अब जबकि तेलंगाना रियासत की तशकील यक़ीनी मराहिल में पहुंच चुकी है लिहाज़ा इलाक़ा तेलंगाना की सियासी जमातों पर ये ज़िम्मेदारी आइद हो जाती है कि वो तेलंगाना तहरीक के दौरान तेलंगाना के मुसलमानों के साथ किए हुए वादों पर अमल आवरी को अपनी तवज्जा का मर्कज़ बनाएं। साबिक़ प्रिंसिपल आर्ट्स कॉलेज डीन उस्मानिया यूनीवर्सिटी व हेड प्रोफ़ेसर मौलाना आज़ाद नैशनल उर्दू यूनीवर्सिटी प्रोफ़ेसर पी एल विशवेश्वर राव ने ये बात कही।
उन्हों ने कहा कि मुत्तहदा रियासत आंध्र प्रदेश के क़ियाम का सब से ख़राब असर तेलंगाना के मुसलमानों पर पड़ा उन्हों ने मज़ीद कहा कि 1940 से लेकर 1960 तक मुसलमान रियासत के तमाम सरकारी शोबों में मुलाज़िम थे इस के बाद मुनज़्ज़म अंदाज़ में मुसलमानों को सरकारी मुलाज़मतों से महरूम करने का काम किया गया जिस के सबब आज एक फ़ीसद से भी कम सरकारी मुलाज़मतों में मुसलमानों का तनासुब है।
प्रोफ़ेसर विशवेश्वर राव ने कहा कि हिंदुस्तान भर में मुसलमानों की मआशी पसमांदगी की हक़ीक़ी मंज़रकशी जस्टिस राजिंदर सिंह सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने की है और कुछ इस तरह का हाल भी रियासत आंध्र प्रदेश के मुसलमानों का है जो पसमांदगी का शिकार दलित और पिछड़े लोगों से भी बुरे हाल में हैं।
उन्हों ने कहा कि इस्तिहसाल और इस्तेमाल की सियासत से बालातर हो कर तेलंगाना की सियासी जमातों पर ये ज़िम्मेदारी आइद होती है कि वो तेलंगाना के तमाम तबक़ात की मुसावी तरक़्क़ी और आबादी के तनासुब से मुसलमानों को बारह फ़ीसद तहफ़्फुज़ात फ़राहम किए जाएं।