सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी की दरख़ास्त की पीर के दिन समाअत से इत्तेफ़ाक़ करलिया। इस दरख़ास्त में पार्टी ने गुज़ारिश की है कि लेफ्टेंनेंट गवर्नर को हिदायत दी जाये कि दिल्ली असेम्बली तहलील करदें और लोक सभा इंतेख़ाबात के साथ ताज़ा असेम्बली इंतेख़ाबात भी मुनाक़िद करे।
चीफ़ जस्टिस पी सथासिवम की ज़ेर-ए-क़ियादत सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि वो 24 फरवरी को दरख़ास्त की समाअत करेगी। ऐडवोकेट प्रशांत भूषण ने आम आदमी पार्टी की पैरवी करते हुए कहा कि दिल्ली में किसी मुतबादिल हुकूमत की तशकील का कोई इमकान नहीं है। इस लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर को चाहिए था कि असेम्बली तहलील करदेते।
ये मुशतर्का दरख़ास्त अख़बारी इत्तेलात की बुनियाद पर दाख़िल की गई है और दस्तयाब दस्तावेज़ात जो आम आदमी पार्टी को अवामी ज़राए से दस्तयाब हुए थे, दाख़िल करदिए गए हैं। केजरीवाल काबीना में वज़ीर ट्रांसपोर्ट सौरभ भारद्वाज को भी चंद दस्तावेज़ात दस्तयाब हुई थीं जो अदालत में पेश करदी गईं।
आम आदमी पार्टी की दरख़ास्त में दिल्ली में सदर राज के नफिज़ के फ़ैसले को चैलेंज किया गया है जो लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग की सिफ़ारिश पर नाफ़िज़ किया गया। दरख़ास्त में इल्ज़ाम आइद किया गया है कि ऐसा कांग्रेसी क़ाइदीन और साबिक़ चीफ़ मिनिस्टर शिला दीक्षित को बदउनवानीयों के इल्ज़ामात से बचाने के लिए किया गया है।
दरख़ास्त में इद्दिआ किया गया है कि 16 फरवरी का हुक्मनामा जिस के तहत सदर राज नाफ़िज़ किया गया, मायूसी का नतीजा था जो बदउनवानी के मुक़द्दमात की जारी तहक़ीक़ात की बिना पर पैदा हुई थी। एक एफ़ आई आर अरविंद केजरीवाल हुकूमत की जानिब से दर्ज किया गया था।
वाज़िह तौर पर पसेपर्दा मक़सद दिल्ली असेम्बली की तहलील और ताज़ा इंतेख़ाबात का इनीक़ाद नहीं था बल्कि एक सियासी पार्टी को मौक़ा देना था जो दिल्ली असेम्बली इंतेख़ाबात में बुरी तरह नाकाम होगई थी। जो नवंबर 2013 में मुनाक़िद किए गए थे। कई अहम क़ाइदीन बिशमोल मर्कज़ी हुकूमत के वुज़रा और साबिक़ चीफ़ मिनिस्टर को संगीन बदउनवानीयों के इल्ज़ामात का सामना था।
बिलवासता तौर पर मर्कज़ी हुकूमत के ज़रीये दिल्ली असेम्बली को मुअत्तल करते हुए इक़तेदार मर्कज़ के हाथों में दे दिया गया। इस तरह जारीया तहक़ीक़ात कुनुंदों को भी मायूसी से दो-चार कर दिया गया। एफ़ आई आर के तहत बदउनवानीयों के इल्ज़ामात उन अफ़राद के ख़िलाफ़ आइद किए गए थे जो साबिक़ हुकूमत के अहम अरकान थे।
एफ़ आई आर दिल्ली की नई हुकूमत ने दर्ज करवाई थी। दरख़ास्त में कहा गया कि चुनांचे ये फ़ैसला ना सिर्फ़ गै़रक़ानूनी और दिल्ली के शहरीयों के जम्हूरी हुक़ूक़ की ख़िलाफ़वरज़ी था बल्कि शहरीयों को बदनाम करदेने वाला था। सदर राज का नफिज़ इस लिए भी ज़रूरी नहीं था क्योंकि केजरीवाल हुकूमत के मुस्ताफ़ी होजाने के बाद ना तो बी जे पी और ना कांग्रेस हुकूमत तशकील देने के मौक़िफ़ में थी।