हैदराबाद २८ मई (रास्त) इस्लाम के आफ़ाक़ी पैग़ाम को ग़ैर मुस्लिमों तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी मुस्लमानों पर ही। दावत को पेश करने से क़ब्ल मदऊ के अफ़्क़ार, नज़रियात और नफ़सियात को समझना ज़रूरी ही। तब ही वो हमारी बात को सुनने और ग़ौर-ओ-फ़िक्र करने पर आमादा होगा। अब दुनिया के हालात करवट ले रहे हैं।
हक़-ओ-बातिल नज़रियात में दिन बदिन कश्मकश बढ़ती जा रही है। हमारे मुल्क में भी फ़सताई ताक़तें इस्लामी तालीमात को तोड़ मरोड़ कर पेश कररही हैं। स्कूल और कॉलिज के तलबा के ज़हनों में इस्लाम दुश्मनी का ज़हर घोला जा रहा ही। इन हालात में मुस्लमानों केलिए ज़रूरी है कि वो दुनिया के सामने इस्लाम की हक़ीक़ी तस्वीर पेश करें। इस्लाम तो सारे आलम में अमन क़ायम करने के लिए है इस का बदअमनी से किया ताल्लुक़। जनाब अहमद हुसैन मिला सैक्रेटरी दावৃ सेल कर्नाटक ने कान्फ़्रैंस हाल मस्जिद अज़ीज़ ये हुमायूँ नगर मह्दी पटनम में इन ख़्यालात का इज़हार किया।
इस इजतिमा आम का एहतिमाम जमात-ए-इस्लामी हिंद नामपली ने किया था। जिस में मर्द-ओ-ख़वातीन की कसीर तादाद ने शिरकत की। इस मर्कज़ी हफ़तावारी इजतिमा का आग़ाज़ जनाब मुहम्मद रज़ी उद्दीन की तिलावत क़ुरआनमजीद-ओ-उर्दू तर्जुमानी से हुआ। जनाब हामिद मुहम्मद ख़ान सदर एम पी जे ने मेहमान ख़ुज़ू सी की हैसियत से शिरकत की।
अमीर मुक़ामी जमात-ए-इस्लामी हिंद नामपली नेख़िताब करते हुए कहाकि हम उमूमन दूसरों को देखते हैं और अपने आप को भूल जाते हैं लेकिन जब हम दावत का काम अंजाम देते हैं तो लोग हमारी कमज़ोरीयों और ख़ामीयों की निशानदेही करते हैं। काम के दौरान लोग मुख़्तलिफ़ सवालात करते हैं इन को मुतमइन करने की ख़ातिर हमें क़ुरआन-ओ-हदीस दीगर उलूम का मुताला करना पड़ता है और जबइलम आता है तो बंदा अमल की जानिब ज़रूर मुतवज्जा होता ही। मौलाना अबवालाअली मोदोदीऒ के हवाला से उन्हों ने कहाकि हमारे कारकुनों का असल मैदान तो दावत है।
जनाब अहमद हुसैन मिल्ला ने दावत इस्लामी और इस के तक़ाज़ी के मौज़ू पर इज़हार-ए-ख़्याल करते हुए कहाकि दावत का मोस्सर ज़रीया क़ुरआन मजीद ही। कुछ ना आता हो तोक़ुरआन पढ़ कर सुना दी। इस के इलावा सीरत उन्नबी ई और आप का उसोह हसना ग़ैर मुस्लिमों के सामने पेश करें। जैसे आप लोगों के साथ किस तरह पेश आते , उन की ज़्यादतियों को किस तरह दरगुज़र फ़रमाते और अपने पड़ोसियों के साथ किस तरह सुलूक करती। उन्हों ने कहाकि दावत का आग़ाज़ अपने नफ़स और घर से करें माँ बाप की ख़िदमत करें, रिश्तेदारों के साथ सिला रहमी करें और अपने पड़ोसीयों से अख़लाक़, मुहब्बत और मुरव्वत से पेश आएं। ग़म और ख़ुशी के मौक़ों पर इन का साथ दें।