अल्लाह ताला ने क़ुरआन-ए-करीम में अक्ल हलाल(पाक खोराक) और सिदक़ मक़ाल(सच्ची बातों) की तालीम दी, और नारवा(अवीहीत) तरीक़ा से दौलत हासिल करने और हराम माल खाने से मना फ़रमाया है। दोर-ए-हाज़िर में लोग साईंस-ओ-टैक्नालोजी और असरी उलूम के लिहाज़ से तरक़्क़ी तो कर रहे हैं लेकिन तहज़ीब-ओ-तमद्दुन, अख़लाक़-ओ-किरदार के लिहाज़ से वो ज़वाल-ओ-इन्हितात का शिकार हैं।
मुआशरा(नागरीक्ता) को तबाह करनेवाली एक फ़र्सूदा रस्म(बेकार परंपरा) जहेज़ है जो हमारे समाज के लिए एक नासूर बन चुकी है। मुआशरा को इस क़बीह रस्म से पाक करना अशद ज़रूरी(अवश्यक) है। जहेज़ का मुतालिबा करना मज़हबी-ओ-समाजी हर लिहाज़ से बुरा है, जहां-जहां ये मकरूह रस्म है वहां लोग मुश्किलात से दो-चार हैं। इन हक़ायक़ का इज़हार मौलाना मुफ़्ती हाफ़िज़ सैयद ज़िया उद्दीन नक़्शबंदी शेख़ उल्फीक़ा जामिआ निज़ामीया-ओ-बानी अबुलहसनात इस्लामिक रिसर्च सैंटर ने AHIRC के ज़ेर-ए-एहतिमाम मस्जिद अबुलहसनात, फूलबाग जहांनुमा हैदराबाद में मुनाक़िदा हफ़तावारी तोसिई लकचर के दौरान किया।
उन्हों ने कहा कि निकाह मनूष्य की बढोतरी का ज़रीया है, निकाह की बदौलत इज़्ज़त-ओ-आबरू का तहफ़्फ़ुज़(हिफाजत) होता है, निकाह को बेजा रूसूम से पाक किया जाये और सुन्नत के मुताबिक़ अंजाम दिया जाये। उन्हों ने कहा कि तारीख़ इस्लाम में किसी सहाबी से मुताल्लिक़ ये नहीं मिलता कि उन्हों ने जहेज़ का मुतालिबा किया हो।
दरअसल(वास्तव में) ये दीगर मज़ाहिब की देन है जो मुस्लिम मुआशरा को तबाह कर रही है। दीगर मज़ाहिब(धर्मों) में चूँकि बाप के मरने के बाद बेटी को विरासत नहीं मिलती इस लिए बाप, बेटी की शादी के मौक़ा पर उसे भरपूर तरीक़ा से जहेज़ देता है और बाप के मरने के बाद लड़की, माले मत्रूका(छोडे हूएं माल) मैं हिस्सादार नहीं क़रार पाती। लेकिन मजहब ए इस्लाम ने औरत को विरासत का हक़ दिया है।
मुफ़्ती साहब ने कहा कि किसी शख़्स के लिए ये जायज़ नहीं कि वो बीला ज़रूरत शदीदा किसी के सामने अपना हाथ फैलाए। हुज़ूर अकरम स.व. ने इरशाद फ़रमाया मालदार और सलीमउलाजा शख़्स के लिए माँगना हलाल नहीं है सिवाए ख़ाक नशीन तंगदस्त के या शदीद हाजतमंद के और जो शख़्स लोगों से माल में इज़ाफ़ा के लिए सवाल करे तो ये ( सवाल करना ) इस के लिए बरोज़ क़ियामत इस के चेहरे पर खरोचे और ख़राश की सूरत में होगा, और दोज़ख़ के अंगारे की शक्ल में नमूदार होगा जिसे वो खाएगा, जिस का जी चाहे वो अपने लिए ये अज़ाब कम करे या बढ़ाए। ( तिरमिज़ी, हदीस नंबर 590)।
फुक़हा-ए-किराम ने सराहत की है कि शादी के मौक़ा पर लड़की वालों का लड़के से माल का मुतालिबा करना दरुस्त नहीं है। जो रिश्वत के हुक्म में आता है। इसी तरह लड़के वालों का लड़की वालों से जहेज़ का मुतालिबा करना भी नाजायज़-ओ-हराम है। उन्हों ने कहा कि अगर नौजवान तैयार होजाएं कि वो हरगिज़ जहेज़ का मुतालिबा नहीं करेंगे तो क़रीब है कि समाज से जहेज़ की लानत दफ़ा होजाएगी, और एक सालिह मुआशरा क़ायम रहेगा।सलामओदूवा पर महफ़िल का इख़तेताम अमल में आया। मौलाना हाफ़िज़ अहमद ग़ौरी उस्ताज़ जामिआ निज़ामीया ने निज़ामत के फ़राइज़ अंजाम दिए