शादी के बाद जिस वक़्त रस्म जल्वा मुनाक़िद होती है और दूल्हा दुल्हन को जब रुख़्सती के फूल पहनाए जाते हैं, फूल पहनाने के बाद ख्वातीन-ओ-हज़रात में से कोई एक फ़र्द सूरा वश्शमसी वजूहाहा पढ़ कर दुल्हन के तालू पर दम करदे।
इलावा अज़ीं जिस वक़्त दुल्हन रुख़स्त होकर अपने दूल्हे के घर जाए और दुल्हन को जब हजल-ए-उरूसी में पहुंचा दें और जैसे ही दूल्हे मियां हजला-ए-उरूसी में आएं तो दुल्हन को चाहीए कि दिल ही दिल में ग्यारह बार चेहरा देख कर यारउफ़ु पढ़ ले।
इंशाअ अल्लाह ताला बफ़ज़ल ए रब तबारक ओ ताला दूल्हे मियां अपनी नई नवेली दुल्हन पर सारी उम्र मेहरबान रहेंगे। कभी दोनों में नाइत्तिफ़ाक़ी नहीं रहेगी।
इन बातों को ज़हन में रख कर दुल्हन के माँ बाप, क़रीबी रिश्तेदार और सरपरस्त हज़रात ज़रूर अमल करें। इंशाअ अल्लाह ताला दुल्हन ससुराल में काम्याब ज़िंदगी गुज़ारेगी।
वाज़िह रहे कि हर अमल के साथ अव्वल-ओ-आख़िर तीन बार दरूद शरीफ़ ज़रूर पढ़ें।