दावतों में बचे हुए खाने का मनसूबाबंद इस्तिमाल वक़्त की अहम ज़रूरत

हैदराबाद 21 जुलाई (मुहम्मद जसीम उद्दीन निज़ामी) एक ऐसे वक़्त जब दौलतमंद अफ़राद की जानिब से तक़रीब-ए-दावत और पार्टीयों के नाम पर शहर भर के मुख़्तलिफ़ शादी ख़ानों, क्लबों और तफ़रीह गाहों में खाने पीने की मुख़्तलिफ़ चीजों की बर्बादी एक आम बात होचुकी है,… मज़हबे इस्लाम उन्हें ऐसे अफ़राद की ख़बरगीरी की तालीम देता है जो तेज़ रफ़्तारी से तरक़्क़ी करती हुई इस दुनियामें आज भी अपनी भूक-ओ-प्यास मिटाने दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं।

,मआशी मजबूरीयों और मुफ़लिसी की ज़ंजीरोंने उन्हें इस क़दर बेबस करदिया है कि महंगाई के इस दौर में वो हाथ फैलाने पर मजबूर हैं। दरअसल मज़हबे इस्लाम का मंशा- और मक़सद येहै कि बनी नौ इंसां में भूक-ओ-तंगदस्ती का इतना मुक़ाबला किया जाये कि कोई भी इंसान भूक का शिकार ना होसके। और सलामती-ओ-अमन को इतना वसीअ किया जाये कि बदअमनी का एक मामूली सा ख़दशा भी बाक़ी ना रह जाये।

सरकारी आदादो शुमार के मुताबिक़, शहर में इस वक़्त 5 ता 8 हज़ार बेघर अफराद ऐसे हैं जो फुटपाथ बस स्टेनड ,रेलवे इस्टेशन ,फुटपाथ और दीगर सरकारी मुक़ामात पर अपनी ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं । इसके इलावा बिला लिहाज़ मज़हब व मिल्लत शहर में एसे भी हज़ारों अफ़राद हैं जिन्हें महंगाई के सबब अच्छी ग़ज़ांए महीनों नसीब नहीं होतीं,बल्कि अक्सर औक़ात उन्हें फ़ाक़ा कशी(भूक) का सामना होता है।

ऐसे में अगर कोई मज़हबी या समाजी तनज़ीमें आगे बढ़ कर शहर के मुख़्तलिफ़ मुक़ामात पर होने वाले तक़रीबात में बचे हुए खाने जो उमूमन बर्बाद होजाते हैं,उन्हें हासिल करते हुए महफ़ूज़ तरीके से मज़कूरा अफ़राद तक पहचाने का बीड़ा उठा लें तो हज़ारों अफ़राद का भला होसकताहै।

हज़रत अब्बू मौसी अशअरी ओ से रिवायत है कि रसूल पाक (स) ने फ़रमाया भूके को खाना खिलाओ,मरीज़ की इयादत करो,बेगुनाह कैदी को आज़ाद कराओ (बुख़ारी शरीफ़) इस हदीस पाक में तीन बातें बयान की गई हैं ,भूके को खाना खिलाना, बीमार की इयादत करना और गुलामों को आज़ादकरना। भूके को खाने खिलाने का हुक्म दिया गया तो इस से मालूम हुवा साहिब सरवत अफ़राद के माल में नादारों और बेकस्सों का हिस्सा रख दिया गया है ओर ये हिस्सा उन तक पहचाने का एहतिमाम ज़रूरी है।

ये सच्च है कि मआश और मआशी ज़रूरियात इंसानी ज़िंदगी का एक अहम मसला है ,ताहम इस मसले के हल केलिए मज़हब इस्लाम ने हमें बेहतरीन निज़ामे मईशत अता किया है, जिसके ज़रीए ना सिर्फ़ इंसानों की तमाम बुनियादी ज़रूरीयातें पूरी होती हैं,बल्कि वो एक ख़ुशहाल ज़िंदगी बसर कर सकते हैं..मगर ऐसे लोग जो मआशी दौड़ में किसी तरह पीछे रह जाते हैं, इन नादारों, हाजत मंदों और ज़रूरत मंदों की कफ़ालत केलिए मज़हब इस्लाम ने दौलत मंदों के माल मेंएक मुक़र्ररा हक़ और हिस्सा रख दिया है।

मज़कूरा हदीस पाक से हमें ये सबक़ मिलता है कि मुसलमानों का वो तबक़ा जो मआशी एतबार से ख़ुशहाल और आसूदा हाल है उनके लिए ये लाज़िमी है कि वो अपने समाज और इरद गिर्द मौजूद एसे तबक़े को जो अपनी मआशी मजबूरियों के सबब ,फ़ाक़ाकशी का शिकार हूँ, अपनी माज़ूरी के सबब मआशी जरूरतों की तकमील से क़ासिर हूँ और अपनी मुफ़लिसी के सबब भूके मर रहे हूँ..उन्हें खाना खिलाएं ,यानी उनके खाने पीने का इंतिज़ाम करें,उनकी मआशी जरूरतों की हत्तलमक़दूर पूरी करने की कोशिश करें।

यही बात मज़ीद विज़ाहत के साथ क़ुरआने पाक में भी कहा गया है, क़ुरआने पाक में मालदार मुसलमानों को ये हुक्म दिया गया है कि वो अपने माल का एक हिस्सा गरीब हाजत मंदों पर सर्फ़ करें,मसलन सूरा अलज़ारयात में अल्लाह तआला का इरशाद पाक है, वही मुत्तक़ी लोग बहिश्त के बाग़ों में और चश्मों के किनारों पर ऐश से रहेंगे जिनके माल का एक हिस्सा दुनिया में ग़रीबों और ज़रूरत मंदों पर ख़र्च होता था। (अलज़ारयात ५१ता९१)एक दूसरे मुक़ाम पर इरशाद फ़रमाया गया जो दौलतमंद अपनी दौलत का एक हिस्सा हाजत मंदों की कफ़ालत पर ख़र्च करते हैं,वो एज़ाज़-ओ-इकराम के साथ जन्नत में दाख़िल होंगे।