दिल्ली 100 बरस का हो गया

हिनदुसतानि दार-उल-हकूमत नई दिल्ली रवां माह सौ बरस का हो जाएगा मगर अभी तक ये मालूम नहीं है कि आया इस मौक़ा पर कोई तक़रीबात मनाई जाएंगी या फिर बर्तानिया के नौआवादियाती दौर की अलामत समझ कर नज़रअंदाज कर दिया जाएगा। 12 दिसंबर 1911 को ताजस बर्तानिया के बादशाह जॉर्ज पंजुम ने पुराने दिल्ली शहर के शुमाल में एक कित्ता-ए-ज़मीन पर तमाम हिंदूस्तानी शहज़ादों और हुकमरानों का एक शानदार दरबार मुनाक़िद कर के ऐलान किया था कि मुलक का दार-उल-हकूमत कलकत्ता से वहां मुंतक़िल किया जाएगा।

जॉर्ज पंजुम का ये फ़ैसला इस बुनियाद पर था कि कलकत्ता में अमन-ओ-अमान की सूरत-ए-हाल बिगड़ती जा रही थी और इस के इलावा दिफ़ाई नुक़्ता-ए-नज़र से दिल्ली बर्र-ए-सग़ीर के क़लब में वाक़्य था। अब एक सौ बरस गुज़रने के बाद दिल्ली भारत के सब से बड़े शहरों में से एक है और दरयाए जमना के आर पार फैले हुए इस के नवाही इलाक़ों में 1 करोड़ 80 लाख तक नफ़ूस बस्ते हैं। दिल्ली की वज़ीर-ए-आला शीला डिकशिट ने इस दिन को मनाने की तक़रीबात से मुताल्लिक़ सवालात का जवाब देते हुए कहा था, अभी इस बारे में इबहाम पाया जाता है कि किस चीज़ की और कैसे तक़रीबात मनाई जाएं। वज़ारत-ए-सक़ाफ़त ने एक मंसूबा तो वज़ा किया है, लेकिन अभी उन की वाज़िह सिम्त मुतय्यन नहीं है।

जॉर्ज पंजुम ने जिस मुक़ाम पर 1911-में दरबार मुनाक़िद किया था बाद में इस के बजाय पुराने शहर के जुनूबी इलाक़े को मुंतख़ब किया गया और दरबार वाली जगह को 1947-मेंआज़ादी के बाद बर्तानवी सामराज की निशानी मुजस्समों का क़ब्रिस्तान बना दिया गया। कोरोनेशन पार्क कहलाने वाली इस जगह को कई दहाईयों तक नज़रअंदाज और फ़रामोशकिया गया मगर अब आहिस्ता आहिस्ता उस की तज़ईन-ओ-आराइश का काम शुरू हो रहा है, ताहम ये 12 दिसंबर की तक़रीबात के लिए तैय्यार नहीं होगा।

दिल्ली में इंडियन नैशनल ट्रस्ट बराए फ़नून-ओ-सक़ाफ़्ती विरसा के सरबराह ए जी कृष्णा मेनन के बाक़ौल एक सौ बरस पहले के वाक़ियात पर ख़ुशी मनाना एक तरह से तारीख़ को नए सिरे से लिखने के मुतरादिफ़ है। उन्हों ने कहा, नई दिल्ली का डिज़ाइन अंग्रेज़ों ने तैय्यार किया था मगर उस की तामीरहिंदूस्तानी मज़दूरों, मेअम्मारों और सलाहीयत के बगै़र मुम्किन नहीं हो सकती थी।

दिल्ली में आने वाले अक्सर सय्याहों और मुक़ामी अफ़राद के ख़्याल में नई दिल्ली में नौआवादियाती दौर का तर्ज़ तामीर भारत के काबिल दीद मुक़ामात में से एक है जिस में 340 कमरों पर मुश्तमिल सदारती महल भी शामिल है, जहां कभी वायसराए हिंद पूरे हिंदूस्तान पर हुकूमत करते थे। बर्तानवी राज के उमूर पर गहिरी निगाह रखने वाले एक हिनदुसतानि तारीख़ दान महेश रंगा राजन का कहना था, ये दिल्ली को 1911-में एक बार फिर हिनदुसतानि दार-उल-हकूमत बनाने की सालगिरा मनाने का मौक़ा है।

दिल्ली के हुक्काम 12 दिसंबर को इस हवाले से चंद तक़रीबात मनाने का इरादा रखते हैं मगर शहर के बेशतर बासी अपने शहर की सौ साला तारीख़ के बारे में लाइलम रहेंगे। नई दिल्ली में मेट्रो ट्रेनों, शाहराहों और सैटेलाइट टाउन्ज़ के तेज़ी से फ़रोग़ पाने के बाद बहुत से शहरी बर्तानिया की नौआवादियाती तारीख़ में दिलचस्पी लेने की बजाय एक नए आलमगीर निज़ाम में हिनदुसतान को एक मज़बूत मुलक के तौर पर देख रहे हैं।