देश की सबसे पुरानी पार्टी का ठेका मुस्लिमों पर क्यों

“कांग्रेस का ठेका मुस्लिमों पर क्यों” ये एक सवाल है, जो सच में कांग्रेस से पूछा जाना चाहिए. कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राजनेतिक पार्टी है और मुस्लिमों का इसके प्रति वफ़ादारी का इतिहास भी इतना पुराना है. मगर गौर करने की बात ये है की मुस्लिम जो हमेशा से कांग्रेस का साथ देते आये है, आज कांग्रेस के डूबते हुए जहाज़ को सँभालने का ज़िम्मा मुस्लिमो का क्यों?? जब कोंग्रेस को सब नकार चुके है तो क्यों मुस्लिम समाज भी अच्छी तादाद में कांग्रेस की तरफ है और कांग्रेस भी यही समझ रही है क्यों???

जो इस मसले की अहम वजह सामने आती है वो ये है की मुस्लिम समुदाय के बीच भाजपा का डर बैठाया गया है. इसी बात का डर दिखा कर वोट  लिया जाता रहा है,और साथ में नेताओं का एक तबक़ा ऐसा भी रहा है जो सिर्फ अपने फायदें के लिए पुरे समुदाय को टारगेट करते हुए या डर दिखा कर लेता आया है मगर जब मुस्लिम समाज की समस्याओं की आती है तो ये सारे नेता भागते हुए या बात को घूमते हुए नज़र आते है।

भाजपा का डर दिखाया जाना आम सी बात है, कांग्रेस के बड़े बड़े नेता यह तक की अध्यक्षा भी अपनी रैली में गुजरात दंगों को याद करना नही भूलती. लेकिन अगर सिर्फ इतिहास पर रौशनी डाले तो पता चलेगा की बाबरी मस्जिद विध्वंस,हाशिमपुरा,मलियाना, भागलपुर असाम के दंगे या मुज़फ्फरनगर के भीषण दंगे सबके सब में या तो कॉंग्रेस की राज्य और केंद्र में सरकारें कोंग्रेस की सरकार रही है या फिर राज्य या केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही है. फिर कैसे कोंग्रेस को मुस्लिमों का हिमायती माना जाये या फिर उसे मुस्लिम समुदाय का रहनुमा कहा जाये??

अब बात आती है सेक्युलरिज़्म की तो जिस हिसाब से कांग्रेस के समय में सेकड़ों दंगे हुए है, उनका जानी- माली नुकसान हुआ है तो कैसे कांग्रेस कैसे सेक्युलर हो गई? कांग्रेस कैसे मुस्लिमों की फिक्रमन्द हो गयी . इस बात से उसका सेक्युलरिज़्म का बुरखा तो उतर गया है लेकिन हाँ आरक्षण के तौर पर मुस्लिमों की हालत को कांग्रेस सुधार सकती थी लेकिन सिर्फ सच्चर कमिटी की जांच करायी तो लेकिन उसे लागू नही किया क्योंकि वो मुस्लिमों के हालात बदलना ही नही चाहती है बस एक वोटबैंक की तरह इस्तेमाल करना जानती है और अपने कथित सेक्युलरिज़्म का बोझ डालना जानती है।।

मगर जब मुस्लिम समाज ने उससे बाहर निकल कर या यु कहले उससे बग़ावत कर मुस्लिम समाज के लिए कुछ करना चाहा है तो उसे “बीजेपी का एजेंट” “वोट कटवा” जैसा नाम दे दिया गया असल में यही कांग्रेस की पालिसी रही है और शायद कांग्रेस चाहती भी यही हो लेकिन आज जब यूपी में कांग्रेस को देखने को भी तैयार नही है तब भी वो मुस्लिम वोटों के चक्कर में है ऐसा वो दिल्ली विधानसभा  और 2014 लोकसभा में करती आई है और ये कांग्रेस की मुस्लिमों के प्रति सोच को दर्शाता है की मुस्लिमों को क्या समझती है ।।

लेकिन आज भी हालात ये है की किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री के दावेदारों से लेकर अध्यक्ष तक पर कोई मुस्लिम नही है,2014  के आम चुनाव में दिल्ली जेसी जगह में एक भी लोकसभा उम्मीदवार नही बनाया था और जब दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष की बात आई तक दिल्ली में सबसे ज़्यादा वोट लेने वाले कांग्रेस प्रत्याशी हसन अहमद नही ज़मानत ज़ब्त करा चुके अजय माकन मिले, और अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में बदलाव में विदेश मंत्री जेसे पद रहे सलमान खुर्शीद नही बल्कि ग़ाज़ियाबाद लोकसभा सीट पर ज़मानत ज़ब्त कर चुके राज बब्बर आगे रहे तो मुख्यमंत्री दावेदारी की तो छोड़ ही दीजिये।।

लेकिन कांग्रेस पार्टी से ज़्यादा उसके बड़े और कद्दावर मुस्लिम नेताओं की गलती ही है जो बराबर इग्नोर होने के बाद भी कांग्रेस का साथ निभाते चले आये है,उसके साथ चोली और दामन का साथ निभाते चले आये है,और एक बहुत बड़े तबके को निराश करते आये है, अंधकार में डुबाते चले आये है यहाँ तक की अब एक वोटबैंक बना कर छोड़ गए है . “कांग्रेस का बोझ सर पर लिए घूम रहा है”.

असद शैख़
(ये लेखक के निजी विचार हैं )