आज देश में रहने वाले मुस्लिम जिस कदर परेशान हैं और जिस तरह के डर के साये में जी रहे हैं उसका अंदाज़ा तो सिर्फ वही लगा सकता है जो खुद कभी ऐसे हालातों से गुज़र चुका हो। माहौल कुछ ऐसा ही है जैसा 1984 में देश के सिख दंगों के दौरान था। बेक़सूर लोग मारे जा रहे थे और हमेशा से सरकार के हाथों की कठपुतली रही पुलिस बर्बरता का कहर लोगों पर ढा रही थी। लेकिन बर्बरता का यह कहर सिर्फ एक वर्ग विशेष पर ही ढाया जा रहा था। आज के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं और निशाने पर हैं देश के मुस्लिम।
वक़्त के उस दौर में शायद फिर भी लोगों में कुछ हमदर्दी थी जो लोग दूसरों के दुख दर्द को समझ उनके हक़ में उनके साथ खड़े होते थे और इस भावना के साथ एकजुट होते थे कि मरेंगे तो सब साथ मरेंगे। लेकिन आज का वक़्त कुछ और ही कहता है मेट्रो में कानों में हेडफोन लगा सफर कर रहे आपकी बगल में बैठे नौजवान या अधेड़ से लेकर आपके पड़ोस में रह रहे फलां-फलां परिवार तक के ज़्यादातर लोग आज खुद की दुनिया में ही रहने में विश्वास रखते हैं।
ऐसा नहीं है कि लोग मर चुके हैं या उनके अंदर की इंसानियत बिलकुल ख़त्म हो गई है इंसान भी ज़िंदा हैं और उनके अंदर की इंसानियत भी लेकिन शायद इंसानियत के मायने बदल गए हैं। पहले लोग किसी साथ गलत होता देख बचाव करने सामने आते थे आज मोबाइल निकाल वीडियो बनाने के लिए आगे आते हैं कुछ मामलों में तो वह भी नहीं खैर वापिस मुद्दे पर आते हैं।
देश में बीजेपी सरकार के आने के बाद से देश के मुस्लिमों के लिए देश में बहुत कुछ बहुत तेज़ी से बदला है। बीजेपी का नारा: “अच्छे दिन आने वाले हैं” देश के मुस्लिमों के लिए नीम हकीम की दी हुई दवा की तरह उल्टा असर कर गया और चारों तरफ से शुरू हुआ कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों के इशारों पर चलाया जाने वाला मुस्लिम विरोधी मुहीम।
इस मुहीम ने पूरे देश में अपना असर दिखाया और अख़लाक़, ऊना घटना तथा मेवात में दो मुस्लिम महिलाओं से बलात्कार जैसी घटनाएं सामने आईं। बीफ के नाम पर जिन लोगों को पिता गया कपडे फाड़े गए और बेइज़्ज़त किया गया ऐसे मामलों की गिनती और भी ज़्यादा है जिसे लिखने बैठूं तो शायद बात कहीं और ही निकल जायेगी। बीफ के नाम पर हो रही हिंसा और दूरसी तरफ से देश से एक्सपोर्ट किये जा रहे बीफ की बढ़ती मात्रा इस बात को तो साफ़ कर ही रही है कि परेशानी बीफ से नहीं लेकिन मुस्लिमों से है। यह कुछ ऐसा है मानों सरकार साफ़ साफ़ तौर पर यह कह रही हो कि मेरा देश बदल रहा है और कट्टरता की राह पर आगे बढ़ रहा है। अब मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों के लिए इस देश में कोई जगह नहीं है।
भारत अब ऐसे देश के रूप में उभर कर सामने आ रहा है जहाँ भारत माता की जय का नारा देने वाले भक्तों में से ही कुछ देश की माओं और बेटियों की अस्मत लूट रहे हैं और इसके बावजूद एक सच्चा देशभक्त होने का दावा करते हैं। देश में बने इस माहौल की सच्चाई जानने के बाद भी इतनी हैरानी नहीं होती जितनी हैरानी यह देख कर होती है कि बुलंदशहर और दिल्ली रेप घटना के वक़्त मामले पर पल-पल की खबर रखने और देने वाले न्यूज़ चैनल अब चुप क्यों हैं। हालाँकि सच की आवाज़ को बुलंद करने वाले रविश कुमार और राजदीप सरदेसाई ने इस मामले को बाकी मामलों की तरह ही गहराई के साथ दिखाया है। लेकिन देश में कुछ और चैनल भी हैं जिनकी जुबां शायद एक तय कीमत मिलने पर बंद हो चुकी है।
मुस्लिमों को हर तरह से परेशान करने की ठान चुकी आरएसएस और बीजेपी ने मुस्लिमों के त्योहारों को भी नहीं छोड़ा जिसका सबसे ताज़ा उदारण हरयाणा में देखने को मिल रहा है जहाँ की बीजेपी (खट्टर) सरकार ने पुलिस को चोरों, कातिलों और तस्करों का पीछा करना छोड़ बिरयानी सूंघने का काम सौंप दिया है।
ईद- उल- अदा से पहले छोटी छोटी दुकानों और ठेलों पर बिरयानी सूँघती फिर रही हरियाणा पुलिस ने जहाँ पिछले दिनों कुछ दुकानों और ठेलों से बिरयानी के सैंपल लिए वहीँ कुछ मीडिया वालों ने तो लैब रिपोर्ट आने से पहले ही बिरयानी में बीफ होने की बात कह डाली। अब पुलिस और सरकार के इस फैसले पर गौर किया जाए तो समझ आएगा कि कैसे बीफ के नाम पर सरकार गरीब मुस्लिमों को तंग करने की साजिश पर काम कर रही है। एक ठेले पर बिरयानी बेचने वाला गरीब दिहाड़ीदार जो महज 200-300 के लिए सारा दिन खड़ा रहकर सामान बेचता है कभी भी बीफ बेचने की झूठी अफवाह के लपेटे में आकर अख़लाक़ नहीं बनना चाहेगा बल्कि वो ईद तक अपना ठेला लगाना बंद रखने में ही अपनी और अपने परिवार की भलाई समझेगा। ऐसे में रोज़ कमाकर खाने वाले उस गरीब के घर में कैसी खुशियां और कैसी ईद?
कुछ इसी सोच के साथ मैंने भी इस बार की ईद नहीं मनाने का फैसला किया है। जब देश में रह रहे मेरे भाई- बहनें ईद के इस मुबारक पर खुश नहीं है तो हम कैसे हो सकते हैं? यह सवाल सिर्फ मेरा या उनका नहीं है जो हरियाणा में इस तरह धक्केशाही झेल रहे हैं बल्कि देश में रह रहे हर मुस्लिम का है।
शहज़ाद पूनावाला