दिलसुखनगर के बम धमाके हुकूमत की लापरवाई का नतीजा

दहशतगर्दी का ना कोई मज़हब होता है और ना ही कोई उसकी ज़ात होती है । इसलिए जो लोग किसी भी दहशतगर्दी के वाकिया को किसी ख़ास मज़हब से मरबूत करते हैं उनकी ज़हनियत बीमार मालूम होती है। मुल्क में हर जगह कुछ ना कुछ ऐसे वाक़ियात वक़फ़ा वक़फ़ा से होते रहते हैं जिस की वजह से अफ़रातफ़री और बदअमनी फैल जाती है ।

ये बदअमनी फैलाने वाले वो लोग होते हैं जिन्हें ना तो इंसानों से कोई वास्ता होता है और ना ही इंसानियत से दूर दूर‌ का रिश्ता बस उनकी यही ख़ाहिश होती है कि मुल्क में बदअमनी फैले और लोग ख़ौफ़‍ ओ‍ दहशत के साय में जीने पर मजबूर हो जाएं । गुजिश्ता चंद सालों से हैदराबाद भी उन्ही शरपसंदों और दहशतगर्दों के निशाने पर है , जो इस अमन-ओ-आश्ती वाले शहर में बदअमनी और ख़ौफ़-ओ-दहशत का माहौल पैदा करना चाहते हैं ।

मक्का मस्जिद धमाका , लुंबिनी पार्क बम धमाका और गोकुल चाट पर इन दहशतगर्दों के बम धमाका से इस पुरअमन शहर को इंतेशार-ओ-बदअमनी का शिकार बना दिया । लेकिन गुज़श्ता शब को ठीक 7 बजे दिलसुखनगर के कोणार्क थिएटर और इससे मुल्हिक़ा एक दूसरे काफ़ी भीड़ वाले इलाक़े में दहशतगर्दों ने दो ताक़तवर बम धमाके कर के सैंकड़ों को ज़ख़मी और 16 अफ़राद को मौत के आग़ोश में पहुंचा दिया ।

बम धमाका के लिए सायकिल और मोटर सायकिल का इस्तेमाल किया गया । हालाँकि हकूमत-ए-हिन्द के ज़रीये इस बात के ख़दशात ज़ाहिर किए गए थे कि ऐसे बम धमाके मुल्क में कहीं भी हो सकते हैं , जिसकी इत्तिला हुकूमत को थी । लेकिन इस बात की उसे इत्तिला नहीं थी कि किस शहर में किस इलाक़े में ये धमाके हो सकते हैं।

अब इस धमाके पर सियासत शुरू हो चुकी है । बी जे पी ने आज हैदराबाद बंद का ऐलान किया है । साथ ही मीडीया ने चीख़ चीख़ कर ये कहना शुरू कर दिया है कि इस धमाके में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ है । इंडियन मुजाहिदीन नाम की तंज़ीम को मीडीया और सियासतदानों ने गढ़ लिया है जबकि हक़ीक़त ये है कि इस नाम की किसी भी दहशतगर्द तंज़ीम का कोई वजूद ही नहीं है ।

इस धमाके में तीन मुस्लिम नौजवानों के मुलव्वस होने की बात कही जा रही है जिसमें एक का ताल्लुक़ आज़मगढ़ , दूसरे का समस्तीपुर बिहार और तीसरे का झारखंड से ताल्लुक़ बताया जा रहा है । और मास्टरमाइंड के तौर पर रियाज़ भटकल का नाम लिया जा रहा है । जबकि अभी क़ौमी तहक़ीक़ाती इदारे ( एन आई ए ) इस धमाके की जांच कर रही है । जांच के बाद ही हक़ायक़ मंज़रे आम पर आयेंगे ।

इससे क़बल कुछ भी कहना क़ब्ल अज़ वक़्त होगा । हालाँकि वज़ीर-ए-आला आंधरा प्रदेश किरण कुमार रेड्डी , वज़ीर-ए-दाख़िला सबीता रेड्डी और वज़ीर-ए-दाख़िला हकूमत-ए-हिन्द सुशील कुमार शिंदे ने जाये वाक़िया पर पहुंच कर हालात का जायज़ा लिया और हॉस्पिटल्स में जाकर ज़ख्मियों की इयादत की । सदर जमहूरीया हिंद ने इसे बुज़दिलाना हरकत क़रार दिया है ।

सवाल ये पैदा होता है कि हकूमत-ए-हिन्द को खु़फ़ीया एजेंसीयों के ज़रीया इस बात की इत्तिलाआत थीं कि दहशतगर्द मुल्क में बम धमाके करने वाले हैं तो उसे एहतियातन इन हस्सास मुक़ामात पर सेक्युरिटी सख़्त कर देनी चाहीए थी जहां इन धमाकों के ख़दशात थे इससे क़ब्ल भी दहशतगर्दों ने दिलसुखनगर को निशाना बनाया था । तो ऐसी हालत में सेक्युरिटी के सख़्त इंतेज़ामात की ज़रूरत पहले से ही थी ।

अब जबकि एक दर्जन से ज़ाइद अफ़राद की मौत हो चुकी और सौ से ज़ाइद लोग ज़ख़्मी हो गए हैं। तो उन ज़ख्मियों और फ़ौत शूदा मासूम अफ़राद का आख़िर क्या क़सूर था कि वो इन धमाकों का शिकार हुए ।

इन धमाकों को वक़ूअ पज़ीर होने से रोका जा सकता था अगर रियासती और मरकज़ी खु़फ़ीया एजेंसीयां और हुकूमतें बरवक़्त हिफ़ाज़ती इंतेज़ामात करती । लेकिन ऐसा नहीं किया गया जबकि इस तरह के वाक़ियात की इत्तिलाआत थीं। इससे यही ज़ाहिर होता है कि हुकूमतों को सिर्फ़ अपनी बक़ा की फ़िक्र है लोगों की जानों की उन्हें कोई परवाह नहीं है ।