हज़रत अबू उमामा (रज़ी.) कहते हें कि रसूल करीम स.व. ने फ़रमाया मेरे रब ने मेरे सामने इस बात को ज़ाहिर किया कि वो मेरे लिए मक्का के संगरेज़ों को सोना बना दे, लेकिन मेंने अर्ज़ किया कि मेरे परवरदिगार! मुझ को इस चीज़ की बील्कुल ख़ाहिश नहीं हें, में तो बस ये चाहता हूँ कि एक रोज़ पेट भर कर खाउ और एक रोज़ भूका रहूं कि जब में भूका रहूं तो तेरे हुज़ूर गीड्गीडाउं, अपनी आजिज़ी ब्यान करूं और तुझे याद करूं और जब में शिकम सैर हूँ तो तेरी हमद-ओ-तारीफ़ करूं और तेरा शुक्र अदा करूं। (अहमद-ओ-तिरमिज़ी)
हुज़ूर अकरम स.व. के लिए अल्लाह ताला की मज्कूरा पेशकश या तो हिस्सी-ओ-ज़ाहिरी तौर पर थी या माअनवी यानी बातिनी तौर पर और ये दूसरी मुराद ज़्यादा सही मालूम होती है। इस सूरत में आप के इरशाद का मतलब ये होगा कि अल्लाह ताला ने इस बारे में मुझ से मश्वरा फ़रमाया और मुझे इख़तियार दिया कि चाहे आप इस दुनिया में वुसअत-ओ-फ़राख़ी और यहां के माल-ओ-ज़र की फ़रावानी को पसंद करें और चाहे दुनिया से बेरग्बती इख़तियार करके तोशा आख़िरत की फ़िक्र में लगे रहें और वहां के हिसाब-ओ-अज़ाब से नजात की राह इख़तियार कर लीजिए। लिहाज़ा मेंने दुनिया को ठुकरा दिया और आख़िरत को पसंद करलिया।
हदीस शरीफ़ के आख़िरी जुमलों का हासिल ये है कि अल्लाह ताला की तरफ़ से मेरे लिए दुनियावी वुसअत-ओ-फ़राख़ी और ख़ुशहाली की पेशकश के बावजूद मेंने दुनिया के माल-ओ-ज़र को ठुकरा दिया और गूर्बत को इख़तियार कर लिया। यानी गूर्बत-ओ-क़नाअत को इख़तियार करना ज़्यादा मोज़ूं हे और दौलतमंदी के मुक़ाबला में गूर्बत अफ़ज़ल है।