दीन इस्लाम के ग़लबा को कोई ताक़त नहीं रोक सकती

दीन इस्लाम के ग़लबा को कोई ताक़त नहीं रोक सकती चूँकि अल्लाह ने दीन के ग़लबा का वादा किया है तो फिर इस्लाम को ग़ालिब आना ही है।

अमरीका के मुमताज़ माहौलियाती साईंसदाँ-ओ-शिकागो की मस्जिद के ख़तीब सरदार अली ख़ान ने महबूब हुसैन जिगर हाल में मुनाक़िदा लेक्चर असर-ए-हाज़िर और नौजवान से ख़िताब के दौरान इन ख़्यालात का इज़हार किया।

मीटिंग की सदारत आमिर अली ख़ान न्यूज़ एडीटर सियासत ने की जबकि मौलाना ज़ुबैर हाश्मी-ओ-दुसरे मौजूद थे। सरदार अली ख़ान ने अपने तजुर्बात-ओ-मुशाहदात बयान करते हुए कहा कि अल्लाह के दीन के लिए मेहनत में इख़लास ज़रूरी है और इख़लास के ज़रीये अल्लाह की मदद हासिल होती है। उन्होंने बताया कि नौजवान नसल को क़ुरआन तजवीद के साथ पढ़नी चाहीए ताके अल्लाह के अहकाम की रूह को समझ सकीं। सरदार अली ख़ान ने कहा कि कलमा पढ़ लेने और दल के इक़रार से आदमी मुस्लमान होसकताहै लेकिन वो उस वक़्त तक मोमिन नहीं होसकता जब तक अपने रब के हर हुक्म को ना माने और दाइमी ज़िंदगी की फ़िक्र ना करे।

‍‍उन्होंने बताया कि अल्लाह ने ये बात वाज़िह करदी है कि जो नेकी होगी वो अल्लाह की तरफ से होगी और जो भी बुराई होगी वो इंसान के नफ़स की वजह से होगी । इसी लिए इंसान को चाहीए कि वो अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ अपनी ज़िंदगी गुज़ारे ताकि दाइमी ज़िंदगी को जो मौत के बाद है संवार सके।

सरदार अली ख़ान ने बताया कि अल्लाह ने इस उम्मत को भलाई का दरस देने और बुराई से रोकने वाली बनाया है इसी लिए हम पर ज़िम्मेदारी आइद होती हैके हम भलाई की दावत दें और बुराई से रोकें। उन्होंने कहा कि दरहक़ीक़त अल्लाह के अहकाम के नफ़ाज़ के लिए कोशिश करने वाले ही मोमिन हैं।

उन्होंने कहा कि अल्लाह से दुआ मांगने पर कभी मायूसी नहीं होगी । अल्लाह दुआ का अज्र किसी ना किसी सूरत में अता करता है। सरदार अली ख़ान ने बताया कि इस्लाम में दर्जा बंदी क़तई नहीं है लेकिन आख़िरत की नेअमतों को फ़रामोश करके ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं जबकि अल्लाह ने हमें बेहतरीन उखरवी ज़िंदगी का वादा किया है। उन्होंने बताया कि मुस्लमानों की मौजूदा हालत के लिए बड़ी हद तक मुस्लमान ज़िम्मेदार हैं जिस क़ौम को पहला हुक्म इक़रा का सुनाया गया वो क़ौम आज पसमांदगी का शिकवा कररही है। जिस क़ौम के हाथो में इलम के झंडे थे वो जहालत की तारीकियों में ग़र्क़ है इसी लिए हमें नमाज़ों में ख़ुशू-ओ-ख़ुज़ू पैदा करना चाहीए साथ ही किताब अल्लाह का एहतेराम करने वाले बनना चाहीए। महबूब हुसैन जिगर हाल अंदरून अहाता सियासत सामईन की बड़ी तादाद मौजूद थी।

उन्होंने नबी आख़िर-ऊज़-ज़मा ख़ातिम पैग़म्बरां हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स०) की तरफ से उम्मत को सुनाई गई ख़ुशख़बरियों का तज़किरा करते हुए कहा कि ख़ुद आक़ा(स०) ने नेकियों पर बुराईयों का ग़लबा लेकर पहुंचे वालों का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया कि मुझे उन पर अफ़सोस होता है जो दहाईयों पर इकाइयों के इज़ाफे के साथ पहुंचे हैं। उन्होंने क़ुरआन-ओ-अहादीस के हवाले से क़ौम में फ़िक्री तबदीली की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।