सुप्रीम कोर्ट ने दहेज मुखालिफ कानून के गलत इस्तेमाल पर फिक्र ज़ाहिर किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ख्वातीन सुसराल वालों को परेशान करने के लिए दहेज मुखालिफ कानून का इस्तेमाल कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को हिदायत दी है कि दहेज के मुताल्लिक मामलों में शौहर और उसके रिश्तेदारों की गिरफ्तारी तभी की जाए जब वह जरूरी हो। कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी तभी की जाए जब इस बात के मुनासिब सबूत हों कि मुल्ज़िम के आजाद रहने से मामले की जांच मुतास्सिर हो सकती है। वह कोई दूसरा जुर्म कर सकता है या फरार हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हरासानी के मामलों में बडी तादाद में हो रही गिरफ्तारियों पर फिक्र ज़ाहिर किया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में गिरफ्तारी के वक्त पुलिस के लिए ज़ाती आजादी और सामाजी निज़ाम के बीच तालमेल रखना जरूरी है। अदालत ने कहा कि दहेज हरासानी से जु़डा मामला गैर जमानती है इसलिए लोग इसे हथियार बना लेते हैं। दहेज हरासानी के ज्यादातर मामलों में मुल्ज़िम बरी हो जाते हैं। सजा की दर सिर्फ 15 फीसदी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह बात एक मामले की सुनवाई के दौरान कही। अदालत ने कहा कि हाल के दिनों में अज़दवाज़ी तनाज़ात में बढोतरी हुई है। दहेज मुखालिफ कानून इसलिए बनाया गया ताकि ख्वातीन को हरासानी से बचाया जा सके लेकिन कई बार लोग इसे गिरफ्तारी का हथियार बना लेते हैं। कई मामलों में बिस्तर पक़ड चुके दादा-दादी और गैर मुल्क में रहने वाली बहन तक को निशाना बनाया जाता है।