दुनिया से मुहब्बत आख़िरत(परलोक) में नुक़्सान का सबब

हज़रत अबू मूसा (रज़ी.)बयान किया है कि रसूल करीम स.व. ने फ़रमाया जो शख़्स अपनी दुनिया को दोस्त रखता है ( दुनिया को इस क़दर दोस्त रखना कि ख़ुदा की मुहब्बत पर ग़ालिब आजाए) तो वो अपनी आख़िरत को नुक़्सान पहुंचाता है (यानी आख़िरत में अपने दर्जें को घटाता है। क्योंकि जब इस पर दुनिया की मुहब्बत ग़ालिब आजाती है तो इस का ज़ाहिर‍ ओर‌-बातिन हर वक़त दुनियावी कामों में लगा रहता है और इस की वजह से वो आख़िरत और अल्लाह के हुक्मों पर अमल करने के लिए मौका नही निकाल सकता है) और जो शख़्स अपनी आख़िरत(परलोक) को दरुस्त रखता है, वो अपनी दुनिया को नुक़्सान पहुंचाता है (क्योंकि वो हर वक़त उमूर आख़िरत में लगे रहने की वजह से दुनियावी कामों की तरफ़ मुतवज्जा नहीं रहता) पस (जब तुम ने ये जान लिया कि दुनिया और आख़िरत की दोस्ती एक दूसरे के साथ जमा नहीं होसकती तो) तुम्हें चाहीए कि जो चीज़ खत्म‌ हो जाने वाली है, यानी दुनिया, इस पर उस चीज़ को तर्जीह दो, जो बाक़ी रहने वाली है यानी आख़िरत। (अहमद ओर बैहक़ी)

हज़रत अबू हुरैरा (रज़ी.)बयान करते है कि नबी करीम स.व. ने फ़रमाया जो शख़्स दीनार का ग़ुलाम और दिरहम का ग़ुलाम बन जाए उस पर फिट्कार‌ है। या ये मानता हैं कि जो शख़्स दीनार का ग़ुलाम और दिरहम का ग़ुलाम बन जाए इस पर फिटकार‌ हो। (तिरमिज़ी)
जो शख़्स माल‍ ओर सोना और रुपया पैसा की मुहब्बत में इस तरह गिरफ़्तार हो जाए कि इन की वजह से ख़ुदा की इबादत‍ से दूरी इख़तियार करले तो गोया वो माल‍ ओर ज़र और रुपया पैसा का ग़ुलाम है और एसा शख़्स तमाम भलाइयों से महरूम, अल्लाह कि रहमतों से दूर और अल्लाह के दरबार से भगा दिया जाता है।