मुजफ्फरनगर में दंगा भड़काने के दो मुल्जिमान संगीत सोम और सुरेश राणा की आगरा में नरेन्द्र मोदी की रैली के डायस पर बीजेपी की जानिब से पगड़ी पहना कर उनकी इज्जत अफजाई की गई। यह दोनों उत्तर प्रदेश असम्बली के मेम्बर हैं और जमानत पर जेल से छूटे हैं। पार्टी ने खुलेआम दंगाइयों की इज्जत अफजाई करके जो गुनाह किया उससे बड़ा गुनाह इसी मीटिंग में कम से कम तीन बार बीजेपी छोड़कर पार्टी में वापस आए साबिक वजीर-ए-आला कल्याण सिंह ने यह तकरीर करते हुए किया कि मुजफ्फरनगर में जो कुछ हुआ वह दंगा नहीं था बल्कि एक्शन का रिएक्शन था।
उन्होंने कहा कि हर एक्शन का रिएक्शन होता है वही रिएक्शन छः दिसम्बर 1992 को अयोध्या में देखने को मिला था। याद रहे कि कल्याण सिंह जब उत्तर प्रदेश में वजीर-ए-आला थे तभी छः दिसम्बर1992 को उनकी हुकूमत की निगरानी में बाबरी मस्जिद शहीद कर दी गई थी। अगर कल्याण सिंह की बात सच मान ली जाए तो 27 अगस्त को मुजफ्फरनगर के कवाल में एक मुश्तईल (उत्तेजित) भीड़ ने सचिन और गौरव नाम के दो जाट नौजवानों को पीट-पीट कर मार डालने की जो हरकत की थी वह भी एक इलेक्शन का रिएक्शन था क्योंकि इन दोनों नौजवानों ने ही पहले उसी जगह पर शहजाद नाम के एक नौजवान को इस लिए पीट-पीटकर मार डाला था कि शहजाद उनकी बहन से छेड़खानी करता था।
कल्याण सिंह के फार्मूले को अगर सही मान लिया जाए तो शहजाद को पीट-पीटकर मार डालने के एक्शन के रिएक्शन में अगर मौके पर इकट्ठा हुई भीड़ ने दो जाट नौजवानों को मार डाला था तो उसके बाद खाप पंचायत कराने की क्या जरूरत थी। वह तो एक एक्शन का रिएक्शन था। संगीत सोम और सुरेश राणा की आगरा में हुई इज्जत अफजाई की बीजेपी की हरकत ने मुजफ्फरनगर के कैम्पों में रह रहे बड़ी तादाद में मुस्लिम नौजवानों के दिलों में एक खतरनाक नफरत पैदा कर दी है। अगर इसमें से कुछ नौजवान बहककर माओवादियों या दहशतगर्दों के साथ मिल जाए तो हैरत नहीं होनी चाहिए।
संगीत सोम और सुरेश राणा को एक बड़ी भीड़ के सामने डायस पर आरएसएस के पुराने स्वंय सेवक कलराज मिश्रा के हाथों पगड़ी पहनाकर उनकी इज्जत अफजाई किए जाने से नाराज कैम्पों में रह रहे मुस्लिम नौजवानों का कहना है कि बीजेपी 2014 में मुल्क की सत्ता/ इक्तेदार पर काबिज होना चाहती है और नरेन्द्र मोदी को मुल्क का अगला वजीर-ए-आजम बनाना चाहती है जो अवामी मीटिंगो में सभी को साथ लेकर चलने की बात करते हैं लेकिन बीजेपी का अस्ल किरदार वही है जिसका मुजाहिरा पार्टी ने 21नवम्बर को आगरा में किया।
इन नौजवानों ने कहा कि अगर बीजेपी मुल्क की वफादार होती तो संगीत सोम और सुरेश राणा की इज्जत अफजाई करने के बजाए पार्टी के सीनियर लीडरान को कैम्पों में आकर हमारी हालत देखनी चाहिए थी और हमारे गांव के चैद्दरियों से बात करके हमें हमारे घरों को वापस जाने का रास्ता साफ करना चाहिए था। अब तो हम लोग विष्णु सहाय कमेटी की रिपोर्ट आने, अदालत से इंसाफ मिलने और उत्तर प्रदेश हुकूमत की मुन्सिफाना कार्रवाइयों का कम से कम एक साल तक इंतजार करेंगे उसके बाद हमें अखलाकी (नैतिक) और कानूनी अख्तियार/ इख्तेयार होगा कि हम ठीक उसी तरह अपनी मर्जी मुताबिक रास्ता अख्तियार/ इख्तेयार कर लें जिस तरह के रास्ते पर चलते हुए बीजेपी दंगाई मेम्बरान असम्बली की इज्जत अफजाई कर रही है।
मुजफ्फरनगर में आरएसएस और बीजेपी की मदद से दंगाइयों के हौसले अभी भी इतने बुलंद है कि 19 नवम्बर को पुलिस ने पुरबालियान में एक मुसलमान को मार-पीट कर उनके घर जलाने वाले मुल्जिमान में शामिल आशू नाम के एक मुल्जिम को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उसने शोर मचा दिया गांव वालो ने इकट्ठे होकर आशू को जबरदस्ती छुड़वा ही लिया पुलिस जीप में तोड़ फोड़ की और पुलिस वालों को दौड़ा लिया, शाम को आईजी जोन आशुतोष पाण्डे खैर सगाली मीटिंग में पहुंचे तो गांव वालो ने उल्टे पुलिस वालों की उनसे शिकायत की। इसके बावजूद आशुतोष पाण्डेय गांव वालों से यह नहीं कह सके कि मुल्जिमान को पकड़ने में एतराज क्यों है।
मुजफ्फरनगर में कितने मुसलमान गांव में जाटो के जुल्म से परेशान होकर अपने घर छोड़ने और कैम्पों में रहने को मजबूर हुए अभी तक यह तय नहीं हो पाया है। उत्तर प्रदेश के सीनियर वजीर शिवपाल यादव की कयादत में वजीरों की जो एक कमेटी बनी थी उसने अपनी रिपोर्ट में एक लाख सात हजार लोगों को गांव छोड़कर कैम्पों में जाने की बात कही है। लेकिन 13 नवम्बर को सहारनपुर के कमिश्नर ने सुप्रीम कोर्ट में जो स्टेट्स रिपोर्ट पेश की उसमें कहा गया कि कुल 50 हजार नौ सौ पच्चानवे (50995) मुसलमान ही अपने घर छोड़कर कैम्पों में पहुंचे थे।
जिनमें चालीस हजार अपने गांव वापस जा चुके हैं इस तरह तकरीबन दस हजार लोग ही अब कैम्पों में बचे हैं। लेकिन कैम्पों मे राहत और इम्दाद का काम करने वाले और अपने घर छोड़कर कैम्पों में रहने वालों का कहना है कि शिवपाल यादव वाली वजीरों की कमेटी और सहारनपुर के कमिश्नर दोनो ही पनाहगजीनों (शरणार्थियों) की तादाद सही नहीं बता रहे हैं। जो तादाद शिवपाल कमेटी ने बताई है उसी में 75000 लोगों की तादाद कम बताई गई है।
कैम्पों में मुसलमानों की कानूनी मदद करने वाले असद हयात एडवोकेट के मुताबिक अपने घर छोड़कर कैम्पों में पनाह लिए मुसलमानों की तादाद किसी भी कीमत पर एक लाख अस्सी हजार से ज्यादा ही थी। उनमें से एक चैथाई लोग ही अपने घरों को वापस गए हैं।
मुजफ्फरनगर में दंगे का शिकार हुए मुसलमानों को 21 नवम्बर को उस वक्त झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश हुकूमत को यह हिदायत दी कि हुकूमत ने मुजफ्फरनगर दंगो से मुतास्सिर 1800 मुसलमानों को पांच-पांच लाख रूपए का मुआवजा देने का जो आर्डर अक्तूबर के आखिर में हुकूमत ने किया था वह किस बुनियाद पर किया था। (हिसाम सिद्दीकी)
——-बशुक्रिया: जदीद मरकज़