जारीया साल रेलवे बजट में रेल के मुसाफ़िर बर्दार किराये में तक़रीबा एक दहिय के बाद किया गया इज़ाफ़ा ख़ुद वमेर रेलवे के लिए महंगा पड़ गया है और अब ख़ुद उनकी पार्टी ही उन्हें इस ओहदा से हटाने के लिए सरगर्म हो गई है । ताज़ा तरीन इत्तिला ये है कि तृणमूल कांग्रेस की सरबराह ममता बनर्जी दिनेश त्रिवेदी के इस्तीफ़े को यक़ीनी बनाने और उन के जानशीन की हैसियत से मिस्टर मुकुल राय का तक़र्रुर अमल में लाने यू पी ए इत्तेहाद पर दबाव डालने की ग़र्ज़ से ख़ुद दिल्ली जाने वाली हैं।
मिस्टर दिनेश त्रिवेदी वज़ारत रेलवे में पार्टी सरबराह ममता बनर्जी के जानशीन हैं। उन्होंने पहली मर्तबा वज़ीर रेलवे की हैसियत से रेलवे बजट पार्लीमेंट में पेश किया और इसके चंद घंटों के अंदर ही वो एक उसे तनाज़ा का शिकार हो गए जिस का फ़ौरी तौर पर कोई हल बज़ाहिर नज़र नहीं आता । मिस्टर त्रिवेदी ने तक़रीबा नौ साल के बाद पहली मर्तबा रेलवे के मुसाफ़िर किराया में इज़ाफ़ा किया था ।
ये इज़ाफ़ा जहां दीगर अपोज़ीशन जमातों ने तक़रीबा क़बूल कर लिया था और इस पर कोई ज़्यादा शोर शराबा नहीं हुआ लेकिन तृणमूल कांग्रेस की सरबराह ममता बनर्जी इस पर चिराग़ पा हो गईं और उन्होंने वज़ारत रेलवे से मिस्टर त्रिवेदी को हटाने की मुहिम शुरू कर दी है ।
मिस्टर त्रिवेदी भी इस मसला पर सियासत करने लगे हैं और उन्होंने अपनी अलैहदगी के लिए पार्टी सरबराह ममता बनर्जी के तहरीरी अहकाम तलब किए हैं। अब ममता बनर्जी तहरीरी अहकाम जारी करने की बजाय ख़ुद दिल्ली जाकर यू पी ए क़ियादत खासतौर पर वज़ीर आज़म डाक्टर मनमोहन सिंह और यू पी ए की सदर नशीन-ओ-कांग्रेस की सदर सोनिया गांधी पर दबाव बनाना चाहती हैं।
जहां तक हुकूमत का सवाल है इसने अभी कोई वाज़िह इशारा नहीं दिया है कि त्रिवेदी को तब्दील किया जाएगा या नहीं लेकिन अगर हुकूमत के मौक़िफ़ को देखा जाए तो ये वाज़िह हो जाता है कि हुकूमत के सामने ममता बनर्जी के दबाव को तस्लीम करने के इलावा कोई और रास्ता नहीं है । हुकूमत की हालत उत्तर प्रदेश के असेंबली इंतेख़ाबात के नताइज के बाद मज़ीद अबतर हो गई है और वो हलीफ़ों को नाराज़ करने का ख़तरा नहीं मोल ले सकती ।
फ़ौरी तौर पर कोई फैसले की बजाय हुकूमत ने कुछ वक़्त हासिल किया है लेकिन ऐसा लगता है कि आइन्दा एक दो दिन में इस ताल्लुक़ से कोई ना कोई फैसला ज़रूर हो जाएगा।
मिस्टर त्रिवेदी के इस्तीफ़ा या वज़ारत से अलैहदगी का मसला अब रेल किराये में इज़ाफ़ा से बिलकुल अलैहदा होता नज़र आ रहा है और इस मसला पर तृणमूल कांग्रेस की जानिब से अमला सयासी खेल खेला जा रहा है । रेल किराये में इज़ाफ़ा की पादाश में अगर वज़ीर रेलवे को अलैहदा कर भी दिया जाए तो इस से अवाम पर आइद किए गए बोझ को कम करने में किसी तरह की मदद नहीं मिल सकती ।
अगर फ़ी अलवा कई अवाम पर आइद किए गए बोझ को कम करना तृणमूल सरबराह का मक़सद है तो उन्हें वज़ीर रेलवे के इस्तीफ़े की बजाय हुकूमत और खासतौर पर वज़ीर आज़म पर दबाव डालना चाहीए कि वो रेल किराये में किए गए इज़ाफ़ा से दसतबरदारी इख्तेयार करें।
अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर ममता बनर्जी पार्लीयामेंट में इस ताल्लुक़ से तरामीम पेश करवा सकती हैं जिस की तमाम दीगर अपोज़ीशन जमातों की जानिब से ताईद की उम्मीद रखी जा सकती है । ताहम ऐसा करने की बजाय ममता बनर्जी महिज़ वज़ीर रेलवे को अलैहदा करते हुए अवाम को फ़रेब देने की कोशिश कर रही हैं ।
वो ना सिर्फ रियासत मग़रिबी बंगाल के अवाम को बल्कि सारे मुल्क के अवाम को ये तास्सुर देने की कोशिश कर रही हैं कि वो अवामी मुफ़ाद की ख़ातिर ये ड्रामा कर रही हैं । हक़ीक़त ये है कि ममता बनर्जी को उत्तर प्रदेश असेंबली इंतेख़ाबात के नताइज ने कांग्रेस से इत्तेहाद पर नज़र-ए-सानी के लिए मजबूर कर दिया है ।
उन की ख़ुद भी हालत ऐसी है कि वो अज़ ख़ुद यू पी ए इत्तेहाद से अलैहदगी इख्तेयार नहीं कर सकतीं । वो किसी ना किसी बहाने अवाम को महिज़ ये तास्सुर देना चाहती हैं कि वो यू पी ए से ख़ुश नहीं हैं । ये एक सयासी खेल है और इसमें उत्तर प्रदेश असेंबली इंतेख़ाबात के नताइज सामने आने के बाद शिद्दत पैदा हुई है । ना सिर्फ तृणमूल कांग्रेस बल्कि दीगर हलीफ़ों के लिए भी यू पी ए इत्तेहाद में बरक़रार रहना मुश्किल नज़र आ रहा है ।
ये अलग बात है कि ख़ुद का दामन बचाने की कोशिश सबसे पहले तृणमूल कांग्रेस ने शुरू कर दी है । आगे इन अनुदेशों को मुस्तर्द नहीं किया जा सकता कि दूसरी हलीफ़ जमाअतें भी यू पी ए इत्तेहाद को आंखें दिखाने लगीं।
ममता बनर्जी अब दिल्ली जाएंगी और वो वज़ीर आज़म-ओ-दीगर यू पी ए क़ाइदीन पर ज़ोर देंगी कि मिस्टर दिनेश त्रिवेदी को वज़ारत से अलैहदा किया जाए । इस अलैहदगी पर अगर वो इक़्तिफ़ा कर लेती हैं तो ये बात बिलकुल वाज़िह हो जाएगी कि ये सारा ड्रामा महिज़ एक सयासी खेल था और इसका अवाम पर आइद होने वाले बोझ से क़तई कोई ताल्लुक़ नहीं था । अवाम को बोझ से बचाना अगर मक़सूद होता तो तृणमूल की हिक्मत-ए-अमली अलैहदा होती ।
जिस तरह ममता बनर्जी यू पी ए इत्तेहाद में खलबली पैदा कर चुकी हैं इससे ये कहा जा सकता है कि रेल किराये में इज़ाफ़ा ना सिर्फ मौजूदा वज़ीर रेलवे के लिए बल्कि ख़ुद यू पी ए इत्तेहाद के लिए भी महंगा साबित होगा । हलीफ़ जमाअतें अब यू पी ए में रहते हुए हुकूमत को दबाव का शिकार करने की हिक्मत-ए-अमली इख्तेयार कर सकती हैं और इसके नतीजा में हुकूमत के फैसलों पर असर हो सकता है ।
जिस ड्रामा का ममता बनर्जी ने आग़ाज़ किया था इम्कान है कि उसका आइन्दा एक या दो दिनों में ड्राप सीन भी हो जाए लेकिन ये बिलकुल वाज़िह हक़ीक़त है कि इस सारे ड्रामा का अवाम से कोई ताल्लुक़ नहीं है और ये इक़्तेदार के गलियारों में खेला जाने वाला सयासी खेल ही है ।