दाग़ देहलवी की ग़ज़ल: कि आती है उर्दू ज़ुबां आते आते

फिरे राह से वो यहाँ आते आते
अजल मेरी रही तू कहाँ आते आते

मुझे याद करने से ये मुद्दा था
निकल जाए दम हिचकियां आते आते

कलेजा मेरे मुंह को आएगा इक दिन
यूं ही लब पे आह-ओ-फ़ुगां आते आते

नतीजा न निकला थके सब पयामी
वहाँ जाते जाते यहाँ आते आते

नहीं खेल ऐ ‘दाग़’ यारों से कह दो
कि आती है उर्दू ज़ुबां आते आते

(दाग़ देहलवी)