दीने इस्लाम में इबादत के ज़रिये मुसावात का दरस

आदिलाबाद, 08 अप्रेल: क़ुरआन मजीद एक इन्क़िलाबी किताब है जिस ने भी इस किताब को मज़बूती के साथ थामा अल्लाह तआला ने उसे इज़्ज़त फ़रमाई। एक वक़्त था जब मुसलमानों ने इस क़ुरआन के अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारी तो अल्लाह तआला ने मुसलमानों को 5 बर्र-ए-आज़मों पर हुकूमत-ओ-इक़तिदार अता फ़रमाया था। इन ख़्यालात का इज़हार मौलाना मुहम्मद अबदुलअज़ीज़( जमाते इस्लामी हिंद ) ने किया। वो जमाते इस्लामी आदिलाबाद की जानिब से जामा मस्जिद में मुनाक़िदा इजतिमा ए आम से मुख़ातिब थे।

उन्होंने कहा कि रबी बिन आमिर ने रुस्तम के दरबार में अपनी आमद की ग़रज़ बिला झिजक ये बताई थी कि हम ख़ुदा के बंदों को बंदों की गु़लामी से निजात दिलाने के लिए आए हैं। उन्होंने कहा कि अल्लाह की राह में दी जाने वाली क़ुर्बानियां ज़ाए नहीं जाएंगी क्योंकि अल्लाह तआला किसी के अज्र को ज़ाए नहीं करता। हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम पर आज़माईशें आईं इस के बाद अल्लाह तआला ने उन्हें दुनिया की इमामत के मंसब पर फ़ाइज़ फ़रमाया।

अल्लाह तआला अहले ईमान को जान-ओ-माल, ख़ौफ़-ओ-ख़तर, फ़ाक़ाकशी में मुबतला करके उन्हें आज़माता है। उन्होंने कहा कि हमें चाहिए कि हर काम के अंजाम देने में अल्लाह की रज़ा को पेशे नज़र रखें क्योंकि अल्लाह की रज़ा ही असल जुज़ है। उन्होंने कहा कि औलाद भी अल्लाह तआला की एक अज़ीम नेअमत है, औलाद के ज़रिये राहत हासिल होती है और कभी वो अज़ीयत का बाइस भी बन जाती है।

इस लिए औलाद की तर्बियत पर शुरू ही से तवज्जो की ज़रूरत है ताकि वो हमारी आँखों की ठंडक बन सके। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ताइफ के सख़्त तरीन दिन से भी गुज़रना पड़ा,लेकिन इस के बावजूद आप ने उन पर लानत नहीं फ़रमाई बल्कि फ़रमाया कि मुझे रहमतुल लिलआल‌मीन बनाकर भेजा गया है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़तह मक्का के मौक़े पर इस्लाम के कट्टर दुश्मनों तक को माफ़ फ़र्मा दिया।

उन्होंने कहा कि दुनिया में इस्लाम जिस तेज़ी के साथ फैला है कोई दूसरा मज़हब इतनी तेज़ी से नहीं फैला। उन्होंने डा. तारा चंदा के इस बयान का हवाला दिया कि अगर इस्लाम तलवार के ज़ोर पर फैला होता तो आज दीगर मज़ाहिब के कोई आसार बाक़ी नहीं रहते। मुसलमानों ने बड़ी रवादारी के साथ हुकूमत की। उन्होंने कहा कि दीने इस्लाम में इबादात का निज़ाम इंतिहाई सादा और इसराफ़ से महफ़ूज़ है।

उन्होंने कहा कि इस्लाम रंग-ओ-नसल और क़ौमी और लिसानी असबीयत से पाक है। दुनिया के दीगर मज़ाहिब इस तरह की मिसाल पेश करने से क़ासिर हैं। दीने इस्लाम में इबादात के ज़रिये मुसावात का दरस मिलता है। हिन्दुस्तान में ज़ात पात का निज़ाम आज भी बरक़रार है। दीगर मज़ाहिब में बीवाओं को नीची निगाह से देखा जाता है,लेकिन दीने इस्लाम में बीवाओं का भी ख़्याल रखा जाता है। उन्होंने कहा कि बुज़्रगाने दीन – की काविशों का नतीजा है कि हिन्दुस्तान में हमें दीने इस्लाम पहुंचाया।

उन्होंने कहा कि आज दुनिया में हर पांचवां आदमी मुसलमान है। उन्होंने कहा कि एक वक़्त ऐसा था कि मुसलमान अक़ल्लियत में रहने के बावजूद मुसलमानों के पास हुकूमत थी। अल्लाह तआला जिसे चाहता है इक़तिदार अता करता है और जिस से चाहे छीन लेता है। उन्होंने कहा कि इस्लाम तलवार के ज़ोर पर नहीं बल्कि इस्लाम किरदार के ज़ोर पर फैला है। आज इस्लाम दुश्मन क़ुव्वतें हिन्दुस्तान में फ़िर्कावाराना मुनाफ़िरत पैदा करके आपस में दुश्मनी पैदा करना चाहती हैं और इस्लाम से मुतनफ़्फ़िर करने की कोशिश की जा रही है।

उन्होंने कहा कि इस के बावजूद आज भी मसाजिद के बाहर ग़ैर मुस्लिम ख़वातीन दुआएं पढ़ाने के लिए खड़ी हुई मिलती हैं क्योंकि वो जानती हैं और उन का अक़ीदा है कि मुसलमानों के कलाम में शिफ़ा है, मुसलमानों की ज़बान पर एतबार है। एक हज़ार बरस तक हमारे पास इक़तिदार रहा,लेकिन हम ने पैग़ाम पहुंचाने का फ़रीज़ा अंजाम नहीं दिया। उम्मते मुस्लिमा के इलावा दीगर अब्ना-ए-वतन तक भी दावत पहुंचाना हमारा फ़रीज़ा है। इस इजतिमा की कार्रवाई का आग़ाज़ जनाब मुहम्मद अबदुलक़ादिर नाज़िम कारकुनान आदिलाबाद की तिलावत-ओ-तर्जुमानी से हुआ। मुहम्मद अतीक़ुर्रहमान अमीर मुक़ामी आदिलाबाद ने कन्वीनर के फ़राइज़ अंजाम दिए।