अहल ईमान के दरमयान एक दीवार जिस का एक दरवाज़ा होगा। इस के बातिन(भीतंर) में रहमत और इस के ज़ाहिर की जानिब अज़ाब(क्श्ट) होगा।

मुनाफ़िक़ पूकारेंगे अहल ईमान को क्या हम तुम्हारे साथ ना थे कहेंगे बेशक! लेकिन तुम ने अपने आप को ख़ुद फ़ितनों में डाल दिया और (हमारी तबाही) का इंतेज़ार करते रहे और शक में मुबतला रहे और धोका में डाल दिया तुम्हें झूटी उम्मीदों ने यहां तक कि अल्लाह का फ़रमान आ पहुंचा और धोका दिया तुम्हें अल्लाह के बारे में शैतान (दग़ाबाज़) ने। (सूरत अल हदीद आयत नंबर 13 , 14 )
मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें जो इस दुनिया में अपने आप को बड़े जीरक(होशीयार) और चालाक समझते हैं क़यामत के रोज़ उन की हालत दीदनी(दर्शनीय) होगी। चारों तरफ़ घुप्प(गेहरा) अंधेरा, नजात के सारे रास्ते बंद। इस सरासीमगी(डर) और बेचारगी के आलम में वो अहल ईमान को कहेंगे ज़रा अपनी रोशनी में हमें भी तो चलने दो। ज़रा अपना नूरानी चेहरा हमारी तरफ़ भी तो करो। शायद इस तारीकी से हम रस्तगारी(छूट्कारा) हासिल कर सकें।

उन्हें कहा जाएगा पीछे लौट कर जाओ और वहां से नूर तलाश करो। जब वो पीछे मुड़ेंगे तो उन के दरमयान और अहल ईमान के दरमयान एक दीवार क़ायम करदी जाएगी इस के दरवाज़ों की अंदरूनी जानिब जो जन्नत की तरफ़ होगी वो रहमत वाली होगी और बाहर वाली जानिब जो दोज़ख़ की तरफ़ होगी वो अज़ाब वाली होगी।

जब दीवार चण‌ दी जाए गी तो अहल जन्नत मुनाफ़िक़ों की नज़रों से ओझल(गाईब) हो जाएंगे तो वो ज़ोर ज़ोर से उन्हें पूकारेंगे। ए बंदगान ए ख़ुदा(ईश्वर के पूजारीयो)! ए ग़ुलामान ए मूसतूफा(मूसतफा के चाहने वालो) ! क्या दुनिया में हम तुम्हारे साथ नहीं रहते थे। हम तो आपस में बड़े गहरे दोस्त भी थे। बाहमी रिश्तेदारीयां भी थीं। आज हम से तुम ने यूं मुंह मोड़ लिया जैसे कभी शनासाई(पेह्चान) ही ना थी।

अहल ईमान उन्हें जवाब देंगे बेशक तुम बज़ाहिर हमारे साथ थे लेकिन तुम्हें ख़ूब इलम है कि तुम्हारे बातिन में क्या पिनहां(छूपा) था।

यहां मुनाफ़क़ीन की इन ख़स्लतों(आद्तो) का ज़िक्र होरहा है जो उन की तबाही का बाइस(कारण) बनी। हमें भी चाहीए कि इन कलिमात में संजीदगी से ग़ौर करें और फिर अपना जायज़ा लें कि कहीं मुनाफ़क़ीन की कोई ख़सलत हम में तो नहीं पाई जाती।

पहली बात जो मुनाफ़क़ीन को कही जाएगी, वो ये है فتنتم انفسکم) । अल्लामा राग़िब इस का माना बयान करते हैं :اوقعتموھا فی بلیۃ وعذاب तूम‌ ने अपने नफ़सों को इबतेला और अज़ाब में फेंक दिया।
साहिब लीसान उलअरब कहते हैं استعملتموھا فی الفتنۃ तुम ने अपने आप को फ़ित्ना-ओ-फ़साद भड़काने में इस्तेमाल किया। मुनाफ़क़ीन दुनिया में इसी तरह ज़िंदगी बसर करते रहे।

इस्लाम पर जब भी कोई कठिन घड़ी आई तो उन्हों ने इस्लाम की मुश्किलात में इज़ाफ़ा करने में अपने सारे वसाइल सर्फ(खर्च) करदिए।

दूसरी बात जो उन्हें कही जाएगी वो ये है :यानी कुफ्र-ओ-इस्लाम की कशमकश जब उरूज पर थी, तुम्हारा फ़र्ज़ था कि तुम नताइज से बेपर्वा होकर अपनी क़िस्मत इस्लाम के साथ वाबस्ता कर देते। तौहीद-ओ-रिसालत की जो शहादत तुम ने ज़बान से दी थी तुम पर लाज़िम था कि अपने अमल से इस को सच्चा कर दिखाते, लेकिन तुम इंतेज़ार करते रहे कि देखें ऊंट किस करवट बैठता है। पाँसा किस के हक़ में पलटता है। इशक़ और मस्लीहतबीनी, ईमान और मौका परस्ती दो मुतज़ाद चीज़ें हैं।

तीसरा नुक़्स जिस में वो मुलव्वस(लीथ्डे हूएं ) थे वे ब्यान किया की सारी उम्र तुम शक में मुबतला(फंसे) रहे। इस्लाम क़बूल करने से जो यक़ीन(वीश्वास) और इज़आन(भरोसा) दिल में पैदा होजाता है इस से तुम महरूम थे। क्या मुहम्मद (स.व.) वाक़ई (हक़ीक़त में)अल्लाह के रसूल हैं, क्या क़ुरआन वाक़ई अल्लाह का कलाम है, क्या क़ुरआन की ये बात सच्ची है कि अल्लाह की राह में जो लोग जान दे देते हैं वो सर जुदा होने के बावजूद मुर्दा नहीं बल्कि ज़िंदा-ए-जावेद हैं इस्लाम की सरबुलन्दी के लिए माल ख़र्च करने से इंसान मुफ़लिस-ओ-नादार नहीं होता बल्कि तवंगर-ओ-ग़नी बन जाता है।
ये सारी बातें थीं जिन्हें तुम शक की नज़र से देखते रहे और इसी शक के बाइस तुम इस अज़ीमत से उम्र भर महरूम रहे जो बंदा मोमिन की ख़ुसूसीयत है। आख़िर में उन्हें बताया कि झूटी उम्मीदों और खोखली तवक़्क़ुआत ने तुम्हें हमेशा धोका में रखा। शैतान भी तुम्हें गुनाहों पर उकसाता रहा। इस की तिफ़ली (झूटी) तसल्लीयों में तुम यूं मगन रहे कि अपनी इस्लाह का तुम्हें कभी ख़्याल ही ना आया। यहां तक कि मौत ने तुम्हारा रिश्ता-ए-हयात काट कर रख दिया।