हैदराबाद। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड एग्ज़ीक्युटिव कमीटी की सदस्य सुश्री असमा ज़ेहरा ने कहा है कि कुछ महिलाओं द्वारा ट्रिपल तलाक़ और उसके बाद गुजारा भत्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने के मामले को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है जबकि देश की महिलाओं की बहुमत मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समर्थन में है। असमा ज़ेहरा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मुस्लिम पर्सनल ला मुसलमानों का संवैधानिक अधिकार है और मुसलमान देश की आजादी के 60 साल से अपनी समस्याओं को मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार हल करते आए हैं।
न्यूज़ नेटवर्क समूह प्रदेश 18 के अनुसार उन्होंने कहा कि हालांकि पिछले दो साल से मौजूदा सरकार ने एक के बाद एक ऐसे प्रयास किए हैं कि जिससे अल्पसंख्यकों के अधिकारों को छीना जा सके। उन्होंने कहा कि ट्रिपल तलाक़ को मुद्दा बनाया गया है। इसके जरिए मुस्लिम पर्सनल लॉ में छेड़छाड़ करने की कोशिश की जा रही है। इसी वजह से इसका विरोध किया जा रहा है।
ज़ेहरा ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो यह हम पर अत्याचार होगा। हमारे कानूनों में छेड़छाड़ दरअसल गलत है। तलाक के मसले पर कुछ महिलाओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट का उल्लेख होने से संबंधित सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि हमारा देश एक स्वतंत्र देश है। जिस किसी को मुस्लिम पर्सनल ला का पालन नहीं करना है, उनके लिए स्पेशल मैरेजेस अधिनियम मौजूद है लेकिन यह कहना कि धर्म परिवर्तन किया सरासर गलत है।
उन्होंने कहा कि भारत आज़ाद देश है जिस किसी को मुस्लिम पर्सनल ला मानना है वह माने जिस को हिन्दू ला मानना है वह ऐसा कर सकता है और जो दोनों कानून नहीं मानना चाहते उनके लिए देश में लिव इन रिलेशनशिप है। उन्होंने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार कुछ महिलाओं का इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने कहा कि हिंदू ला 1955 में बनाया गया। इसमें संशोधन किया जा सकता है लेकिन हमारा मुस्लिम पर्सनल ला हमने नहीं बनाया है बल्कि यह अल्लाह का कानून है। यह हमारे विश्वास का मुद्दा है। यह कानून कुरान और हदीस शरीफ में है इसी लिए हम यह मानकर हम उस पर अमल कर रहे हैं, इसे बचा रहे हैं और इस को परिवर्तन से रोक रहे हैं। हमारे कानून को अन्य कानून से जोड़कर देखने की कोई जरूरत नहीं है।