दीन से दूरी के सबब मुआशरा में अख़लाक़ी बोहरान

जनाब अहमद अबदुल हलीम नाज़िम इलाक़ा जमात-ए-इस्लामी हिंद इलाक़ा तेलंगाना आंधरा प्रदेश ने जमात-ए-इस्लामी हिंद शहर निज़ामाबाद के मर्कज़ी इजतिमा मुनाक़िदा मस्जिद रज़ा बेग अहमद से ख़िताब करते हुए कहा कि सूरा निसा की आयात अक्सर निकाह के मौक़ा पर पढ़ी और सुनी जाती है।

ग़ैर इस्लामी रसूमात को हम ने दीन इस्लाम में शामिल कर लिया है। तरक़्क़ी करने के साथ साथ शदीद अख़लाक़ी बोहरान में मुब्तला हैं। जबकि कसीर आबादी सतह ग़ुर्बत से नीचे ज़िंदगी गुज़ार रही है बच्चों की तालीम का कोई निज़ाम नहीं है ना इंसाफ़ी ज़ुलम-ओ-ज़्यादती ख़वातीन का इस्तेहसाल ये अख़लाक़ी बोहरान की मिसाल है ये मग़रिबी तहज़ीब की देन है।

इंटरनेट और सेल फोन्स के इर्तिक़ा ने हमारे मुल़्क की बुनियादों को खोखला कर दिया। शादी ब्याह के ग़ैर इस्लामी रसूम( रस्म) को अपना लिया। अब बुराई को बुराई नहीं समझा जा रहा है, वालदैन के क्या हुक़ूक़ हैं बच्चों के क्या हुक़ूक़ हैं एक दूसरे को मालूम नहीं।

सही तर्बीयत ना होने की वजह से औलाद वालदैन के हुक़ूक़ से नाबल्द है। तालीम के ना होने की वजह से मामूली सी बात पर तलाक़ और खुला हो जाते हैं। Old Age Home की तादाद बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है। माँ बाप अपनी ज़िंदगी की आख़िरी सांसें यहां ले रहे हैं। नौजवानों में बिगाड़ है रिश्तों के दरमयान तनाव, बीवी और रिश्तेदारों से तनाव हत्ता कि मौज़ान और इमाम और कमेटीयों के दरमयान तनाव, मुहब्बत से ना आशना हमारी औलाद किस तरह से वो तहरीक इस्लामी के आयेंगे।

इस सूरत-ए-हाल में इस्लाम क्या कहता है। अक़द के दौरान जो आयत पढ़ी जाती है एक नया ख़ानदान वजूद में आता है क्या इस्लामी ख़ानदान में हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त, बीवी की इज़्ज़त, शौहर की इज़्ज़त और माल की हिफ़ाज़त, मियां बीवी की मुहब्बत ऐसा ख़ानदान ख़ुशहाल ख़ानदान महसूस करता है। आज घर जहन्नुम है मुसीबतज़दा घर बन गया है बहैसीयत औरत इस्लाम ने माँ का मुक़ाम बहन का मुक़ाम बीवी का मुक़ाम दिया है।

माँ बाप की ख़िदमत करके जन्नत में जाना दो दरवाज़े हैं जिस दरवाज़े से चाहो जन्नत में जाओ बीवी शरीक-ए-हयात है। आज बीवी को बांदी बनाकर रखा गया बहन अगर बेवा है तो भाईयों की ज़िम्मेदारी है कि इसकी कफ़ालत करे बहैसीयत मर्द व शौहर, बहैसीयत मर्द वो भाई का मुक़ाम इस्लाम देता है।

इन सारी बातों को मद्द-ए-नज़र रखते हुए अपने ख़ानदान की तर्बीयत करना चाहीए। जैसा कि क़ुरआन में कहा गया कि बचाओ अपने अहल-ओ-अयाल को दोज़ख़ की आग से, बड़ी भारी ज़िम्मेदारी हम पर है कल मह्शर में अल्लाह ताला हम से पूछेगा। हमारे घर तहरीक इस्लामी से जुड़ जाएं, ये काम पूरी उम्मत मुस्लिमा का है और मिल्लत को बेदार करना है आख़िर में मुहतरम की दुआ पर इजतिमा का इख़तेताम अमल में आया।