शेख़ उल-इस्लाम प्रोफ़ेसर मुहम्मद ताहिर उल-क़ादरी ने मुस्लमानों को तलक़ीन की कि वो दुनिया-ओ-आख़िरत में कामयाबी-ओ-कामरानी के लिए सिदक़ दिल से हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) से अपना रिश्ता और ताल्लुक़ मज़बूत करें । अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी आज रात क़ुली क़ुतुब शाह स्टेडीयम मैं दरस-ए-हदीस के मौक़ा पर ख़िताब कर रहे थे । इदारा मिनहाज उल-क़ुरआन के ज़ेर-ए-एहतिमाम दो रोज़ा दरस-ए- हदीस सहाह सत्ता का एहतिमाम किया गया था। आज दरस-ए-हदीस का दूसरा दिन था जिस में हज़ारों की तादाद में तिशनगान इलम-ए-दीन ने शिरकत की । अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने कहा कि जो शख़्स सिदक़ दिल से आक़ाए नामदार (स०अ०व०) से अपने रिश्ता को जोड़ता है तो उस की मदद के लिए हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) तड़प उठते हैं ।
उन्हों ने कहा कि आक़ाए मदीना हमेशा ही अपनी उम्मत के बारे में इस तरह फ़िक्रमंद रहे जिस तरह एक माँ अपने बच्चों के लिए तड़पती हैं और अगर कोई शख़्स सिदक़ दिल से उन से अपने ताल्लुक़ को जोड़ लेता है और इत्तिबा सुन्नत को अपना शआर(तरीका) बनाए तो दुनिया-ओ-आख़िरत में कामयाबी उस के क़दम चूमे गी । अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने क़ुरआन-ओ-हदीस के हवाले से हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) से दुआ में वसीले का सबूत पेश किया । उन्हों ने सूरा निसा-की आयत मुबारका का हवाला दिया जिस में इरशाद बारी तआला है कि जो अपनी जानों पर ज़ुलम करें और मेरे महबूब की बारगाह में आजाए फिर मुझ से माफ़ी तलब करें और रसूल पाक (स०अ०व०) भी उन की सिफ़ारिश करदें तो मुझे तौबा क़बूल करने वाला और रहम करने वाला पाएंगे । इस आयत मुबारका में अल्लाह तआला ने गुनाहों से इस्तिग़फ़ार के लिए हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) के वसीले को लाज़िम क़रार दिया है ।
उन्हों ने कहा कि इस आयत में हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) की बारगाह में हाज़िरी और माफ़ी तलब करने की हिदायत दी गई और बारगाह मुस्तफ़ा को वसीला बनादिया गया। अगर किसी गुनाहगार की आक़ा सिफ़ारिश करदें तो ये उस के लिए वसीला भी हो गया और शफ़ाअत भी ।उन्हों ने कहा कि अल्लाह तआला दुवाओं की क़ोबूलीयत के लिए वसीला का मुहताज नहीं है लेकिन हम गुनाहगारों के लिए वसीला ज़रूरी है । अल्लाह तआला वसीला के बगै़र भी दुवाओं को क़बूल करता है लेकिन क़ुरान-ए-पाक में ता क़यामत अल्लाह तआला ने दुवाओं की क़ोबूलीयत के लिए वसीला को मुस्लमानों के लिए बेहतर क़रार दिया है ।
वसीला के बगै़र भी अल्लाह तआला दुवाओं को सुनता है लेकिन वसीला के सबब दुवाओं की क़ोबूलीयत और अल्लाह तआला की अता बढ़ जाती है। क़ुरआन मजीद की ये आयत का इतलाक़ उम्मत मुस्लिमा पर ता क़यामत है और इस का फ़ैज़ ताक़यामत जारी रहेगा। अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने कहा कि अहादीस मुबारका में भी ये बात साबित हुई है कि हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) के हयात और आप के पर्दा फ़रमाने के बाद भी आप (स०अ०व०) का वसीला दुवाओं की क़ोबूलीयत का अहम ज़रीया है । शेख़ उल-इस्लाम ने कहा कि आजकल मुतआला की कमी के बाइस लोग गुमराही का शिकार हैं और आइमा किराम की जानिब से पेश की गई अहादीस और दलाएल को कमज़ोर और ज़ईफ़ क़रार देते हुए इनकार कर रहे हैं। जो बातें उन के दिल-ओ-दिमाग़ में रच बस गई हैं इसी के मुताबिक़ अक़ाइद को इख़तियार कर रहे हैं ।
अल्लामा ने कहा कि तमाम आइमा किराम और मुहद्दिसीन ने हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) के पर्दा फ़रमाने के बाद भी आप का वसीला जारी रहने पर इत्तिफ़ाक़ किया है।अल्लामा ने इमाम तिरमिज़ी की जानिब से किताब उल दावात में नक़ल की गई हदीस का हवाला दिया गया जिस में हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) ने दुआ की क़ोबूलीयत के लिए इन का वसीला इख़तियार करने का हुक्म दिया है। नेसाई और इबन-ए- माजा ने भी इस हदीस को नक़ल किया है । तमाम आइमा हदीस ने उसे सही हदीस क़रार दिया , इस से इख़तिलाफ़ या इनकार की कोई गुंजाइश नहीं । हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) ने दुवाओं की क़ोबूलीयत के लिए जो दुआ सीखाई है वो दुवाऐ वसीला और वसीला तवस्सुल है।
हदीस पाक के मुताबिक़ हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) ने जिस दुआ की ताकीद फ़रमाई गई इस में कहा गया कि ए अल्लाह मैं तुझ से सवाल करता हूँ हुज़ूर के वसीला और वास्ते से रुजू होता हूँ । इस के बाद हुज़ूर (स०अ०व०) का नाम लेकर आप (स०अ०व०) के वसीला से अपनी हाजत की तकमील की दुआ की जाय । इस हदीस पाक से हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) का तवस्सुल और इस्तिआनत(मदद) साबित होती है । इमाम बुख़ारी ने इस हदीस पाक को नक़ल किया है। अल्लामा इबन तिमियाह ने भी मजमू उल फ़तावा में इस हदीस को ब्यान किया है । अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने कहा कि तवस्सुल पर इख़तिलाफ़ करना दरअसल इजमाए उम्मत और सुन्नत रसूल से इख़तिलाफ़ करना है और ये 200 साल के आइमा हदीसके मज़हब के ख़िलाफ़ है।
उन्हों ने कहा कि सिर्फ आमाल सालिहा के ज़रीया तवस्सुल पर इकतिफ़ा-ए-नहीं किया जा सकता , अगर ऐसा ही होता तो आक़ाए नामदार (स०अ०व०) दुआ के ज़रीया अपने वसीले की हिदायत नहीं देते जिस तरह आमाल सालिहा का वसीला हक़ है इस से कहीं ज़्यादा ज़ाते मुस्तफ़ा (स०अ०व०) का वसीला हक़ है क्योंकि जो अमल भी सालिह क़रार पारहा है वो वसीला मुस्तफ़ा (स०अ०व०)के सबब है । अगर अमरे रसूल ना होता तो आमाल सालिह नहीं कहलाए जाते । अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने कहा कि अमल सालिह का वसीला जायज़ है तो इस अमल को जिस ने सालिह बनाया इन का वसीला कैसे जायज़ नहीं। उन्हों ने कहा कि अगर वसीला मुस्तफ़ा ना होता तो आमाल सालिह और मक़बूल ना बनते ।
अगर आमाल सुन्नत नबवी ना होते तो आमाल सालिहा नहीं कहिलाए जाते । अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने हज़रत उसमान ग़नी रज़ी अल्लाहो तआला अनहो के दौर का एक वाक़िया ब्यान किया जिसे हज़रत सहल बिन हनीफ़ ने रिवायत किया है जिस में बताया गया कि एक शख़्स की हज़रत उसमान ग़नी रज़ी अल्लाहो तआला अनहो के दरबार सुनवाई नहीं हो रही थी , उस की मुलाक़ात हज़रत उसमान बिन हनीफ़ से हुई उन्हों ने दो रकात नफ़ल नमाज़ अदा करते हुए हुज़ूर के वसीले के साथ दुआ की तरग़ीब दी। नमाज़ की अदायगी के बाद वो शख़्स जब हज़रत उसमान ग़नी रज़ी अल्लाहो तआला अनहो के दरबार में पहुंचा तो उस की हाजत की फ़ौरन तकमील करदी गई।
अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने सूरा निसा- की आयत का हवाला देते हुए कहा कि अपनी जानों पर ज़ुलम करने वाले अफ़राद की माफ़ी हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) की सिफ़ारिश के बगै़र अल्लाह तआला भी क़बूल नहीं करता । मौलाना काज़िम पाशाह कादरी निगरान मजलिस ने अपने ख़िताब में अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी की दीनी ख़िदमात को ज़बरदस्त ख़िराज-ए-तहिसीन पेश किया और कहा कि मौजूदा दौर में मुदल्लल दलायल के साथ इलम हदीस के फ़रोग़ में अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी का अहम रोल है । प्रोफ़ेसर अलीम अशर्फ़ जाइसी ने भी मुख़ातब किया। हाफ़िज़-ओ-क़ारी मुहम्मद रिज़वान क़ुरैशी इमाम मक्का मस्जिद ने कराअत पेश की । जबकि हबीब महमूद अल-हुसैनी और उन के साथीयों ने नाअत रसूल मक़बूल का नज़राना पेश किया।
दरस –ए-हदीस के मौक़ा पर क़ुली क़ुतुब शाह स्टेडीयम तंग दामनी का शिकवा कररहा था। शहनशीन पर मौलाना ग़ौस मुही उद्दीन कादरी आज़म पाशा , मौलाना क़ाज़ी सय्यद आज़म अली सूफ़ी , मौलाना फ़सीह उद्दीन निज़ामी , मौलाना हसीब उद्दीन शरफ़ी , मौलाना रिज़वान पाशा कादरी और दीगर उल्मा-ओ-मशाइख़ मौजूद थे।