तुम संस्था में पढ़ते हो तुम्हारे लिखने से ज्यादा बदनामी होती है—आई.आई.एम.सी.

शम्स तबरेज़, ब्यूरो रिपोर्ट।
लखनऊ: केन्द्र में जब से एनडीए की सरकार बनी तब से अभिव्यक्ति की स्वतत्रता को आहत करने के मामलों में इजाफा हुआ। चाहे मामला जेएनयू का हो रोहित वेमूला का! विचारो की अभिव्यक्ति का हनन होता आ रहा है।
अब पत्रकारिता संस्थानों में अभिव्यक्ति पर आफत हा चुकी है। देश के अग्रणी पत्रकारिता संस्थानों में एक भारतीय जनसंचार संस्थान यानी आई.आई.एम.सी. नई दिल्ली में एक शिक्षक को किसी विवाद में निकाल दिया गया। आई.आई.एम.सी. में अध्ययन कर रहे पत्रकारिता के छात्र रोहिन वर्मा ने जब इसकी न्यूज कवर की तो रोहिन को संस्था का कोपभाजन बनना पड़ा, रोहिन को संस्था से सस्पेंट कर दिया गया। 15 दिन बाद भी उसका सस्पेंशन जारी है। मंगलवार को सियासत से बात करते हुए रोहिन वर्मा ने कहा कि “एक टीचर को संस्था से निकाले जाने की मैंने रिपाोर्टिग की थी जो न्यूज लांड्रिंग समेत लगभग 10 अखबारों ने प्रकाशित किया है जिसके बाद से मेरा सस्पेंशन जारी है। मेरी रिपोर्टिंग से सस्था को लगा कि उनकी बदनामी हुई। न्यूज़ लांड्रिंग को भी कुछ नहीं कहा गया। सीधे ही बिना मुंझे नोटिस दिए सस्पेंट कर दिया। जांच कमेटी का कहना है दूसरे लिखते हैं तो कम बदनामी होती है, आप संस्था में पढ़ते हो इसलिए आपके लिखने से संस्था की ज़्यादा बदनामी होती है।” रोहिन ने वीसी पर उनको ट्रोल करने का भी संदेह ज़ाहिर किया है। रोहिन ने सियासत से बात करते हुए ये भी बताया कि “रिपोर्टिंग के मामले में उनसे उनका पक्ष नहीं सुना गया।” रोहिन वर्मा बिहार के गया ज़िले के रहने वाले है और दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में ग्रेजुएट हैं।
अब सवाल ये है कि जब देश के पत्रकारिता संस्थान ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहार करने लगे है तो ये पत्रकारिता संस्थान किस प्रकार के पत्रकार जन्म देना चाहते हैं क्या उनको सरकारी मुखपत्र बनना है या वो सत्ताधारी दलों की चाटूकारिता को बढ़ावा देने के लिए पत्रकार रूपी चाटूकार को जन्म देना चाहते हैं।