गुनाहगार, नबी करीम (स०अ०व०) की लानत का मुस्तहक बन जाता है। नबी करीम (स०अ०व० ) ने बाज गुनाह करने वालों पर हदीस पाक में लानत फरमाई है। मसलन जो औरत गैर औरत के बालों को अपने बालों में मिलाकर बंटा करे, इस तरह का फैशन करे कि शोपीस बन जाए तो नबी करीम (स०अ०व०) ने हदीस पाक में ऐसी औरत के ऊपर लानत फरमाई है।
हदीस पाक में नबी करीम (स०अ०व०) ने सूद लेने वाले पर देने वाले पर, लिखने वाले पर, गवाह बनने वाले पर इन सबके ऊपर लानत फरमाई है। सूद की इतनी बेबरकती होती है कि बता नहीं सकते। मैंने अपनी जिंदगी में कम से कम दर्जनों लोगों को सूद की वजह से डूबते हुए देखा है।
सूद से जो जितना बचेगा उतना ही वह दुनिया के अंदर खुशियों भरी जिंदगी गुजारेगा। कुरआने मजीद में है कि अगर कोई बंदा सूद बन्द नहीं करता अल्लाह तआला फरमाते हैं कि वह अल्लाह तआला और उसके रसूल के साथ जंग करेगा। तो फिर क्या बनेगा? इसलिए हमारे मशायख ने फरमाया कि अगर किसी बंदे का सूद बनता भी हो तो वह उसको लेकर कहीं लैट्रीन बनती हों तो वहां लगा दे और उसपर अज्र का दिल में इरादा भी न करे। यह भी न सोंचे कि मुझे अज्र मिलेगा, नहीं यह तो मुसीबत से जान छुड़ा रहा हूं।
इसी तरह बिला वजह तस्वीर बनाने वाले पर अल्लाह के महबूब ने लानत फरमाई यह तो तफरीहन तस्वीर बनाते हैं। यह शरीअत में नाजायज है। एक है शिनाख्ती कार्ड के लिए तस्वीर बनाना, उलेमा ने इसको मजबूरी कहा है। पासपोर्ट बनवाना, कार्ड बनवाना है, गैर मुल्कों के सफर हैं, हज उमरे का सफर है तो यह वक्त की मजबूरी है। लेकिन शादी ब्याह के तस्वीर बनवाने या औरत मर्द की तफरीहन तस्वीरें बनवाना हराम है और जिस घर में तस्वीरें हो उस में अल्लाह की रहमत का फरिश्ता नहीं आता।
इसी तरह जो मशरूत हलाला करे यानी निकाह से पहले नीयत हो या पहले से ही तय हो जाए कि निकाह कर लेते हैं इतने दिनों बाद मैं तलाक दे दूंगा।
एक और हदीस में फरमाया कि जो मुसलमान पर लोहे के साथ इशारा करे हमले का, इशारा चाकू का, इशारा तीर का, इशारा बंदूक का तो सिर्फ इशारा करने वाले पर भी अल्लाह के महबूब ने लानत फरमाई है। इशारा करने वाले पर भी और अगर मुसलमान को जख्म पहुंचाए या कत्ल कर दे अल्लाह अकबर, जितना नाराजगी का इजहार अल्लाह तआला ने इस गुनाह पर किया उतना नाराजगी का इजहार किसी गुनाह पर नहीं किया।
अब देखिए! जिसने जान बूझ कर मोमिन को कत्ल कर दिया उसकी सजा जहन्नुम है। इतनी बात कर दी जाती तो बहुत था कि जहन्नुम में पहुंच गया। नहीं हमेशा हमेशा जहन्नुम में रहेगा। अब भाई इतना ही कह दिया जाता तो बहुत था। उस पर अल्लाह का गजब होगा और इतना ही कह दिया जाता तो भी बहुत था। नहीं और अल्लाह की लानतें होंगी।
इतना अल्लाह तआला ने गुस्से का इजहार किसी गुनाह पर नहीं फरमाया और आज इसको मामूली बात समझते हैं, महफिल में बैठे हुए बात करते हुए जेब से कोई चीज निकाल कर रख देते हैं यह मोमिन की तरफ इशारा करने के बराबर है।
नबी करीम (स०अ०व०) ने लानत फरमाई शराब पीने वाले पर, पिलाने वाले पर, निचोड़ने वाले पर, बेचने वाले पर, खरीदने वाले पर और लाद कर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने वाले पर यह उम्मुल खबाइस है यह एक गुनाह नहीं होती यह गुनाहो का दरवाजा खोल देती है जो लोग समुन्दर में नहीं डूबते वह बोतल में डूब जाते हैं। बहुत बुरी आदत है और अक्सर यह बुरे दोस्तो से पड़ती है और एक बार जायका चखवाते हैं टेस्ट तो करो और उसी में बंदे की जिंदगी तबाह हो जाती है।
इसीलिए लैलतुल कद्र में बड़े बड़े गुनाहों की मगफिरत हो जाती है शराब पीने वाला जब तक तौबा न करे अल्लाह उसकी मगफिरत नहीं फरमाते, नशावर बाकी चीजे वह भी इसी पर कयास कर लेनी चाहिए। क्योंकि आज के दौर में फकत शराब का नशा ही नहीं बहुत सी चीजों का नशा आ गया है।
नबी करीम (स०अ०व०) ने चोर पर लानत फरमाई है अपने वालिद को बुरा-भला कहने वाले पर, गुस्से में बाप को गालियां निकालने वाले पर लानत फरमाई है, बेमकसद जानदार को मारना एक तो होता है किसी मकसद की वजह से शिकार किया यह जायज है लेकिन बेमकसद मारना किसी जानदार को नबी करीम (स०अ०व०) ने लानत फरमाई। गैर अल्लाह के नाम पर जानवर को जिबह करने वाले पर अल्लाह के महबूब ने लानत फरमाई। वह मर्द जो औरतो की मुशाबहत करे और वह औरते जो मर्दों की मुशाबहत करें अल्लाह के महबूब ने उनपर भी लानत फरमाई।
जो शख्स दीन में कोई नई बात निकाले बिदअत कोई पैदा करे उसका जरिया बने अल्लाह के महबूब ने उस बंदे पर भी लानत फरमाई। जो शख्स बीवी के साथ गैर फितरी अमल करे अल्लाह के महबूब ने उस पर भी लानत फरमाई। जो लूती अमल करे उस पर भी लानत फरमाई है। जो जानवर से जमाअ करे उस पर भी लानत फरमाई। जो इंसान मुसलमान को धोका दे अल्लाह के महबूब ने उस पर भी लानत फरमाई है और एक बड़ी अहम बात कि जो शख्स बीवी को खाविंद के खिलाफ भड़काए या गुलाम को आका के खिलाफ भड़काए अल्लाह के महबूब ने उस पर भी लानत फरमाई है और इसमें बड़े-बड़े शरीफ शामिल हो जाते हैं।
वह कैसे कि दामाद पसंद नहीं आया बेटी रहना भी चाहती है तो बाप समझाएगा छोड़ दो, मां समझाएगी छोड़ दो, बहन समझाएगी छोड़ दो, यह सब इसी हदीस में शामिल हैं। जब बीवी रहना चाहती है तो किसी को हक नहीं पहुंचता कि वह उस बीवी को अपने खाविंद से दूर करने की कोशिश करे और यह गुनाह बहुत बड़ा है।
आजकल सहेली के हालात सुने जरा तबीयत के मुताबिक नही थे उसको मश्विरा दिया तुम कुछ और सोंचो, भाई की तबियत बहनोई के साथ नहीं मिलती, बहन के सामने आकर उसके शौहर की ऐसी बुराइयां की कि बहन का दिल उचाट हो जाता है। कोई बंदा जो ऐसी बात करे जिससे मियां-बीवी के बीच फासला आ जाए उसपर अल्लाह तआला के महबूब की लानत होती है और यह ऐसा गुनाह है कि इसको गुनाह ही न हीं समझा जाता।
याद रखे मियां-बीवी को मिलकर रहना अल्लाह को इतना पसंदीदा है कि देखने में झूट कबीरा गुनाह है। मगर अल्लाह ने मियां-बीवी के मिलाप की खातिर अपने इस हक को भी माफ कर दिया। फरमाया जो नाराज मियां-बीवी में सुलह करवाने के लिए अगर कोई झूट की बात भी कर देगा मैं उस झूट को भी माफ कर दूंगा। तो मियां-बीवी का मिल कर रहना अल्लाह को इतना पसंद है कि अल्लाह ने अपना हक माफ कर दिया।
हम कौन होते हैं मियां-बीवी के बीच फासला करने वाले। इसी तरह जो औरते कब्रों पर जाएं सजदा करे, चिराग जलाएं रसूमात करे अल्लाह के महबूब ने उन औरतो पर भी लानत फरमाई है। इसी तरह जो बीवी अपने शौहर से नाराज होकर अलग सोए, अल्लाह के महबूब ने फरमाया कि अल्लाह और फरिश्ते उस वक्त तक लानत करते रहते हैं जब तक कि वह शौहर के पास नहीं आ जाती।
अब आजकल की औरतों को मसायल का पता नहीं होता यह मियां-बीवी के मामले को टैक्स के तौर पर इस्तेमाल करती है। मर्द मिलना चाहता है ना ना करके उसको मजबूर कर देती हैं, अपनी बातें मनवा कर फिर उसकी बात मानती हैं। यह कबीरा गुनाह है। यह जरा सी किसी बात पर मुंह बनाकर अलग होकर सो जाना अल्लाह के फरिश्तों की लानत होती है।
इसी तरह जो बंदा जमीन में फसाद मचाएगा अल्लाह के महबूब ने उस पर लानत फरमाई। जो सहाबा को बुरा कहे अल्लाह के महबूब ने उस पर भी लानत फरमाई। जो रिश्तेदारियों को तोड़ता फिरे मामूली-मामूली बात पर बहन से नहीं बोलना, भाई से नहीं बोलना, चचा से नहीं बोलना, फूूफी से नहीं बोलना, जिन रिश्तेदारियों को अल्लाह ने जोड़ने का हुक्म दिया जो उनको तोड़ेगा अल्लाह के महबूब की उस पर लानत होगी बल्कि महबूब ने फरमाया जो तुझ से तोड़े तू उससे जोड़ो।
वह आलिम जो अल्लाह के एहकाम को छुपाए उसका इजहार न करे अल्लाह के महबूब ने उसपर भी लानत फरमाई। वह मुसलमान जो मुसलमानों के मुकाबले में काफिरों का साथ दे अल्लाह के महबूब ने उस पर भी लानत फरमाई और वह आदमी जो नेक लोगों पर तोहमत लगाता है उस पर भी लानत फरमाई गई।
गुनाहों के असरात में यह देखिए कि इतने गुनाहों पर अल्लाह के महबूब ने लानत फरमाई है जो बंदा इनमें से कोई गुनाह करेगा नबी करीम (स०अ०व०) की लानत का मुस्तहक होगा।
फरिश्तों की दुआ से महरूमी:- एक गुनाहों का असर यह होता है कि वह बंदा फरिश्तों की दुआ से महरूम हो जाता है। अल्लाह के फरिश्ते उम्मते मोहम्मदिया के लिए हर वक्त दुआएं करते हैं और इस्तिगफार करते हैं इंसान वालों के लिए कि अल्लाह मगफिरत फरमा दीजिए उनके लिए जो तौबा करने वाले हैं तो गुनाह करने वाला चूंकि तौबा नहीं करता इसलिए यह उस मगफिरत से बाहर निकल जाता है जो तेरे महबूब के रास्ते की पैरवी करते हैं।
पैदावार में कमी:- गुनाहों के असरात में से एक असर यह है कि पैदावार में कमी आ जाती है, खुश्की और तरी में जो फसाद नजर आता है यह इंसानों के हाथों की कमाई है इसलिए हजरत ईसा (अलै0) जब तशरीफ लाएंगे उस वक्त एक ऐसा वक्त होगा कि दुनिया में कोई भी अल्लाह का नाफरमान नहीं होगा।
हदीस में है इतनी बरकतें होंगी कि एक गाय का दूध पूरे के पूरे खानदान वालों के लिए काफी हो जाएगा और एक रिवायत में है कि एक अनार बड़ी जमाअत की भूख मिटाने के लिए काफी हो जाएगा और बाज ने कहा अंगूर के खोशे इतने बड़े होंगे कि ऊंट एक खोशे को उठाकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाएगा।
शर्म और हया रूखसत हो जाएगी:- गुनाहों के असरात में से एक असर यह भी है कि इंसान के अंदर शर्म और गैरत रूखसत हो जाती है। ऐसे बंदे को शर्म नहीं आती। इसलिए कितने लोग हैं बेटियों को पास बिठाकर ड्रामे देख रहे होते हैं, बेटियों को पास बिठाकर फिल्में देख रहे होते हैं एक लड़के ने कहा जी अम्मी-अव्बू के पास बैठकर हम फिल्में देखते तो हैं लेकिन ऐसा सीन आने लगता है तो अम्मी कहती है आंख बंद कर लो तो बस हम आंख बंद कर लेते हैं और उससे जब पूछा कि झूट मत बोलो साफ बताओ बंद करते हो? कहता है अम्मी को दिखाने के लिए बंद करते हैं देख हम भी रहे होते हैं।
अब जहां बेटी भी है बेटा भी है और मां-बाप ऐसी फहश फिल्में देख रहे होते हैं तो फिर शर्म व हया का जनाजा नहीं निकलेगा तो क्या होगा। इसीलिए फरंगी मुल्कों में एक फिकरा सुनने में आता है ‘‘शर्म व हया एक बीमारी है’’ दीने इस्लाम ने शर्म व हया को खूबी कह दिया। हया ईमान का शोबा है। लेकिन कुफ्र ने क्या कहा? शर्म एक बीमारी है उनके यहां जिसमें ज्यादा शर्मा होती है वह बंदा ज्यादा बीमार होता है।
अल्लाह की अजमत का दिल से निकलना:- एक असर गुनाह का यह भी है कि इंसान के दिल से अल्लाह की अजमत निकल जाती है वह जो हैबत होती है अजमत होती है। दिल के अंदर गुनाह के बार-बार करने से वह अल्लाह की अजमत दिल से निकल जाती है और यह बड़ी महरूमी है।
मुसीबतों के घेरे में:- एक असर गुनाहों का यह भी है कि उस बंदे को परेशानियां, मुसीबतें और बलाएं अपने घेरे में ले लेती है। इसलिए अल्लाह तआला ने कुरआन में फरमाया- तुम्हें जो भी मुसीबत पहुंचती है वह तुम्हारे हाथों की कमाई है।
बुरे अलकाव का मुस्तहक:- एक गुनाहों का असर यह भी है कि वह इंसान अल्लाह के यहां बुरे अलकाब का मुस्तहक हो जाता है। नेकी करने से वह अच्छे अलकाब का मुस्तहक बनता है। मसलन नेक बंदे को कहते हैं- मोमिन, मुनीब, मतीअ, वली, आबिद, आरिफ, साबिर, शाकिर यह सबके सब अच्छे नाम नेक बंदे के लिए और जो गुनाहों मे पड़ जाता है उसके लिए बुरे अलकाब फासिक, फाजिर, आसी, मुफस्सिद, खबीस, काजिब, खाइन, मुतकब्बिर, जालिम यह सब अल्फाज जो कुरआन में इस्तेमाल हुए।
शैतानों का तसल्लुत:- गुनाहों के असरात में से एक यह है कि गुनाहों की वजह से उस बंदे पर शैतान मुसल्लत रहते हैं हर वक्त शैतानी सोचे दिमाग में भरी हुई हैं। कुरआन में है- जो रहमान की आंख से आंख चुराए हम उस पर शैतान को मुसल्लत कर देते हैं और शैतान उसका साथी बन जाता है।
दिली सुकून से महरूमी:- एक असर गुनाहों में से यह है कि उस बंदे के दिल में सुकून नहीं होता, इत्मीनान नहीं होता। माल होता है, कारोबार होता है, अफसर होता है, सारा कुछ उसके पास होता है मगर उसके पास दिल का सुकून नहीं होता।
कबीरा गुनाह पर इसरार:- एक असर गुनाहों का यह भी है कि वह बंदा अक्सर कबीरा गुनाहों का बार-बार कुसूरवार होता है इसलिए वह अल्लाह की रहमत से महरूम हो जाता है उसके दिल में यह होता है कि मै यह करता हूं अब मैं नमाज पढूंगा तो क्या बनता है बस अल्लाह माफ कर देगा बस जी अल्लाह माफ कर देगा तौबा भी नहीं करता और समझता है कि तौबा किए बगैर अल्लाह खुद माफ कर देंगे।
अल्लाह तआला को क्या जरूरत है माफ करने की। इसी तरह जब तक हम तौबा नहीं करेंगे तौबा हमारी जरूरत है अगर नहीं करेंगे तो अल्लाह फिर सजा देंगे।
कलमा से महरूमी:- एक असर गुनाहों का यह है कि बार-बार गुनाह करने की वजह से इंसान के लिए आखिरी लम्हें में कलमा पढ़ना मुश्किल हो जाता है। जितने ज्यादा गुनाह करेगा उतना ज़ुबान ज्यादा बोझिल हो जाएगी। एक डाक्टर है उन्होंने किताब लिखी है मौत के लम्हात के बारे मे। उन्होंने तकरीबन एक सौ बंदो के आखिरी लम्हात के हालात को कलम बंद किया है। यह खुद उनका मुशाहिदा है। वह लिखते हैं मैंने कितने लोगों को कलमे की तलकीन की चूंकि मैं पास होता था पढ़ ही नहीं सकते थे। मैं पूछता हूं कि तुम क्यों नहीं पढ़ सकते? वह कहते हैं चंद एक ने मुझे बताया कि हमारी ज़ुबान ऐसी हो गई है जैसे फालिजजदा। हम बोलना चाहते हैं हम बोल नहीं सकते।
अब हम अपनी ज़ुबान से कलमा पढ़ने के काबिल नहीं। इन सौ वाक्यात में से उन्होंने कहा है कि चंद ऐसे थे जिन्होंने कलमा पढ़ा और बाकी सारे के सारे बगैर कलमा पढ़े दुनिया से चले गए। मैं कलमा याद दिलाता था और वह जो दुनिया में करते थे वह उनकी ज़ुबान से निकलता था तो गुनाहों का यह कितना बड़ा वबाल है कि इंसान आखिरी वक्त में कलमा से महरूम कर दिया जाता है।
कबीरा गुनाहों पर इसरार करते रहना आखिरकार ईमान के सल्ब होने का जरिया बन जाता है। मुस्तहब की हिफाजत करेंगे तो सुन्नत की हिफाजत खुद हो जाएगी। सुन्नत की पाबंदी करेंगे तो वाजिब खुद व खुद अदा हो जाएंगे, वाजिब की पाबंदी करेंगे तो फर्ज खुद व खुद अदा हो जाएंगे। जो इंसान कबीरा गुनाहों को बेधड़क कर लेता है तो फिर उसके असरात में से यह है कि मौत के वक्त उसके लिए कलमा पढ़ना मुश्किल हो जाता है। किताबों में लिखा है उलेमा ने कि आखिरी वक्त में शैतान पूरा जोर लगा देता है।
नेकी का असर:- जब नेकी करेंगे तो अल्लाह की रहमत होगी इसलिए जो आदमी पाबंदी के साथ मिसवाक करे, हदीस पाक में आता है बरकत होती है। मलिकुल मौत आते हैं और शैतान को मार कर उस बंदे से दूर भगा देते हैं और बंदे को कलमा याद दिला देते हैं ताकि वह अपनी रूह कब्ज होने से पहले कलमा पढ़ ले। हमारे मशायख ने फरमाया कि जो आदमी अक्सर जिंदगी में बावजू रहने की कोशिश करे अल्लाह इस अमल की बरकत से उसको कलमा पर मौत अता फरमाते देते हं।
मौलाना अहमद अली का कौल:- मौलाना अहमद अली लाहौरी फरमाया करते थे कि बंदा कितने ही काम में मशगूल क्यों न हो अगर अजान हो जाए तो अल्लाह की अजमत की वजह से वह उस काम को छोड़ दे और अजान का जवाब दे फिर मसनून दुआ पढ़े तो अल्लाह के नाम की अजमत की वजह से अल्लाह ऐसे बंदे को कलमा पर मौत अता फरमाते हैं।
कलमा पर मौत हुई और जन्नत में दाखिल हो गया तो हम अल्लाह से यह दुआ हमेशा मांगा करें। तनहाइयों में अल्लाह के हुजूर दामन फैला कर कि ऐ मालिक! आखिरी वक्त में हमारी मदद फरमा देना शैतान के मुकाबले में और अल्लाह हमें ईमान पर मौत अता फरमा देना तो गुनाहों का वबाल कलमा से महरूमी होता है। किताबों में लिखा है यह उस वक्त कभी बाप की शक्ल में आता है कभी मां की शक्ल में कभी दोस्त की शक्ल में जिससे ज्यादा ताल्लुक होता है उसकी शक्ल में आता है और आकर कहता है कि देखो बेटा हमारी बात मानो हमसे ज्यादा तुम्हारा खैर ख्वाह कोई नहीं। शक में डाल देता है दीन के बारे में अल्लाह के बारे में, फिर बंदा ईमान से महरूम हो जाता है। इसलिए कबीरा गुनाहों से सच्ची तौबा करना यह इंतिहाई जरूरी है वरना इसके नुक्सान देखे तो उनको देखकर ही दिल से आवाज निकलती है कि इंसान को चाहिए कि गुनाहों से सच्ची तौबा कर ले यह दुनिया के अजाब हैं।
यह तो दुनिया के मसले हैं। अल्लाह तआला हमें गुनाहों से बचने की तौफीक अता फरमाए और हमें अल्लाह आखिरी वक्त में कलमा पढ़कर दुनिया से जाने की तौफीक अता फरमाएं- आमीन (मौलाना पीर जुल्फिकार अहमद नक्शबंदी)
—————-बशुक्रिया: जदीद मरकज़