दुनिया को इस्लामी रहनुमाई और बसीरत की ज़रूरत

मक्का मुअज़्ज़मा 02 नवंबर (एजैंसीज़) ख़ादिम उल-हरमीन शरीफ़ैन, शाह अबदुल्लाह ने कहा है कि दुनिया को इस्लाम से रहनुमाई और बसीरत की ज़रूरत है और मुस्लमानों को चाहीए कि वो इस बात को यक़ीनी बनाने के लिए सख़्त मेहनत से काम करें ।

शाह अबदुल्लाह आज यहां दावत् हाल और मुस्तक़बिल के ज़ेर-ए-उनवान बारहवीं मक्का कान्फ़्रैंस से मुख़ातब थे । ख़ादिम उल-हरमीन शरीफ़ैन का ये बसीरत अफ़रोज़ ख़िताब गवर्नर मक्का मुअज़्ज़मा शहज़ादा ख़ालिद अल-फ़ैसल ने पढ़ा।

ख़ादिम उल-हरमीन शरीफ़ैन ने मुस्लमानों से कहा कि वो सरगर्मी के साथ इस बात का जायज़ा लें कि अयाँ किस हद तक मूसिर अंदाज़ में वो इस्लाम के पैग़ाम को मा बाक़ी दुनिया तक पहुंचा रहे है।

मुस्लमानों को चाहीए कि वो अपने दरमयान मुनासिब अंदाज़ में बाहमी रब्त ज़बत ताल मेल को यक़ीनी बनाईं और इस के साथ सारी दुनिया का अहाता करें। बारहवीं मक्का कान्फ़्रैंस का मुस्लिम वर्ल्ड लीग (ऐम डब्लयू ईल) ने एहतिमाम किया था।

ममलकत सऊदी अरब के मुफ़्ती-ए-आज़म शेख़ अबदुलअज़ीज़ बिन अबदुल्लाह ऑल उल-शेख़ सदर नशीन सीनीयर उल्मा बोर्ड मज़हबी तहक़ीक़-ओ-इफ़्ता इंतिज़ामीया ने निगरानी की ।

शाह अबदुल्लाह ने मज़ीद कहा कि इस्लामता क़ियामत सारी बनीनौ इंसान के लिए एक आफ़ाक़ी पैग़ाम रहेगा और उम्मत मुस्लिमा की ये ज़िम्मेदारी है कि वो आलमगीर सतह पर दावत-ओ-तब्लीग़ के ज़रीया बनीनौ इंसान तक इस्लाम का पैग़ाम पहुंचाएं।

उन्हों ने मज़ीद कहा कि मक्का कान्फ़्रैंस एक ऐसे वक़्त मुनाक़िद हो रही हैं जबकि मक्का मुअज़्ज़मा में हज के लिए दुनिया भर से लाखों मुस्लमान जमा हुए हैं, शाह अबदुल्लाह ने कहा कि ममलकत सऊदी अरबिया तमाम आज़मीन के कामयाब और महफ़ूज़ हज को यक़ीनी बनाने की मुम्किना कोशिश कर रही है।

ख़ादिम उल-हरमीन शरीफ़ैन ने कहा कि असर-ए-हाज़िर की इंसानियत ग़ैरमामूली माद्दी और टैक्नालोजी की तरक़्क़ियों के बावजूद रुहानी खुला की शिकार ही। आलमी सतह पर इंसानों के लिए कोई जिहत नहीं है और आम इंसान के अंदर ख़ुद अपने आप के ख़िलाफ़ बग़ावत जैसी सूरत-ए-हाल पैदा होगई ही। सिर्फ दीन इस्लाम की रहमत, रोशनी और हिदायात ही हर इंसान को दुनिया और आख़िरत के लिए सही रहनुमाई कर सकती हैं।

शाह अबदुल्लाह ने कहा कि इस्लाम ही अपने जामि क़ुदरती-ओ-रुहानी इक़दार और मुतवाज़िन नज़रिया-ए हयात के ज़रीया-ए-बनीनौ इंसान को इस का मौजूदा कर्बनाक और मुस्तर्द रवैय्या बदलने में रहनुमाई कर सकता है।

इस के ज़रीया ना सिर्फ आला रुहानी इक़दार का हुसूल मुम्किन है बल्कि जायज़ माद्दी फ़वाइद-ओ-ख़ाहिशात का तहफ़्फ़ुज़ भी मुम्किन हो सकता है।

ख़ादिम उल-हरमीन शरीफ़ैन ने अपने पयाम के आख़िर में दुनिया भर के मुस्लमानों पर फिर एक बार ज़ोर दिया कि वो ये बताने के लिए सख़्त मेहनत से काम करें कि देन इस्लाम किस तरह सारी दुनिया को क़ियादत फ़राहम कर सकता है।

उन्होंने कहा कि इस्लाम की ख़िदमत के लिए ममलकत सऊदी अरब की जानिब से अज़ीम ख़िदमात अंजाम दी जा रही हैं।दीन इस्लाम के आलमी सतह पर दावत-ओ-तब्लीग़ की सरगर्मीयों को दुनिया भर में आम करने बिलख़सूस ऐसे ममालिक में जहां मुस्लमानों की आबादी कम या नहीं के बराबर है , वहां के अवाम तक दीन इस्लाम का पैग़ाम पहुंचाने और इस्लामी तालीमात से रोशनास करवाने की ग़रज़ से इस मुहिम की सरपरस्ती की जाती है जिस के मुसबत नताइज बरामद हो रहे हैं।