देखिये : महिलाएं जिन्होंने भारत को मंगल गृह तक पहली बार में पंहुचाया

“देश में अंतरिक्ष विज्ञान समुदाय को विकसित करने के हमारे अनुभव के बाद , हमने निश्चय किया की हम और आगे बढ़ सकते हैं और अन्तरिक्षो के बीच और मंगल गृह पर जा सकते हैं”।

अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम कार्यालय (ईसरो) की कार्यक्रम निदेशक , सीता सोमसुंदरम के इन शब्दो ने एक नए विचार को जन्म दिया, जिसमे एक विडियो बनायीं गयी, जिसमे भारतीय अंतरिक्ष संगठन के “मंगल ऑर्बिटर मिशन” (माँ) के बारे में उस कार्यक्रम के विभिन्न भागों का नेतृत्व कर रही तीन महिलाओ ने कार्यक्रम का विवरण किया।

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एमिली ड्रिस्कोल द्वारा बनायीं गयी इस १० मिनट की विडियो में यह बताया गया है की कैसे कम बजट और हज़ारो की संख्या में वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के द्वारा किये गए प्रयासों के बाद वे मंगल गृह तक १८ महीने में पहुंचे।

नवंबर २०१३ में मिशन के प्रक्षेपण के समय, जश्न में एक-दूसरे को गले लगाती साड़ी पहने महिला वैज्ञानिकों के एक समूह की तसवीरें ऑनलाइन बहुत चर्चा में रही थी।

ड्रिस्कोल की विडियो जो हॉवर्ड हुगहेस मेडिकल इंस्टिट्यूट द्वारा प्रस्तुत की गयी है और “साइंस फ्राइडे” में प्रकाशित हुई है उसमे वे इन तीनो महिलाओ से भेंट कर रहे हैं । वे हैं : “अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम कार्यालय” से “सोमसुंदरम”; “नंदिनी हरिनाथ”, “मिशन डिजाइन की परियोजना प्रबंधक” और “उप संचालन निदेशक” और “मीनल रोहित”, मंगल ग्रह के लिए मीथेन सेंसर साधन की “परियोजना प्रबंधक”। इस विडियो में वे हमें अपने मिशन की तकनीकी और वैज्ञानिक महत्व के माध्यम से यह बता रहे हैं की इस मिशन का भारतीय राष्ट्रीय पहचान को बढ़ने में क्या योगदान रहा है।

अपने सरल शॉट्स में वे तीनो अपने आश्चचर्य और ख़ुशी को छुपा नहीं पाती जो भारत ने २४ सितंबर, २०१४ को महसूस की थी जब “माँ” ने सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की चारों कक्षाओ की परिक्रमा पूर्ण कर ली थी। उन्होंने कहा की, वे इस तारीख को कभी नहीं भूल सकती । उन्हें यह भी याद है की कैसे वे विद्यालय के शिक्षको की तरह सख्त थी ताकि वे प्रक्षेपण से पहले वे सुनिशित कर सकें की हर चीज़ सही तरीके से अपनी जगह पर है ।