दिल्ली में 16 दिसंबर की रात जो दरिंदगी दिखाई गई, अदालत ने आज उस पर अपना फैसला सुनाकर इंसाफ दे दिया। दामिनी के चार दरिंदों को सजा-ए-मौत सुनाई गई है।
मंगल के दिन सभी दरिंदो को 11 दफआत के तहत गुनाहगार पाया गया था। और बुध के दिन जज ने दोनों पार्टियो की दलीलें सुनकर फैसला जुमे के लिए महफूज़ रखा था।
करीब दस महीने पहले दिल्ली की एक सर्द रात में छह दरिंदों ने बेसहारा लडकी के साथ जो किया, उसके सामने हैवानियत, दरिंदगी, वहशियाना जैसे लफ्ज भी छोटे पड़ गए। लेकिन 11 सितंबर के तारीखी दिन दामिनी को आखिरकार इंसाफ मिला।
यह मंगल के दिन ही तय हो गया था कि इन चारों दरिंदो को फांसी होगी या फिर उम्रकैद । और जुमे के दिन इंसाफ हो गया। पहले उम्मीद की जा रही थी कि बुध को ही फैसला आ जाएगा, लेकिन अदालत ने इंतेजार दो दिन और बढ़ा दिया।
बुध को हुई बहस के दौरान सरकारी वकील ने चारों दरिंदो के लिए सजा-ए-मौत की मांग की थी, जबकि बचाव पार्टी के वकील ने दलील देते हुए कहा था कि उन्हें सुधरने के लिए एक मौका दिया जाना चाहिए।
इस वाकिया की वजह से पूरे मुल्क एहतिजाजी मुज़ाहिरा हुए थे और ख्वातीन के खिलाफ मुसलसल बढ़ रहे जुर्म के मसले को उठाया गया।
हुकूमत भी रेप के मामलों में ज्यादा सख्त कानून लाने पर मजबूर हुई।
इजाफी सेशन जज योगेश खन्ना ने भरी अदालत में मंगल के दिन कहा था कि प्रासीक्यूटर ने जो गवाह और सुबूत सामने रखे, उसके बाद इस बात में कोई शक नहीं बचा कि मुकेश, विनय कुमार, अक्षय ठाकुर और पवन गुप्ता 16 दिसंबर को बस में 23 साला लड़की से ज्यादती की और उस पर हमला किया।
अदालत का कहना था कि मुतास्सिरा के बयान, प्रासीक्यूटर की ओर से पेश 85 गवाह, डीएनए, फोरेंसिक और इलेक्ट्रॉनिक सुबूतों से यह साफ होता है कि मुल्ज़िम, गुनाहगार हैं।
प्रासीक्यूटर ने सभी मुल्ज़िमो के लिए सजा-ए-मौत मांगी, क्योंकि उनके हिसाब से यह जुर्म ‘रेयरस्ट ऑफ रेयर’ के कटेगरी में आता है।
अदालत ने माना कि सभी मुल्ज़िमो ने लड़की के साथ जिस तरह का घिनौना जुर्म किया उसके लिए मौत की सजा से कम कुछ नहीं हो सकता है। फैसला सुनकर चारों दरिंदे रोने लगे, विनय तो चिल्लाने लगा। फैसले के फौरन बाद कोर्ट के बाहर मौजूद लोगों ने फैसले पर खुशी का इजहार किया है। फैसले के दौरान कोर्ट के बाहर सेक्युरिटी के सख्त इंतेज़ाम थे।
वहीं, बचाव पार्टी (Defendants) के वकील एपी सिंह ने एक बार फिर से इससे सियासी दबाव में लिया गया फैसला बताया। उन्होंने कहा कि यह फैसला पूरी तरह से मरकज़ी हुकूमत के दबाव में लिया गया है। उनका इल्ज़ाम था कि वज़ीर ए दाखिला सुशील कुमार शिंदे ने इस बाबत पहले ही सभी लोगों से बात कर इस फैसले को सुनाने का दबाव डाला गया था। अदालत ने कहा कि ख्वातीन के खिलाफ ज़ुर्म को किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
उधर, सरकारी वकील ने कहा कि मुल्ज़िमो को क्या फर्क पड़ता है, वे तो सिर्फ खामोश थे। उन्होंने कहा कि जो मुजरिम होते हैं, जिन्हें ऐसा ज़ुर्म करने में डर नहीं लगता, उन्हें क्या फर्क पड़ता है।
मुल्क में अदालतें सिर्फ ‘रेयरस्ट ऑफ रेयर’ मामलों में फांसी की सजा देती हैं।
मुतास्सिरा ने मरते वक्त बयान दिया था कि मुल्ज़िम ने रेप के दौरान उसके जिस्म में लोहे की छड़ घुसाई, अंदुरूनी हिस्से निकाले, उसे मारा और काटा।
एक नाबालिग मुल्ज़िम को पहले ही तीन साल के लिए Juvenile homes (बाल सुधार गृह) भेज दिया था, जबकि पांचवां बालिग मुल्ज़िम और बस का ड्राइवर राम सिंह तिहाड़ में मर गया था।
मुतास्सिरा और उसका दोस्त जुनूबी दिल्ली के एक मॉल में फिल्म देखने के बाद घर लौट रहे थे, जब एक बस में चढ़े। बस में छह लोगों ने उनके साथ 45 मिनट तक ज्यादती की।
————– बशुक्रिया: अमर उजाला व जागरण