दफ़्तर बलदिया सरदार महल में दरख़्त पर हिंदू देवी की मूर्ती

हैदराबाद 10 फ़रवरी सरकारी दफ़ातिर और इदारों में मज़हबी ढाँचों के ख़िलाफ़ हमारे मुल्क की अदालत अज़मा यानी सुप्रीम कोर्ट ने वाज़ेह हिदायात जारी किए थे, लेकिन अफ़सोस के इन अदालती हिदायात के बावजूद शहर में कोई ऐसा सरकारी दफ़्तर या इदारा नहीं जहां मज़हबी ढांचा ना हों या किसी दरख़्त पत्थर या दीवारों पर देवी दीवताओं की तसावीर रख कर उन पर फूल मालाएं नहीं डाली जा रही हो।

ऐसा ही कुछ हाल तारीख़ी चारमीनार के बिलकुल क़रीब सरदार महल में हो रहा है। पुराना शहर के इस दफ़्तर बलदिया को आने जाने वाले फ़िक्रमंद शहरीयों ने सियासत को बताया कि दफ़्तर के अहाता में वाक़े क़दीम हौज़ के सामने मौजूद दरख़्त पर मुख़्तलिफ़ रंग लगाते हुए वहां एक देवी की तस्वीर रख दी गई है और ऐन मुम्किन है कि दरख़्त पर टांकी गई ये तस्वीर और ज़ाफ़रानी और दीगर रंग मुस्तक़बिल में एक नया तनाज़ा पैदा करने की वजह बन सकते हैं।

फ़िक्रमंद शहरीयों का कहना है कि चारमीनार से मुत्तसिल मंदिर ने जिस तरह तनाज़ा पैदा कर दिया है और अमन और अमान का मसअला खड़ा किया है उसी तरह सरदार महल में दरख़्त पर लटकाई गई देवी की तस्वीर और लगाए गए रंग मुस्तक़बिल में हालात बिगाड़ने का बाइस बन सकते हैं।

अफ़सोस तो इस बात पर है कि कमिशनर बलदिया और दीगर आला ओहदेदारों के इलावा कौंसिलर्स अक्सर और बेशतर इस दफ़्तर में आया करते हैं लेकिन उन की नज़रों में ये दरख़्त नहीं आता आख़िर उस की वजह क्या है।

उन की बीनाई कमज़ोर है या फिर वो मुस्तक़बिल में इस दरख़्त को भी एक मज़हबी ढांचा बनते हुए देखना चाहते हैं? ज़रूरत इस बात की है कि मेयर बलदिया माजिद हुसैन और आला बलदी ओहदेदार इस जानिब तवज्जा दें।

अवाम का ख़्याल है कि मंदिरों की तामीर पर किसी को एतराज़ नहीं होना चाहीए लेकिन इस के लिए बाज़ाबता नज़ाआत से पाक जायज़ आराज़ीयात पर तामीर होनी चाहीए।
जगह मिलते ही पत्थर रख कुछ रंग डाल देना और फिर उसे मज़हबी ढांचा की शक्ल देना ख़ुद हिंदू मज़हब उस की तालीम नहीं देता। abuaimalazad@gmail.com