दुनिया में सफर करने वाले की तरह ज़िंदगी गुज़ारो

हज़रत इबन उमर (रज़ी.) कहते हैं कि (एक दिन) रसूल करीम स.व. ने मेरे जिस्म के एक हिस्से (यानी दोनों मूंढों) को पकड़कर कहा तुम दुनिया में इस तरह रहो जैसे कि तुम सफर पर हो या रास्ता चल रहे हो और तुम अपनि गिन्ती उन लोगों में करो, जो दुनिया से गुज़र गए हैं और अपनी क़ब‌रों में सोयें हैं (यानी मुर्दों जैसे बन जाओ कि जिस तरह वो दुनिया की तमाम चीज़ों से मुँह‌ मोड़कर एक कोने में पड़े हुए हैं, इसी तरह तुम भी दुनियादारी से अपना दामन बचाकर बिल्कुल‌ सादगी और एकेलेपन‌ के साथ ज़िंदगी गुज़ारो)। (बुख़ारी)

यानी इस बात में यक़ीन रखे कि दुनिया की जो भी चीज़ें मेरे पास‌ हैं, इन सब का हक़ीक़ी मालिक अल्लाह ताला है, उन की मिल्कियत से मेरा कोई ताल्लुक़ नहीं है और इस बात को इस की निशानी समझे कि अगर इन चीज़ों में से कोई चीज़ इस के पास से जाती रहे तो कोई गम ना हो और कोई चीज़ अपने पास आए तो ख़ुश ना हो।

जिस शख़्स ने अपने अंदर ये गुण पैदा कर लिया, वो दुनिया से ताल्लुक़ ना रखने में मरे होए लोगों जैसा होगा और इस का शुमार अपनी कबरों में सोने वालों के हुक्म में होगा। इस के बाद इस शख़्स की शान के मुनासिब ये बात होगी कि वो इन आदाब ओर शर्तों पर अमल करें, जिन के सबब इस का मरे होए लोगों जैसा बनना सही क़रार पा सके।

जैसे अल्लाह के सिवा अपनि हर खाहिश को खत्म करदें, दुनिया की मुहब्बत और दुनिया की लज़्जतों से अपने आप को दुर करदें वग़ैरा वग़ैरा, जैसा कि मौत की सूरत में होता है।