मुंबई, 01 मार्च: हम जब भी खजूर का ज़िक्र करते हैं,तो रमज़ानुलमुबारक का तज़किरा भी ज़रूर होता है जो रोज़ा इफ़तार के लिए मस्नून ग़िज़ा तसव्वुर की जाती है,लेकिन खजूर सिर्फ़ रोज़ादार ही नहीं बल्कि आम दिनों में भी ( शदीद गर्मा के सिवाए) हमारी सेहत के लिए फ़ायदेमंद साबित होती है,चूँकि इस की तासीर गर्म है। लिहाज़ा इस की ज़ाइद मिक़दार पेचिश और दस्त में मुबतला कर सकती है। विटामिंस का ख़ज़ाना समझी जाने वाली खजूर दूध की तरह ही एक मुकम्मल ग़िज़ा तसव्वुर की जाती है।
अरब मुमालिक में तो बरसों तक उसे अहम ग़िज़ा के तौर पर इस्तिमाल किया जाता रहा यानी वहां के शहरी सिर्फ़ चार पाँच खजूर खाकर पेट भर पानी पी लिया करते थे,जो उन की भूक को मिटा देता था। आजकल बाज़ारों में बेहतरीन से बेहतरीन खजूरें दस्तियाब हैं,जिन में बगै़र बीज की स्याह रंग की खजूरें इंतिहाई लज़ीज़ होती हैं। वैसे बस्रा की खजूर को सब से ज़्यादा लज़ीज़ समझा जाता है,लेकिन अरब मुमालिक के इलावा हिन्दुस्तान और दीगर मुमालिक में भी खजूर की पैदावार हो रही है।
इंतिहाई मिठास के बावजूद ये एक सस्ता फल है जो हर एक के लिए क़ाबिले दस्तरस होता है। सरमा के दिनों में दो खजूरें और एक कप दूध के इस्तिमाल से इंसान अपनी दिन भर की ज़रूरियात की तकमील कर सकता है। खजूर का ज़ाइद इस्तिमाल नुक़्सानदेह साबित हो सकता है। इस का इस्तिमाल अगर एतिदाल के साथ किया जाये तो ये हमारी सेहत के लिए मुसबित नताइज की हामिल होगी।