बिरादर मुहम्मद नजीब उद्दीन सदर एस आई ओ बगदल टाउन ने कहा है कि दुनिया का हर मुनज़्ज़म फ़र्द एक मुनज़्ज़म मक़सद रखता है। और इसी के तईं अपना वक़्त और सलाहीयतें सिर्फ़ करता है। मुस्लमानों का मक़सद अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की इबादत और इसके दीन की इशाअत है। लिहाज़ा मुस्लमानों को इस मक़सद की तक़्मील के लिए अपना वक़्त, सलाहीयत और जान-ओ-माल के साथ जद्द-ओ-जहद करना चाहीए।
बिरादर नजीब उद्दीन जामा मस्जिद बीदर में मुनाक़िदा एस आई ओ के दो माही इजतिमा को मुख़ातब कर रहे थे। उन्होंने इस पर इज़हार-ए-अफ़सोस किया कि मुस्लमान अच्छी बातें करने के आदी हैं लेकिन अच्छे काम के आदी नहीं हैं। उन्होंने बताया कि एक सच्चे मुस्लमान के क़ौल-ओ-अमल में हमेशा मुताबिक़त होती है।
हम सब से ज़्यादा बातें बनाने वाले और लाहासिल बहस-ओ-मुबाहिसा में पड़ने वाले हैं जबकि ला हासिल गुफ़्तगु से ज़हनी अय्याशी का रुजहान पैदा होता है। उन्होंने कहा कि हमें अपने मक़सद के तईं हमेशा संजीदा रहना चाहीए। उन्होंने कहा कि अल्लाह ताला ने हर शख़्स को बासलाहीयत पैदा किया है ज़रूरत है कि वो अपनी सलाहीयत को पहुंचाने और इसकी इर्तिक़ा के लिए मुनासिब मंसूबे के तहत जद्द-ओ-जहद करे।
बिरादर मुहम्मद इर्फ़ान ने क़ुरआन से हमारा ताल्लुक़ के ज़ेर-ए-उनवान तक़रीर करते हुए कहा कि क़ुरआन मजीद से बेनियाज़ी दुनिया-ओ-आख़िरत में तबाही-ओ-बर्बादी के मुतरादिफ़ है। क़ुरआन से जितना गहरा ताल्लुक़ होगा इतना ही ताल्लुक़ या अल्लाह और फ़िक्र आख़िरत में इज़ाफ़ा होगा।
मौसूफ़ ने सूरज की मिसाल देते हुए कहा कि हम सूरज की रौशनी में सिर्फ दुनिया ही देख सकते हैं लेकिन क़ुरआन मजीद की रौशनी में दुनिया और आख़िरत दोनों देख सकते हैं। बिरादर आक़िब आसल ने दरस हदीस पेश किया।