दिलीप कुमार का पुश्तैनी मकान उलझनो मे घिरा

पेशावर का तारीखी किस्सा ख्वानी बाजार के नजदीक मोहल्ला खुदादाद में मौजूद बालीवुड के दिलीप कुमार का पुश्तैनी मकान तनाज़े में घिर गया है। जब से हुकूमत ए पाकिस्तान ने इस मकान का हसूल कर यहां दिलीप कुमार की यादों को संजोने का ऐलान की है, कई लोग मकान पर अपना हक जता चुके हैं। इनमें दिलीप कुमार के रिश्तेदार भी शामिल हैं।

ऐसे में जब तक विवाद ( झगड़ा) सुलझ नहीं जाता, हुकूमत ने हसूल (Acquisition) की इक्दामात (प्रक्रिया) रोक दी है। हालांकि उसने कहा कि इस मकान को राष्ट्रीय धरोहर बनाने का मंसूबा (योजना) ज्यों का त्यों है।

एक सरकारी आफीसर ने कहा कि खैबर-पख्तूनख्वा सूबे (प्रांत) की हुकूमत अब भी इस मकान को अपने हक़ (अधिकार) में लेना चाहती है और इसकी तीन करोड़ रुपये कीमत चुकाने को तैयार है। असल में सरकार के तरफ से घोषित मोटी रकम के बाद से ही मकान के नए-नए दावेदार आए हैं। इसलीए सुबाई हुकूमत (Provincial Government) मामला सुलझने का इंतेजार कर रही है।

सूबे के कलचर्ल डायरेक्टर (Cultural Director) परवेज खान ने डॉन अखबार से कहा कि जब तक कोई एक मालिक तय नहीं होता, हुकूमत मकान को नहीं खरीदेगी। सरकार कानूनी तनाज़े ( विवादो) में नहीं पड़ना चाहती, इसलिए फिलहाल उसने इस मसले ( समस्या) से दूरी बना ली है।

इस वक्त इकरामुल्ला खान नाम के एक कपड़ा व्यवसायी (Practitioner/ ताज़िर) के पास यह दो मंजिला मकान जर्जर हालत में हैं, जहां नीचे की मंजिल पर उसने गोदाम बना रखा है।

खान का दावा है कि उनके पास मकान पर मालिकाना हक के सारे कानूनी दस्तावेज हैं। उनका कहना है कि छह साल पहले उन्होंने यह मकान 51 लाख रुपये में खरीदा था। डॉन के अनुसार, सूबे के कलचर्ल डायरेक्टर (Cultural Director) मकान को लेकर दिलीप कुमार के हिंदुस्तान और पाकिस्तान में रह रहे रिश्तेदारों से भी राबिता (संपर्क/Contact) कर चुके हैं। इनमें से एक ने दावा किया है कि मकान उनके नाम है और उन्हें नहीं पता कि इसे कब और किसने फरोख्त किया।

उन्होंने शक का इज़हार किया कि शायद खानदान के पुराने नौकर ने किसी को इत्तेला दिए बगैर मकान बेचा। वाजेह है ( उल्लेखनीय है ) कि इस मकान में 11 दिसंबर, 1922 को दिलीप कुमार की पैदाईशहुई थी। उनके वालिद, लाला गुलाम सरवर एक फल व्यापारी ( ताज़िर)थे।