दादरी: अख़लाक़ के बेटे सरताज की कहानी जो भारतीय वायु सेना में है

अख़लाक़ का बेटा सरताज सेना में है, वही सेना जिसमें यह सिखाया जाता है कि सामने अगर तुम्हारा दुश्मन हो तो उसे मारकर ही दम लेना. यह भी बताया जाता है कि अपने फ़र्ज़ के लिए जान लेने और देने में ज़रा भी मत हिचकिचाना. फ़िर फ़र्ज़ चाहे देश का हो या परिवार का अदा ज़रूर करना. आज सरताज का फौजी वाला खून उबाल तो मार ही रहा होगा?

सरताज को जब टीवी पर सुना तो यह एहसास हुआ की सच में उसकी रगों में एक शेर दिल बाप का खून ही दौड़ रहा है,उसके होंठों से निकले वे शब्द कि “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा” उसकी वतन से मोहब्बत को साफ़ दर्शा रही थी. अपने बाप की मौत भी उसकी हब्बे वतनी कम ना कर सकी? वो जानता था कि देश में तथाकथित राष्य्रवादियों की सरकार है जिसे देश और देशवासियों से ज़रा भी मोहब्बत नहीं. यह सरकार तो केवल देश को बांटना चाहती है. वो तराना आज भी हमारे कानों में गूँज रहा है, यह वो शब्द थे कि जिसको सुनने के बाद अपने आप ही किसी भी देश के लाल के खून में सरसराहट हो उठे.

देश के नाम पर मरने मिटने की क़सम खाने वाला वो फ़ौजी आज अखिलेश सरकार के फ़ैसले के बाद ज़रूर अपना माथा पटक रहा होगा और सोच रहा होगा की क्या मेरा फौजी बनना, देश की सेना में जाना मज़ाक तो नहीं बन गया है? क्या मैं सेना में इसी देश के लिए गया था? क्या इन्हीं देशवासियों की सुरक्षा के लिए आगे आया था? देश की जनता ने आखिर मुझे क्या दिया? एक तरफ़ वो लोग हैं जो जानवर के नाम पर खुले आम किसी को बड़ी बेरहमी से मार देते हैं और उसके ऊपर राजनीति की आग में रोटी सेकने वाले नेता?

दूसरी तरफ़ वह लोग हैं जो मुझे कहते तो अपनी क़ौम अपने मज़हब का हैं लेकिन उनको भी अपनी राजनीति चमकाने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं है. कहने को तो मेरी क़ौम के 67 रहनुमा लखनऊ की विधानसभा में बैठते हैं लेकिन आज तक किसी ने मेरे अब्बा अख़लाक़ के लिए अपने लब नहीं खोले. यह वही रहनुमा हैं जो हमेशा अपने आपको मुसलमान कहलाने और उसको भुनाने में कोई कसर नही छोड़ते. अख़लाक़ का बेटा सरताज आज शायद यह भी सोचता होगा की क्या मैं सच में इस ही संविधान की हिफाज़त में था जिस संविधान को ताख पर रखकर हर वो काम किया गया जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती? एक तरफ़ अख़लाक़ के हत्यारोपी रवि को शहीद का सम्मान दिया जाता है.

वहीं दूसरी तरफ़ राज्य सरकार द्वारा 20 लाख का मुआवजा दिया जाता है. सरताज यही सोचता होगा की रवि ने मेरे अब्बा को मारने जैसा घिनोना कर्म करने के बाद मुझे यतीम कर दिया और यह वीरों वाला काम करने के लिए सरकार ने रवि को सम्मान भी दे दिया. क्या सच में एक निर्दोष बुज़ुर्ग को मारने वाली भीड़ को सम्मान मिल सकता है? क्या सम्मान और मुआवज़ा देने वालों के हाथ नहीं कांपे होंगे जो अख़लाक़ की कब्र पर रख के सम्मान दिया गया?

क्या उन लोगों की ज़ुबान नहीं लरसी होंगी? जिस ज़ुबान से एक हत्यारे के लिए मुआवज़े और सरकारी नौकरी की बात निकली होगी? सरताज को आज इस फ़ैसले के बाद भारतीय मुसलमान होने पर अफ़सोस ज़रूर हुआ होगा. सरताज की आँखें आज उन रहनुमाओं की तरफ़ भी लगीं होंगी जो क़ौम को ना झुकने देना का दम भरते थे. आज सरताज अखिलेश सरकार से भी जवाब मांगेगा कि मुख्यमंत्री जी मेरे बाप अख़लाक़ के क़ातिल को मुआवजा देने के बाद आपने इस पर मोहर लगा दी कि मुसलमान इस देश की सरकारों से किसी भी तरह से कोई उम्मीद ना रखें.

मुस्लिम पीड़ित हों या निर्दोष सज़ा हमेशा मुस्लिमों को ही मिलेगी. आपके दिए हुए मेरे बाप की मैय्यत पर दिए वो पैसे मैं वापस आपके मुंह पर फेंकता हूँ. सरताज आज क्या सोच रहा होगा? जिस देश के लिए हमने छोड़ा अपनों का सहारा उस देश के लोगों ने सरे आम हमारे अपनों को मारा तो कैसे कहूँ मैं आज सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा?

लेखक- नवेद चौधरी