दाता के उर्स पर अकीदतमंदों ने मांगी दुआ

मुजफ्फरपुर 1 जुलाई : कांटी के कोठिया वाक़ेय हजरत सैयद शाह मो इसमाइल कादरी अबुल लोलई वारसी कुद्दुस रहमतुल्लाह अलैह के उर्स के दूसरे दिन उनके मजार पर हजारों अकीदतमंदों ने दुआ मांगी। सुबह से उनके मजार पर लोगों की भीड़ जुटी रही। शहर के अलावा मुल्क के मुख्तलिफ जगहों से शामिल हुए हजारों लोगों ने दाता से रहमत की दुआ मांगी। उनसे दुआ मांगने वालों में सभी मजहबों के लोग शामिल थे। दाता के मजार से करीब एक किलोमीटर दूर से ही अकीदतमंदों का तांता लगा था। दोपहर होते ही भीड़ और परवान चढ़ी।

गांवों से ख्वातीन और मर्द का जत्था दाता के दरबार में हाजिरी देने पहुंचा। कई लोग माथे पर सेंधी रख कर दाता के दरबार पहुंचे। सैकड़ों लोगों ने गुलपोशी व फातेहाखानी भी की व दाता से दुआ मांगी। मजार शरीफ पर कुरानखानी का इंतजाम भी किया गया। साथ ही दूर दराज से आये लोगों के लिए लंगर का भी इंतजाम था। मजार शरीफ अहाते में ही 50 कमरे अकीदतमंद की खिदमत में रखे गये थे। मजार शरीफ के सूफी मो हुसैन शाह वारसी ने बताया कि दाता से सच्चे दिल से मांगी गयी हर मुराद पूरी होती हैं।

रवायत के मुताबिक चादरपोशी

दाता के मजार पर पुराना कांटी के मुकामी रिहायसी नंदलाल शाह के पोते ने गाजे बाजे व सैकड़ों के जुलूस में चादरपोशी की। जिसमें एमपी रघुवंश प्रसाद सिंह भी शामिल हुए। इस मौके पर अकीदतमंदों का सैलाब उमड़ पड़ा। बैंड बाजों के साथ लोगों ने पूरे जोश खरोस से दाता की चादरपोशी की। इसके बाद मुकामी लोगों की तरफ से चादरपोशी का सिलसिला शुरू हुआ। दाता की चादरपोशी की रवायत नंदलाल साह के अहले खाना से शुरू हुई थी। मरहूम साह दाता के हतमी दोस्त थे।

दाता जब हयात में थे तो उन्होंने मरहूम साह को कहा था कि मेरी मौत पर पहला चादर तुम चढ़ाना। दाता की वफात 12 नवंबर, 1968 को हुई। उसके बाद पहला चादर उन्होंने चढ़ाया। फिर यह रवायत मुसलसल कायम हो गयी। मरहूम साह के वफात के बाद उनके बेटे व अब उनके पोते दाता के मजार पर चादरपोशी कर रहे हैं।