थाने में रात गुजारने पर मजबूर मुसलमान

तकरीबन आधी रात है लेकिन आसानी से नींद नहीं आ रही। 150 मुसलमान वल्लभगढ़ पुलिस स्टेशन पर हैं। इनके घर जला दिए गए हैं और पड़ोसी दुश्मन बन गए हैं। ये फिलहाल पुलिस स्टेशन से कहीं और नहीं जाना चाहते। अटाली गांव के लोगों के लिए पुलिस स्टेशन ही महज एक ठिकाना है। इस गांव में फिर्कावारना तशद्दुद के बाद तनाव के हालात है।

इस हफ्ते पीर की शाम अटाली में तशद्दुद भड़क उठी थी। एक मस्जिद की तामीर को लेकर 5 साल पुराना झगड़ा है। यह मस्जिद एक मंदिर के करीब है। मस्जिद मे आग लगा दी गई थी। इसके बाद मुसलमानों ने गांव छोड़ दिया। पुलिस स्टेशन पर इनके लिए एक टेंट, चार कूलर, एक कारपेट और दो पोर्टेबल केबिन की सहूलियत दी गई है।

जलायी गई मस्जिद से तीन घर दूर रहने वाले निजाम अली ने कहा, ‘हमलोग के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। हमरे पास कपड़े भी नहीं हैं। इस शहर के लोगों के रहम पर हम जिंदा हैं। गर्मी में बच्चे बगैर खाने के कमजोर पड़ रहे हैं। जब हमने इस बारे में अक्लियती कमीशन के मेम्बर्स से कहा तो उन्होंने कूलर का इंतेज़ाम कराया।’

इंतेज़ामिया इन्हें खाना फराहम करा रही है लेकिन पुलिस स्टेशन पर रुके मुसलमानों का कहना है कि यह काफी नहीं है। ज्यादातर खाना खातिर ख्वाह और लोकल एनजीओ की तरफ से मुहैया कराए जा रहे हैं।

मुमताज ने कहा कि केले, चावल, रोटी और दाल लोगों ने दिए लेकिन बहुत कम थे इसलिए जल्द ही खत्म हो गए। मुमताज अपने पांच साल के बेटे के लिए बाहर से दूध खरीदने गई हैं। मुसलमानों का एक वफद गांव का दौरा कर लौटा है। इन्होंने देखा कि मुस्लिमों के घरों को बिल्कुल तहस-नहस कर दिया गया है।

ये जल्द अपने घर लौटना चाहते हैं लेकिन सभी इस बात को भी मानते हैं कि फिलहाल वापस जाना कोई अच्छा आप्शन नहीं है।

फरीदाबाद के पुलिस कमिश्नर सुभाष यादव ने कहा कि ज्यादातर खानदान डर की वजह से गांव नहीं लौटना चाहते। उन्होंने कहा, ‘ये बुध के रोज़ पुलिस सेक्युरिटी के बीच गांव गए थे लेकिन वहां जाने के बाद देखा कि सब कुछ खत्म हो गया है। घरों में आग लगा दी गई है। फिलहाल ये पुलिस स्टेशन पर हैं और हमलोग कुछ और इंतेज़ाम करने की कोशिश कर रहे हैं।’

पुलिस स्टेशन पर सभी लोग अपना तजुर्बा अपने तरीके बता रहे हैं। ये मोबाइल पर तशद्दुद की तस्वीरें भी दिखा रहे हैं। ट्रांसपोर्ट बिजनस करने वाले फकरुद्दीन हाजी ने कहा, ‘हमारे सारे पैसे लूट लिए गए। सारी किताबें जला दी गईं। कपड़े नहीं बचे हैं। कार भी जला दी गई। अब हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है। ऐसे में हम कहां जाएं?’

इसाक लंबारदार ने बाताया, ‘हमने पुलिस को इत्तेला किया था लेकिन वे नहीं आए। अब तक मुल्ज़िमों की गिरफ्तारी नहीं हुई है और ये हमें लौटने के लिए कह रहे हैं। हमलोग क्या कर सकते हैं? हमलोग पुलिस स्टेशन से फिलहाल कहीं नहीं जाएंगे जब तक पुख्ता सेक्युरिटी का इंतेज़ाम नहीं किया जाता है।’

इसहाक का घर मस्जिद के ठीक सामने था। हमले के वक्त नमाज अदा करने के लिए शाम में लोग यहां जुटे थे।

पुलिस स्टेशन पर ख़्वातीन और बच्चे टेंट में लेटे हुए हैं। ज्यादातर मर्द पेड़ों के नीचे चटाई पर बैठाए गए हैं। दोपहर का वक्त है और एक बज रहा है और पिघला देने वाली धूप निकली हुई है। पुलिस स्टेशन खामोश है। लेकिन डेरा डाले लोगों की तकलीफ इस सन्नाटे को चीर कर रख देता है।