दहेज की मांग‌

ज़िंदगी में हर शख़्स को चाहे अमीर हो या ग़रीब, बेशुमार इम्तेहानों और क़दम क़दम पर आज़माईशों से गुज़रना पड़ता है। माल्दारी और गरीबी भी अल्लाह ताला की जानिब से एक आज्माईश (इम्तेहान ) है, इस आज्माईश में जो लोग पूरे उतरेंगे, वही आख़िरत में काम्याब क़रार पाएंगे और जो इन इम्तेहानों और आज्माईशों से फ़रार इख्तेयार करेंगे, वो बिलाशुबा नाकाम-ओ-नामुराद होंगे।
इंसानों को दुनिया में वही कुछ मिल्ता है, जो इस के मुक़द्दर में लिखा जा चुका है। इस हक़ीक़त के बावजूद इंसान दौलत की हिर्स-ओ-लालच या अपनी ख़ाहिशात की फ़ौरी तकमील के लिए नाजायज़ और हराम ज़राए इख्तेयार करता है, जो दुनिया-ओ-आख़िरत में ख़सारा का बाइस होता है।

एक बुज़ुर्ग का वाक़िया है कि वो घोड़े पर कहीं सफ़र कर रहे थे। दौरान-ए-सफ़र एक मुक़ाम पर नमाज़ का वक़्त हुआ तो उन्हों ने एक शख़्स से घोड़े की निगरानी की ख़ाहिश की और उसे दो दिरहम देने का वाय‌दा भी किया। जब वो बुज़ुर्ग नमाज़ में मशग़ूल हो गए तो निगरानी पर मामूर शख़्स घोड़े की ज़ीन लेकर फ़रार हो गया और क़रीब ही के एक गाँव‌ में पहुंच कर इस ज़ीन को फ़रोख़त करने की कोशिश की, लेकिन कोई ख़रीदार ना मिला। बिलआख़िर इस ने ज़ीन को एक दुकानदार के हाथ फ़रोख़त कर दिया और चला गया। थोड़ी देर के बाद वही बुज़ुर्ग चलते चलते उसी दूकान पर पहुंचे और अपनी ज़ीन को पहचान कर इस के बारे में दरयाफ़त किया। दुकानदार ने कहा कुछ देर पहले ये ज़ीन एक शख़्स दो दिरहम में फ़रोख़त कर गया है। बुज़ुर्ग ने फ़रमाया इस ने हलाल पर हराम को तर्जीह दी।

हासिल वाक़िया ये कि दो दिरहम जो उसे पहले जायज़ तरीक़े से मिल रहे थे, बावजूद मशक़्क़त के इसी दो दिरहम को इस ने नाजायज़ तरीक़े से हासिल किया। इस वाक़िया से ये साबित होता है कि इंसान के मुक़द्दर में जो लिखा है वही पहुंचता है। अगर कोई शख़्स हराम ज़राए से माल हासिल भी करले तो अल्लाह ताला किसी ना किसी बहाने इस माल को बर्बाद कर‌ देता है।

इस वाक़िया से नौजवानों को ये समझाना मक़सूद है कि जो नौजवान निकाह के लिए लड्की वालों से नाजायज़ जोड़े की रक़म वग़ैरा हासिल करना चाहते हैं, अगर वो अपना इरादा तर्क करदें तो बहुत मुम्किन है कि अल्लाह ताला इस के बदले तिजारत-ओ-मुलाज़मत में तरक़्क़ी जैसे किसी जायज़ ज़रीया से उसे दिला दे। अगर इस के मुक़द्दर में माल-ओ-दौलत ना भी हो तो ये नेमत क्या कम है कि अल्लाह ताला इस के हक़ में ख़ैर का फ़ैसला फ़र्मा दे।

हुज़ूर अकरम स.व. ने फ़रमाया एक ज़माना एसा आएगा, जब लोगों को हराम-ओ-हलाल की परवाह ना होगी। ये हदीस शरीफ़ इन मुसल्मानों पर सादिक़ आती है, जो अपनी ख़ाहिशात की तक्मील के लिए निकाह जैसे मुक़द्दस अमल में जहेज़ और घोड़े जोड़े की बिद्दत शामिल किए हुए हैं।

अगर मुस्लमान मुफ़लिसी और तवंगरी हर दो सूरतों में शादी ब्याह की तक़रीबात को सादगी से अंजाम दें तो अल्लाह ताला अपने फ़ज़ल से मुसल्मानों को जहेज़ के लालच से बेनियाज़ करदेगा और वो सब कुछ अता फ़रमाएगा, जो किसी के वहम-ओ-गुमान में भी ना होगा।