दीन के ख़िलाफ़ फ़ितनों का जुहूर

ख़िलाफ़त बनूअब्बास के दौर में एसे एसे दीनी और फ़िक्री फ़ित्ने सर उठाते रहे कि इस से पहले कोई मिसाल देखने में नहीं आती। ख़लीफ़ा मोतमद के दौर में क़र्रामीया का ज़हूर हुवा, ये लोग ग़ुसल जनाबत को ग़ैर ज़रूरी समझते थे, शराब को जायज़ क़रार देते थे, अज़ान के अल्फ़ाज़ में तब्दीली की, बैतुल्लाह की जगह‌ बैत-उल-मुक़द्दस को हरम समझते थे और इस की तरफ़ रुख करके नमाज़ पढ़ते। इन के नज्दीक रमज़ान के रोज़ों की जगह सिर्फ दो दिन के रोज़े थे, उन्हों ने दुनिया ए इस्लाम के तूल-ओ-अर्ज़ में हज़ारों मुसल्मानों के अक़ाइद ख़राब किए और लोगों को इंतिहाई अज़ीयतें दि। बद क़िस्मती से ख़ुलफ़ा ए बनु अब्बास ने इन का ज़ोर तोड्ने के लिए कोई कार्रवाई ना की, हत्ता कि ये लोग ख़लीफ़ा मुक़तदिर बिल्लाह के ज़माने में हज्र-ए-असवद काबा से उखाड़कर ले गए और बीस साल तक अपने क़ब्ज़े में रखा।

मुक़तदिर बिल्लाह के दौर में हुकूमत पर औरतें छाई हुई थीं और वो ख़ुद लज़्ज़त एश में खोया रहता था, बिलआख़िर उसे क़त्ल कर दिया गया। ख़लीफ़ा मुक़तदिर बिल्लाह क़त्ल-ओ-ख़ूँरेज़ी का दिल्दादा था, मुजरिमों को ज़िंदा ज़मीन में गाड़ दिया करता था। इस के दौर में अबद उल्लाह नामी एक शख़्स ने इमाम मह्दी होने का दावा किया और हुकूमत के लिए चैलेंज बना रहा। इसी ज़माने में इराक़ में अजीब-ओ-ग़रीब आंधी आई, जो पहले ज़र्द रंग की थी, फिर सबज़ रंग की हुई, इस के बाद सीयाह पड़ गई, इस के बाद आस्मान से एक चादर गिरी जो बहुत भारी थी, फिर पत्थर बरसे।

ख़लीफ़ा मोतज़िद की मौत का सबब अय्याशी और जिन्सी कजरवी थी, जिस की वजह से इस के आज़ा-ए-रईसा में अजीब तब्दीली आगई थी। तबीब ने मर्ज़-उल-मौत में इस की नब्ज़ पर हाथ रखा तो इस ने तबीब को एसी लात मारी कि वो बेचारा वहीं गिरकर हलाक हो गया, साथ ही मोतजिद की भी जान निकल गई।

ख़लीफ़ा अल क़ाहिर बिल्लाह निहायत ईज़ा पसंद और सफ़्फ़ाक था और साथ ही बला का शराबी था। कहते हैं कि जब कभी वो नेज़ा हाथ में ले लेता तो जब तक किसी को क़त्ल ना कर देता, नेज़ा हाथ से ना रखता। वो एक जुनूनी क़ातिल था। ख़लीफ़ा अल मुतीअ के दौर में इस का वज़ीर मुइज़ अलदौला इस पर छाया रहा, ये शख़्स ग़लत अक़ाइद रखता था और इस ने बग़दाद की तमाम मसाजिद के दरवाज़ों पर बाज़ सहाबा किराम पर (नऊज़-बिल-लाह) लानत पर मुश्तमिल तहरीरें लिखवा दिं, जिस पर लोगों में बहुत इज्तिराब पैदा हुआ। पहली दफ़ा इस ख़लीफ़ा के दौर में (३५२ह) यौम आशूरा के मौक़ा पर ताज़िया निकाला गया और औरतें बाल खोले हुए मातम करती हुईं बग़दाद के बाज़ारों में और गली कूचों में निकली।

इस के बाद ख़लीफ़ा मोतसिम तक बनू अब्बास के कई खल़िफ़ा आए और रुख़सत हुए। आने वाले दौर में ख़ुलफ़ा ए बग़दाद का इक़तिदार कमज़ोर होता चला गया, जब कि सल्जूक़‍ओ‍मम्लूक वग़ैरा नए हुक्मराँ दुनिया ए इस्लाम के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों पर छा गए, फिर भी सिक्का ख़िलाफ़त अब्बासिया का चलता रहा। इसी दौर में बातिनी तहरीक ने इस्लाम को नाक़ाबिल तलाफ़ी नुक़्सान पहुंचाया। ईरान में ख़िलाफ़ इस्लाम मुल्हिदाना तहरीकें चलीं, लेकिन ख़ुलफ़ा ए अब्बासिया उन्हें कुचलने में नाकाम रहे और अपनी एश-ओ-इशरत और ज़र अंदोज़ी में खोए रहे।

आख़िरी ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्लाह जिस के ज़माने में बग़दाद हलाकू के हाथों तबाह हुआ, तफ़रीह और तमाशे का रसिया था। तमाम मूअर्रीख़ीन मुत्तफ़िक़ हैं कि इस का सारा वक़्त गाने बजाने, हंसी मज़ाक़ और तफ़रीही मशागील मैं गुज़रता था। तारीख़ जहानकशाए जोईनी के मुताबिक़ सुकूत बग़दाद के बाद तातारियों को ख़लीफ़ा के शराब ख़ाने से चांदी, सोने के बरतन‌ और सूराहियाँ मिलि, जिन का कोई शुमार ना था और जब इन जुरूफ़ को इराक़-ओ-अजम के बाज़ारों में फ़रोख़त किया गया तो चांदी का भाव‌ इतना गिर गया जितना कि सीसे और क़लई का होता है। चांदी का कोई गाहक नहीं मिल्ता था।

ख़ुलफ़ाए बग़दाद की तवील फ़हरिस्त में बहुत कम नाम एसे दिखाई देते हैं, जिन्हें हराम-ओ-हलाल और हुदूद अल्लाह के मुआमले में मोहतात और परहेज़गार कहा जा सके। क़ुरान मजीद में है कि एक इंसान का क़त्ल पूरी इंसानियत का क़त्ल है, जब कि ख़ुलफ़ा ए बनू अब्बास बेगुनाह इंसानों के क़त्ल में हिचकिचाते नहीं थे। हलाल और हराम के दरमयान तमीज़ इंसान को हैवान से मुमताज़ करती है। एक बुलंद दर्जा इंसान (बादशाह और ख़लीफ़ा) से ज़्यादा तवक़्क़ो की जाती है कि वो इस फ़र्क़ को मल्हूज़ रखे, फिर इस्लाम की तो बुनियाद ही हुदूद के क़ियाम पर है। बदक़िस्मती से ख़ुलफ़ा ए बनू अब्बास का रेकोर्ड इस सिल्सिले में बहुत ही दागदार है। शराब, बेगुनाह क़तल, फ़रेब, दग़ा, बेवफ़ाई, हिर्स माल, बदअक़ीदा लोगों के साथ अग़माज़, उल्मा के ख़िलाफ़ तशद्दुद, एश-ओ-निशात और लज़्ज़त परस्ती वग़ैरा उन के नज़दीक क़ाबिल एतराज़ बातें थीं ही नहीं। हुदूद शिकनी और हराम के साथ वाबस्तगी उन के एसे जराइम थे कि चंगेज़ और हलाकू की शक्ल में बुलाए अज़ाब उन पर नाज़िल हुई, जिस का नुक़्सान पूरी उम्मत को बर्दाश्त करना पड़ा।