हज़रत अब्दुलाह बिन उमर रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व०ने फ़रमाया ये दुनिया मोमिन के लिए क़ैदख़ाना और क़हत है। जब वो मोमिन दुनिया से रुख़सत होता है तो (गोया) क़ैदख़ाना और क़हत से नजात पाता है। (सरह अल सुन्नत)
क़ैदख़ाना और क़हत का मतलब ये है कि मोमिन यहां हमेशा तरह तरह की तंगी-ओ-सख़्ती का शिकार रहता है और मआशी परेशान हालियों में बसर-ए-औक़ात करता है और अगर किसी मोमिन को यहां की ख़ुशहाली मयस्सर भी हो तो इन नेअमतों की बनिसबत कि जो उसको आख़िरत में हासिल होने वाली हैं, ये दुनिया फिर भी इस के लिए क़ैदख़ाना और क़हतज़दा जगह से ज़्यादा अहमीयत नहीं रखती।
या ये मुराद है कि मुख़लिस-ओ-इबादतगुज़ार मोमिन चूँकि अपने आप को हमेशा ताआत-ओ-इबादात की मशक़्क़तों और रियाज़त-ओ-मुजाहिदा की सख़्तियों में मशग़ूल रखता है, ऐश-ओ-राहत को अपनी ज़िंदगी में राह नहीं पाने देता और हर लम्हा इस राह शौक़ पर गामज़न रहता है कि इस मेहनत-ओ-मशक़्क़त भरी दुनिया से नजात पाकर दारुलबक़ा की राह पकड़े। इस ऐतबार से ये दुनिया मोमिन के लिए क़ैदख़ाना और क़हतज़दा जगह से कम सब्र आज़मा नहीं होती।
एक रिवायत में यूं फ़रमाया गया है कि ऐसा कोई मोमिन नहीं जो या तो माल की कमी या बीमारी और या ज़िल्लत-ओ-ख़ारी से ख़ाली हो और बाअज़ औक़ात मोमिन कामिल में ये सब चीज़ें जमा हो जाती हैं।
अशरफ़ रह० ने भी इसी तरह की बात कही है और लिखा है कि अल्लाह तआला उस बंदे को दुनियावी माल-ओ-जाह और यहां की कोई ऐसी चीज़ नहीं देता, जो उस की दीनी-ओ-उखरवी ज़िंदगी की ज़ीनत-ओ-ख़ूबी को दागदार कर दे।