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दाश्ता से रिश्ता, बीवी पर ज़ुल्म के मुतरादिफ़ नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने आज दी गई रोलिंग में कहा है कि किसी भी मर्द को शादीशुदा होने के बावजूद दूसरी औरत के साथ अज़दवाजी ताल्लुक़ात हमवार‌ करने के बावजूद उस वक़्त तक बीवी पर ज़ुल्म-ओ-जबर का मुर्तक़िब क़रार नहीं दिया जा सकता।

उसी सूरत-ए-हाल पैदा ना होजाए जिस में बीवी ख़ुदकुशी केलिए मजबूर होजाए। जस्टिस के इस राधा कृष्णन की क़ियादत में एक बेंच ने कहा कि हम इस नज़रिया पर पहूंचे हैं कि महज़ इस हक़ीक़त कोई मर्द शादीशुदा होने के बावजूद किसी दूसरी औरत से क़ुरबत इख़तियार कर लेता है और अगर बीवी की अज़दवाजी ज़रूरियात की तकमील करने में नाकाम होजाता है तो उसको बीवी पर ज़ुल्म-ओ-जबर नहीं कहा जा सकता।

(दाश्ता से क़ुरबत-ओ-मुहब्बत) इस नौबत‌ तक ना पहूंच जाये जिस में बीवी हिंदुस्तानी ताज़ीरी क़ानून की दफ़ा 498 (एफ) की तशरीह के मुताबिक़ ख़ुदकुशी करने पर मजबूर ना होजाए। सुप्रीम कोर्ट ने एक मर्द की दर्ख़ास्त पर ये रोलिंग दी जिस (शौहर) को पहले के तहत की एक अदालत ने दफ़ा 498 (एफ) के तहत बीवी पर ज़ुल्म-ओ-ज़बरदस्ती के जुर्म का मुर्तक़िब क़रार दिया था।

शिकायत के मुताबिक़ इस जोड़े की शादी 1989 -ए-में हुई थी और शौहर के एक साथी से ताल्लुक़ात हमवार‌ होगए थे लेकिन अदालत ने कहा कि शादीशुदा रहने के बावजूद ज़ाइद अज़दवाजी ताल्लुक़ात उस्तिवार कर लेना किसी बीवी को ख़ुदकुशी केलिए मजबूर करने के मानिंद‌ जुर्म नहीं होता।

अदालत ने मज़ीद कहा कि शादी से हट कर किसी दूसरी औरत से अज़दवाजी ताल्लुक़ात उस्तिवार करना अगरचे साबित होजाता है तो गैरकानूनी और गैर अख़लाक़ी ज़रूर है लेकिन इस मुक़द्दमा में बहस-ओ-जरह से कहीं भी ये साबित नहीं होता कि शौहर ने अपनी बीवी को ख़ुदकुशी केलिए मजबूर किया था।

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