दहशतगर्दी के इल्ज़ाम से बरी मुस्लिम नौजवानों को मुआवजा क्यों नहीं

मौसम के आने और जाने का वक़्त ताईन होता है लेकिन एक ऐसा मौसम भी है जो आ गया तो गुजरने का नाम नहीं लेता है और वो मौसम है पूरे मुल्क में बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को गिरफ़्तार करने का। लेकिन हैरत इस बात पर है के इस पर बवाल तो खूब मचाया जाता है लेकिन इस पर लगाम नहीं लग रहा है। ऑल इंडिया माइनॉरिटी वेल्फेयर सोसाइटी के क़ौमी जेरनल सेक्रेटरी बाबर खान और मुक़ामी समानी खिदमतकार कमर सुल्ताना ने समाज की बेहसी और हुकुमतों की जनबरदारी पर अपने राज़ व अफसोश का इज़हार करते हुये कहा के अमन पसंद आवाम की खामोशी और हुकूमतों के इंसाफ का दोहरा मेयार मुल्क को इंतेशार की तरफ ले जाएगा।
तमाम बुनयादी कवानीन को ब्लाए ताक़ रख कर शक का पेंच लगा कर मुस्लिम नौजवानों को गिरफ्तार किया जाता है।

उनके मोबाइल से उनके दोस्तों का नंबर ले कर उन्हें दहशतगर्द का साथी करार देकर गिरफ्तार कर लिए जाता है। उन्होने कहा के प्रोफेससर जिलानी को इस लिए अदालत उम्र क़ैद या फांसी की सजा सुनाती है (भले ही ऊंची अदालत उन्हे बारी कर देती है) के उनके मोबाइल में अफजल गुरु का फोन नंबर महफूज होता है। लेकिन जब एलके आडवाणी असीमानन्द और प्रज्ञा जैसे दहशतगर्दों से जेल में जाकर मुलाक़ात करते हैं और वजीरे आजम से मिलकर उनकी रिहाई की सिफ़ारिश करते हैं तो दहशतगर्दों का साथी करार नहीं दिया जा सकता ये दोहरा मेयार नहीं तो और क्या है।

उन्होने कहा के देहली के तिहाड़ जेल में एक बेगुनाह मुस्लिम नौजवान को पूरे 14 साल के बाद अदालत बाइज्ज़त बारी करती है जिससे इसके और उसके कुनबा की पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाती है। ऐसे मुतासीर पुलिस वालों को इसकी सजा क्यों नहीं दी जाती। मासूम बेकसूरवारों को झुठे मुक़दमात में गिरफ्तार करने, अदालत को गुमराह करने की मूकदमात क्यों नहीं चलाये जाते। उन्होने कहा के हादसा में मरने वालों को अदालत लाखों रुपए का मुआवजा दिलाती है लेकिन झूठे दहशतगर्दी के इल्ज़ाम में बरसों से क़ैद और बंदी की नौबत झेलने के बाद बाइज्ज़त बरी होने वाले ज़िंदा लाशों को मूआवज़ा क्यों नहीं।

बाबर खान और कमर सुल्ताना ने कहा के रांची के मंज़र इमाम और तबिश पटना बम धमाके में गिरफ्तार मुस्लिम नौजवानों का अबतक मजिस्ट्रेट के सामने पेश करके बयान नहीं लिया जाना पूरे मामले को मशकूक बनाता है।