दफ़न होती तहज़ीब

नई दिल्ली, सदफ खान। दिल्ली के ओखला, बटला हाउस क्षेत्र में छेड़छाड़, उत्पीड़न, भद्दी टिप्पड़ियों की कही कोई सीमा ही नहीं है। जामिया मिल्लिया जैसी तहज़ीबी और तालीमी इदार होने के कारण ऐसा समझा जाता है कि जामिया नगर का इलाका महिलाओं के लिए काफी सुरक्षित है लेकिन वास्तविकता इससे उल्ट है। बटला हाउस में रहने वाली लड़कियो ने अब रोज़ होने वाली इन छेड़छाडों, भद्दी टिप्पड़ियाँ, गाली गलोच को अपने जीवन का एक हिस्सा मान लिया है और इसको एक आम बात बोल कर बेफिक्री से जीवन व्यतीत करने को मजबूर है।

बटला हाउस के ज़ाकिर नगर इलाके में रहने वाली 25 वर्षीय महिला हिना ने बताया की यह छेड़छाड़, गालियां, टिप्पड़ियाँ, लड़को का घूर कर देखना सब आम बात है। यह सारी घटनाएं बटला हाउस की लगभग सभी लड़कियो के साथ घटती है लेकिन इस पर कोई डर से आवाज़ नहीं उठा पाता है। वहीँ बटला हाउस में चाय की दूकान चला रही 20 वर्षीय नाज़िया बताती है की बटला हाउस लड़कियो के लिए बिलकुल सुरक्षित स्थान नहीं है।

वह बताती है की अभी तक उनके साथ तो छेड़छाड़ की कोई घटना नहीं हुई है लेकिन उन्ही के सामने हज़ारो लड़कियो के साथ दिनभर यह काम होता है। वह बताती है की उनकी दूकान पर आने वाले युवा ग्राहक लड़कियो से सम्बन्धी आपत्तिजनक बाते करते है। आती जाती लड़कियो को परेशान करने से भी बाज़ नहीं आते हैं। ओखला की सामाजिक कार्यकर्ता शबीना खान का कहना है की इस तरह के गन्दे अपराध झुग्गी झोपड़ियो में रहने वाली महिलाओं के साथ ज़्यादा होते हैं। शबीना का कहना है की महिलाओं सम्बन्धी इस तरह के अपराधों का बड़ा कारण बटला हाउस में नशा है। वे बताती है की बटला हाउस के लगभग सभी युवा नशे के आदि है वे नशा कर के आते है फिर लड़कियो के साथ बदतमीज़ी से पेश आते हैं। शबीना खान ने यह भी बताया की हाल ही में बटला हाउस में एक स्कुल जाने वाली 18 वर्षीय युवती के साथ समूह बलात्कार का मामला भी सामना आया था जिसमे युवती चार महीने की गर्भवती भी थी लेकिन बलात्कार में कुछ अमीर लोगो का हाथ होने के कारण उस मुद्दे को दबा दिया गया।

बटला हाउस निवासी माहेरा इमाम बताती है की यह कुछ लुच्चे लफंगे लड़के स्कुल की छुट्टी होने के समय स्कुल के बाहर आकर खड़े हो जाते है और लड़कियो का पीछा करने के साथ साथ उनके साथ छेड़छाड़ भी करते हैं। बटला हाउस में रहने वाली जामिया सोशल वर्क की छात्रा आरफ़ा अनीस का कहना है की पितृसत्ता समाज की वजह से यहा इस इलाके में ऐसी सोच बनी हुई या यु कहे घर वालो द्वारा बना दी गयी है की लड़कियां आपसे कमज़ोर है। इन सरेआम हो रही छेड़छाड़ की वजह आरफ़ा लड़कियो का बाहर ना निकलना मानती है। वे कहती है की अगर दिन ढले सिर्फ कुछ लडकिया, अपवाद ही घर से बाहर निकलेंगी तो इस किस्म की बदतमीज़ी होना लाज़मी है।

आरफ़ा कहती है की ऐसे घटनाओ के पीछे मानसिकता एक बड़ा कारण है। जब तक लोगो की मानसिकता खुद नहीं बदलेगी तब तक कुछ नहीं किया जा सकता। आरफ़ा बताती है की ओखला में काफी बलात्कार के केस भी सामने आ चुके है। बटला हाउस में पति द्वारा किए जा रहे मानसिक एवं यौन उत्पीड़न जैसे मुद्दे भी आम बात है। एमआईएम की दिल्ली महिला समूह की इंचार्ज रिफत जमाल का कहना है की आए दिन महिलाओं के साथ उत्पीड़न के मुद्दे सामने आते रहते हैं लेकिन महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी ना होने के कारण वे इस के विरोध में आवाज़ नहीं उठा पाती हैं।

उनका कहना है कि बटला हॉउस जैसे इलाकों में शिक्षा की बेहद कमी है और शिक्षा ना होना ही महिला सम्बन्धी अपराधों का मुख्य कारण है। इस तरह के महिला सम्बन्धी संगीन आरोपों पर चुप्पी साधे हुए विभिन्न एनजीओ एवं कार्यकर्ताओं के बारे में आरफ़ा बताती है की बटला हाउस में लगभग हज़ारों एनजीओ हर एक गली मोहल्ले में खुली हुई है लेकिन सिर्फ कागज़ों पर उनके द्ववारा वहा कोई काम नहीं किया जाता है। वहीं शिखर एनजीओ जो की बटला हाउस की काफी मशहूर एनजीओ है वो लड़कियों की शिक्षा पर तो काम कर रही है लेकिन सुरक्षा समबन्धित मुद्दों पर उन्होंने अभी तक कोई क़दम नहीं उठाया है।

ओखला, बटला हाउस में दिन पे दिन बढ़ते अपराधों पर अभी तक सामजिक कार्यकर्ताओं, एनजीओ, धार्मिक संगठनो और राजनेताओं की चुप्पी नहीं टूट पायी है। आश्चर्य की बात यह है की ऐसे संगीन मुद्दे पर कोई काम करने या बोलने को तैयार नहीं है।