हबीब जालिब की इस ग़ज़ल को मेहदी हसन और मु्न्नी बेगम व दीगर कई गुलूकारों ने गाकर मक़बूल किया है।
दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं
जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिये बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं
वो जो अभी इस राहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था
उस आवारा दीवाने को ‘ज़लिब’-’ज़लिब’ कहते हैं