“तू पास नहीं और पास भी है,” साहिर की ग़ज़ल

मायूस तो हूं वायदे से तेरे, कुछ आस नहीं कुछ आस भी है.
मैं अपने ख्यालों के सदके, तू पास नहीं और पास भी है.

दिल ने तो खुशी माँगी थी मगर, जो तूने दिया अच्छा ही दिया.
जिस ग़म को तअल्लुक हो तुझसे, वह रास नहीं और रास भी है.

पलकों पे लरजते अश्कों में तसवीर झलकती है तेरी.
दीदार की प्यासी आँखों को, अब प्यास नहीं और प्यास भी है.

 

(साहिर लुधियानवी)