दुबई बनने को बेताब सऊदी अरब !

पिछले कुछ समय से सऊदी अरब से ऐसी खबरें आ रही हैं जो उसके बदलाव की ओर इशारा कर रही हैं. रूढ़िवाद देश सऊदी अरब में ऐसा क्या हुआ कि वह इतनी तेजी से अपने को बदल रहा है. हाल ही में सऊदी अरब ने महिलाओं की ड्राइंविंग पर लगी रोक हटा ली. इससे पहले सऊदी ने अपने यहां सिनेमा हॉल पर लगा प्रतिबंध हटा दिया था. सऊदी अरब ने पब्लिक प्लेस पर संगीत की भी अनुमति दे दी है. अब महिलाएं स्टेडियम में जाकर फुटबॉल मैच देख सकती हैं. इस साल जनवरी में सऊदी अरब में पहला फैशन वीक देखने को मिला. दुनिया के साथ कदमताल करने के लिए सऊदी अरब पुराने कानूनों को बदल रहा है.

यहां से हुई बदलाव की शुरुआत
बदलाव की शुरुआत 2016 में तब हुई जब किंग सलमान ने अपने सबसे छोटे बेटे 32 साल के मोहम्मद बिन सलमान को क्राउन प्रिंस बनाया. क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने देश के आर्थिक और सामाजिक सुधार कार्यक्रमों का खाका रखते हुए विजन 2030 दस्तावेज जारी किया था. सलमान की कोशिश सऊदी अरब को ऐसा देश बनाने की है जिसकी अर्थव्यवस्था तेल के बिना भी चल सके. जहां महिलाओं के हाथ में ड्राइविंग की कमान हो. जहां चुनाव हो सके और जहां की विदेश नीति दमदार हो.

क्यों बदल रहा है सऊदी अरब
सऊदी अरब को दुनिया के कई विकसित देशों ने हमेशा से इग्नोर किया है. इसका सबसे बड़ा कारण यहां का सरियत कानून और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार है. सऊदी तेल का एक बहुत बड़ भंडार है. सऊदी अरब की कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा तेल के निर्यात से आता है. पिछले एक दशक से यहां कि प्रति व्यक्ति जीडीपी में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हो रही है. हालांकि इस दौरान कच्चे तेल की कीमतें बढ़ीं हैं. इन सब के बीच प्रिंस सलमान को लगता है कि बदलाव जरूरी है.

किस तरह का देश चाहते हैं युवा प्रिंस
बिजनेस और टूरिजम हब की स्थिति सऊदी में ठीक नहीं है. सलमान सऊदी अरब को दुबई बनाना चाहते हैं. सऊदी को वह अपने सपनों का देश बनाना चाहते हैं जो दुबई की तरह पूरी दुनिया के लिए खुला हो, बिजनेस फ्रैंडली हो, जहां धर्म की पाबंदियां न हों. युवा प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान उस रास्ते पर चल रहे हैं जो उन्हें अरब का एस शशक्त व्यक्ति बनाए. वह चाहते हैं कि देश में ऐसा माहौल बने जहां सऊदी अरब के लोगों को एक नागरिक के रूप में सम्मान मिले.

बदलाव के मायने क्या हैं
दुबई की तरह ही यहां राजनीतिक आजादी की बजाय ज्यादा सामाजिक आजादी दी जा रही है. फिर चाहे महिलाओं की ड्राइविंग की बात हो या स्टेडिय में जाकर फुटबॉल मैच देखने की, 30 साल बाद सिनेमा हॉल को फिर से चालू करने की बात हो, सऊदी अरब के ये फैसले वहां के समाज में आ रहे बदलाव का ही हिस्सा हैं.