अल्लाह तआला ने रसूलों को मबऊस करने की एक बड़ी वजह यह बताई है कि वह लोगों को बशारत व खुशखबरी देने वाले और बुरे अंजाम से डराने वाले होते थे।
‘‘यह सारे रसूल खुशखबरी देने वाले और डराने वाले बनाकर भेजे गए।’’ (निसा-165)
फिर उनके नजदीक बशारत का वाजेह तसव्वुर यह होता था कि इंसान आखिरत में जहन्नुम की आग से बच जाए और जन्नत में दाखिल कर दिया जाए। इसी खुशखबरी को ही कुरआने हकीम ने बड़ी कामयाबी कहा है। मगर इस्लाम महज आखिरत ही की कामरानी की बशारत नहीं देता बल्कि इस दुनिया में भी कामयाबी का सेहरा इंसानियत के सर बंधता है, उसने अपने फरमांबरदारों को यह दुआ सिखाई है-‘‘ ऐ हमारे परवरदिगार! हम को दुनिया में भी भलाई दे आखिरत में भी भलाई दे और हमको आग के अजाब से बचा।’’ (बकरा-201)
इससे जाहिर हुआ कि अम्बिया और रसूल जिस मकसद के लिए भेजे गए उसका दूसरा हिस्सा दुनिया में दीन के गलबे की बशारत है जिसका वादा उनसे और उनपर ईमान लाने वालों से किया गया है।
‘‘और दूसरी चीज जो तुम चाहते हो वह भी तुम्हे देगा अल्लाह की तरफ से नुसरत और करीब ही हासिल हो जाने वाली फतेह। ऐ नबी अहले ईमान को इसकी बशारत दे दो।’’ (सूरा सफ्क-13)
यूं तो तमाम अम्बिया (अलैहिस्सलाम) दीन के गलबे ही के लिए जद्दोजहद और कोशिश करते रहे मगर हजरत मोहम्मद मुस्तफा (स०अ०व०) को इस फजीलत में आला तरीन मुकाम/मकाम हासिल है। कुरआने करीम में तीन बार यह आयत नाजिल फरमाई गई हैै- ‘‘वह अल्लाह ही है जिसने अपने रसूल को हिदायत और दीने हक लेकर भेजा है ताकि तमाम वह जिन्से दीन पर अल्लाह के दीन को गालिब कर दे।’’ (सफ्फ और फतेह)
बकौल हजरत शाह वली उल्लाह मुहद्दिस देहलवी यही कुरआने हकीम की मरकजी आयत है जिसके गिर्द कुरआन की तमाम आयतें गर्दिश करती हैं।
बअसते रसूल (स०अ०व०) के दो पहलू हैं- एक बअसते खास जिसमें नबी करीम (स०अ०व०) को नबी अरबी या नबी उम्मी कहकर पुकारा गया है जिसमें दीन के गलबे की कोशिश सीधे आप को अदा करनी थी। दूसरा आप (स०अ०व०) की बअसते आम जिसमें आप (स०अ०व०) को खात्मुन्नबीईन और रहमतुल आलमीन कहकर मुखातिब किया गया है और इस हैसियत से दीन के गलबे की बशारत आप (सल0) की तैयार कर्दा उम्मते मुस्लेमा के जरिए पूरी होंगी।
जहां तक आप (स०अ०व०) की बअसते खास का ताल्लुक है तो आप (स०अ०व०) ने अल्लाह की ताईद और नुसरत से अपनी जिंदगी में ही दीन को ऐसा गालिब करके दिखा दिया जिसकी मिसाल इंसानी तारीख में नहीं मिलती और वह मंजर पेशनगोई जो ‘‘नसरूम मिनल्लाहे व फतहुन करीब’’ के लफ्जों में वारिद हुई थी बदर्जा कमाल व तमाम अरब में उन्हीं अल्फाज में पूरी हुई जिसकी तस्वीर कुरआन ने सूरा नसर में खींची है। मगर आप (स०अ०व०) की बअसते आम जिसका ताल्लुक आलमी गलबे से है और जिसका जरिया उम्मते मुस्लेमा बनेगी वह भी उसी तरह पाए तकमील तक पहुंचेगी जिस तरह बअसते खास की बशारत पाए तकमील पहुंची है। मगर वह दीन के गलबे की बशारत की तकमील अभी बाकी है।
मगर अब आप जो दुनिया में एक तब्दीली देख रहे हैं कि सारी दुनिया एक गांव बन गई है तो यह उसी पूरे तौहीद के इत्माम की तैयारी है जो अल्लाह के खौफ के जरिए की जा रही है और यह जो न्यू वल्र्ड आर्डर (नया आलमी निजाम का नारा है यह अस्लन यहूदी आलम निजाम का नारा है जिसने पूरी दुनिया को आमतौर पर और उम्मते मुस्लेमा को खासतौर पर अपने फंदे में ले रखा है। मगर हकीकत में इस्लाम का मुंसिफाना निजाम आने वाला है। इंशाअल्लाह उम्मते मुस्लेमा के हाथों दीन के गलबे की बशारत की तकमील होगी और काराइन बता रहे हैं कि वह वक्त करीब आ लगा है। अल्लाह के रसूल (स०अ०व०) ने फरमाया -‘‘ तुम्हारे दीन की इब्तिदा नबुवत और रहमत से है और वह तुम्हारे बीच रहेगी जब तक अल्लाह चाहेगा। फिर अल्लाह उसको उठा लेगा। फिर नबुवत के तरीके पर खिलाफत होगी जब तक अल्लाह चाहेगा फिर अल्लाह उसे भी उठा लेगा।’’
‘‘फिर बद तरीके से बादशाही होगी और जब तक अल्लाह चाहेगा रहेगी फिर अल्लाह उसे भी उठा लेगा।’’ फिर जब्र की फरमांरवाई होगी और वह भी जब तक अल्लाह चाहेगा रहेगी फिर अल्लाह उसे भी उठा लेगा।
‘‘फिर वही खिलाफत बतरीक नबुवत होगी जो लोगों के बीच नबी की सुन्नत के मुताबिक अमल करेगी और इस्लाम जमीन में पांव जमाएगा। इस हुकूमत से आसमान वाले भी खुश होंगे।’’
‘‘होंगे और जमीन वाले भी। आसमान दिल खोल कर अपनी बरकतों की बारिश करेगा और जमीन अपने पेट के सारे खजाने उगल देगी।
इस इरशादे नबवी में पूरी इंसानियत की तारीख को पांच दौर में बांटा गया है। जिसकी इब्तिदा नबुवत व रहमत और जिसकी इंतिहा खिलाफत बतरीके नबुवत है। बीच में दो दौर हैं बद अतवार बादशाहत और जब्र की फरमांरवाई। यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि बद अतवार बादशाहत माजी का हिस्सा बन चुकी है और जब्र की फरमारवाई वह लानत है जिससे आज पूरी दुनिया परेशान हैं। जिस तरह बदतरीन दुश्मनी वह होती है जो दोस्ती के लिबास में की जाए उसी तरह बदतरीन जब्र व इस्तबदाद वह है जो आजादी व मसावात के पर्दे में किया जाए।
दीन के गलबे की बशारत के सिलसिले में दो हदीसें बड़ी वाजेह है एक तो वह हदीस है जो मसनद अहमद में हजरत मिकदाद बिन असूद (रजि०) से मरवी है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया-‘‘ दुनिया में न र्कोई इंट गारे का बना हुआ मकान बाकी रहेगा न कम्बलों का बना हुआ खेमा जिसमें अल्लाह इस्लाम को दाखिल न करेगा।’’ दूसरी हदीस सही मुस्लिम में हजरत सोबान (रजि०) की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (स०अ०व०) ने फरमाया-‘‘ अल्लाह ने मुझे पूरी जमीन को लपेट कर दिखा दिया। इसलिए मैंने उसके सारे मशरिक भी देख लिए और मगरिब भी और यकीन रखो कि मेरी उम्मत की हुकूमत उन तमाम इलाकों पर होकर रहेगी जो मुझे लपेट कर दिखाए गए हैं।’’
दौरेे हाजिर के इस मरहले पर दीन के गलबे की बशारतों की तकमील के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने वाले खुशनसीब लोगों के बारे में भी नबी करीम (स०अ०व०) से बड़ी खुशखबरियां मंकूल हैं। आप (स०अ०व०) ने फरमाया -‘‘ मेरी उम्मत में मेरे साथ सबसे ज्यादा मोहब्बत रखने वाले लोग मेरे बाद होंगे उनमें से कोई तमन्ना करेगा कि काश अपने अहल व अयाल के बदले मुझे देखे।’’ (बरिवायत हजरत अबू हुरैरा, मुस्लिम) एक मौके पर आप (स०अ०व०) ने फरमाया- ‘‘काश! मैं अपने भाइयों को देख पाता।’’ सहाबा (रजि०) ने अर्ज किया- हम आप के भाई नहीं। आप (स०अ०व०)ने फरमाया -‘‘ तुम तो मेरे दोस्त हो, मेरे भाई तो वह हैं जो बाद के जमाने में आएंगेे।’’ बशारतों की तारीख में यह पहलू बड़ा इबरतनाक है कि बाज गरोह सिर्फ बशारतों पर आस लगाए बैठे रहते हैं और अपने अंदर वह सिफात पैदा करने की कोशिश करते जो दीन के गलबे के लिए मतलूब हैं।
फिर अल्लाह किसी दूसरी जमाअत को अपनी रहमत से नवाज देता है और यह गरोह दोनों जहां की नाकामी पर अफसोस करता रह जाता है। यही बात है जिसको सूरा मायदा में इस तरह फरमाया गया है-‘‘ ऐ लोगों जो ईमान लाए हो अगर तुम में से कोई अपने दीन से फिरता है (तो फिर जाए) अल्लाह दूसरे बहुत से ऐसे लोगों को पैदा कर देगा जो अल्लाह को महबूब होंगे और अल्लाह उनको महबूब होगा जो मोमिनों पर नर्म और कुफ्फार पर सख्त होंगे, जो अल्लाह की राह में जद्दोजेहद करेंगे और किसी मलामत करने वाले की मलामत से न डरेंगे, यह अल्लाह का फजल है जिसे चाहता है अता करता है। अल्लाह वसीअ जराये का मालिक है और सब कुछ जानता है।’’ कुरआन व हदीस की रौशनी में तहरीके इस्लामी के कारकुनों को अपने फिक्र व अमल का जायजा लेना चाहिए कि हम इन सिफात से कितने करीब हैं। (डाक्टर तनवीर अहमद खां)
————बशुक्रिया: जदीद मरकज़