नई दिल्ली। मुसलमानों में ‘तीन तलाक’ की प्रथा को लेकर जारी बहस के बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने शरई कानून में लैंगिक असमानता से इन्कार किया है। बोर्ड ने शनिवार को दावा किया कि देशभर की मुस्लिम महिलाएं शरई कानून के तहत खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा कि बोर्ड और इसमें शामिल महिलाएं ही नहीं बल्कि आम तौर पर देश की मुस्लिम महिलाएं प्रस्तावित समान नागरिक संहिता के खिलाफ हैं। गौरतलब है कि तीन तलाक का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। केंद्र और कुछ मुस्लिम महिला संगठन महिलाओं के लिए इसे भेदभाव वाला बता कर इस पर रोक की मांग कर रहे हैं। जबकि बोर्ड ने शीर्ष अदालत में हलफनामा देकर कहा है यद्यपि यह अप्रिय है लेकिन इस्लाम में इसकी इजाजत है। बोर्ड ने तीन तलाक के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चला रखा है। फारूकी ने दावा किया कि अभियान को राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में मुस्लिम महिलाओं का समर्थन मिला है। ऐसे राज्यों में जहां हमारे सदस्य नहीं हैं, वहां भी हमें महिलाओं का समर्थन मिल रहा है।
बोर्ड की कार्यकारी सदस्य अस्मा जेहरा ने कहा कि देशभर में मुस्लिम महिलाएं पर्सनल लॉ की रक्षा की मांग को लेकर एकजुट हैं। इस बीच कई महिला कार्यकर्ताओं ने बोर्ड के जवाबी हलफनामे की निंदा की है। उन्होंने कहा कि बोर्ड ने महिलाओं की पीड़ा से अपनी आंखें मूंद ली है।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (AIMPLB) की सह संस्थापक नूरजहां साफिया नियाज ने कहा कि किसी भी नागरिक को कोर्ट जाने से कोई रोक नहीं सकता। मुस्लिम महिलाओं को भी कोर्ट जाने का अधिकार है। गौरतलब है कि तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों में बीएमएमए भी शामिल है।