दुनिया की नेअमतें

हज़रत उबैदुल्लाह बिन मोहसिन रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम(स०अ०व०)ने फ़रमाया तुम में से जो शख़्स इस हाल में सुबह करे कि वो अपनी जान की तरफ़ से बेखौफ हो (ज़ाहिरी तौर पर भी और बातिनी तौर पर भी)

इसका बदन दुरुस्त-ओ-बाआफ़ीयत हो और इसके पास हलाल ज़रीया से हासिल किया हुआ एक दिन की बक़दर ज़रूरत ख़ुराक का सामान हो तो गोया इसके लिए तो कम दुनिया (की नेअमतें) जमा कर दी गई हैं। (तिरमिज़ी)

वो अपनी जान की तरफ़ से बेखौफ हो का मतलब ये है कि उसको अपने किसी दुश्मन की तरफ़ से किसी नुक़्सान-ओ-ज़र का ख़दशा ना हो या ये कि बुरे कामों से बचने और अपनी लग़ज़िशों पर ख़ुदा से तौबा कर लेने की वजह से इन आफ़ात से बेखौफ हो, जो अज़ाब ए इलाही के तौर पर नाज़िल होती हैं।

वाज़िह रहे कि हदीस ए शरीफ़ में लफ़्ज़ सिर्ब इस्तेमाल हुआ है, जो नफ्स, रास्ता, हाल और दिल, इन सब के मानी में इस्तेमाल होता है। अगर यहां हदीस में इस लफ़्ज़ से इन सब चीज़ों को मुराद लिया जाए तो ये भी मंशा ए हदीस के मुनासिब होगा।

इस सूरत में मतलब ये होगा कि जो शख़्स इस हाल में सुबह को उठे कि उसको मज़कूरा चीज़ों के बारे में किसी नुक़्सान-ओ-ज़र का कोई ख़ौफ़-ओ-ख़दशा ना हो। बाअज़ हज़रात ने सरब यानी सीन और रे दोनों पर ज़बर पढ़ा है।

अगर इस क़ौल को भी सही मान लिया जाये तब भी मंशा ए हदीस के मुनाफ़ी नहीं होगा। इस सूरत में इसका मतलब ये होगा कि जो शख़्स इस हाल में सुबह को उठे कि इसके घर के बिलों और सूराखों में रहने वाले चूहों और लोमड़ियों वग़ैरा की तरफ़ से, जो आफ़ात ए ज़माना में से हैं, उसको किसी नुक़्सान-ओ-ज़रका कोई ख़ौफ़ और ख़दशा ना हो।