देश के लिए जान देने वाले AC न्यूज़ रूम में नहीं सीमा पर तैनात होते हैं

अभी कल ही की बात है मैं ये बात कर रहा था कि युद्ध कोई अच्छी चीज़ नहीं है और ये नहीं होना चाहिए. इस पर मेरे एक अज़ीज़ ने कहा कि अगर हिम्मत है तो इस बात पर लेख लिखिए.कुछ वक़्त मैंने ये सोचा कि क्या आज लोग युद्ध के लिए इस क़दर पागल हो गए हैं कि युद्ध के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की बात वो सुनने को तैयार नहीं हैं. मेरे अज़ीज़ का डर ना-जायज़ नहीं है क्यूंकि आजकल ये माहौल चला है कि जो युद्ध के समर्थन में बोलेगा बस वही देश-प्रेमी है और बाक़ी सब देश-द्रोही.ऐसा नहीं है कि मुझे उड़ी में हुए आतंकी हमले का दुःख नहीं है लेकिन देश के लोग जिस तरह से युद्ध के पीछे पागल हो रहे हैं ऐसा लग रहा है कि युद्ध जब तक करेंगे नहीं कुछ बनेगा नहीं.

वैसे इस में सबसे निंदनीय काम है उस मीडिया का जो अपने आप को सबसे बड़ा “देश-भक्त” बताती है जिसका काम सिर्फ़ और सिर्फ़ युद्ध के लिए प्रेरित करना है और कुछ लोग सोशल मीडिया पर भी हैं. वैसे ये कौन लोग हैं जो युद्ध चाहते हैं? अंग्रेज़ी चैनल पे आने वाले बुज़ुर्ग लोग जो युद्ध की वक़ालत करते मिलते हैं उनमें से एक दो ऐसे भी हैं जिनकी बारूद की फैक्ट्री है और युद्ध होने से उनका बारूद बिकेगा, कुछ यूँ भी हैं जो आतंकी नाथूराम गोडसे की विचारधारा से प्रेरित हैं और उसे भी “देश-भक्त” मानते हैं.मैं ये नहीं कह रहा कि जितने भी लोग युद्ध की वक़ालत कर रहे हैं सबका अपना हित है लेकिन जो लोग बड़े तौर पर प्रोपगंडा कर रहे हैं वो “देशभक्त” कम “ख़ुद-भक्त” ज़्यादा हैं. न्यूज़ चैनल का एंकर ख़ुद इतनी उत्तेजना दिखाता है कि अगर अभी मौक़ा मिले तो युद्ध के माहौल में चला जाए जहाँ पर वो दुश्मनों को ध्वस्त कर देगा लेकिन तभी याद आता है कि कमरे का एयर कंडीशनर चल रहा है या नहीं. अगर कभी आप लोग का जाना किसी न्यूज़ चैनल के न्यूज़ रूम में हो तो देखिएगा आप कि किस तरह से मिनरल वाटर पी पी के युद्ध किया जाता है. मैं तो सोचता हूँ कि जिस तरह से “मेक-उप” करके ये लोग युद्ध की बातें करते हैं उससे तो ऐसा लगता है युद्ध कोई फैशन शो है या फिर कोई टैलेंट हंट जहाँ पर गाना वाना ना गा पाए तो दो चार गालियाँ दे कर जी ख़ुश कर लेंगे.

सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ़ इस बारे में बात करना कि भारत के पास कितनी युद्ध सामग्री है पाकिस्तान के पास कितनी युद्ध सामग्री है इसका आख़िर क्या मतलब है.मीडिया चैनल वालों ने पार्टियों से इतने पैसे खा लिए हैं कि अब सोचते हैं कि देश में बुरा हो या भला लेकिन “उसकी पार्टी” की सरकार के ख़िलाफ़ तो बोलना नहीं है और वाक़ई ये टीवी पर चीख्नने वाले लोग देशभक्त हैं तो क्यूँ नहीं सेना में भर्ती हो जाते हैं, सेना में ये नहीं जायेंगे क्यूंकि वहाँ ना तो AC होता है ना मिनरल वाटर. एक फ़ौजी की ज़िन्दगी कितनी मुश्किल होती है इनको उससे कोई मतलब नहीं. ये सोचते हैं कि जंग होगी तो मारे तो सैनिक ही जायेंगे इन्हें इससे क्या मतलब लेकिन इन्हें ये नहीं मालूम है कि जंग में सब मरते हैं चाहे वो फ़ौजी हो या ग़ैर-फ़ौजी..ये जितने टीवी रूम में आके चीख़ते हैं और युद्ध-युद्ध चिल्लाते हैं अगर वाक़ई युद्ध हो जाए तो तुरंत ये लोग अमरीका या किसी और “सुरक्षित-देश” में भागेंगे.आम लोगों को इनके चक्कर में नहीं आना चाहिए. इनको तो ये भी नहीं पता है कि युद्ध TRP बढाने के लिए नहीं किया जाता..
वैसे ये सब इसलिए किया जा रहा है कि देश के लोग ये भूले रहें कि देश में बेरोज़गारी,ग़रीबी,भ्रष्टाचार और अशिक्षा है. जिस देश में लड़कियों का घर से निकलना दूभर है उस देश को युद्ध की ज़रुरत नहीं है उस देश को ज़रुरत है बेहतर माहौल और शिक्षा की…और ये सब तब मुमकिन है जब शान्ति हो.

एक बात तो मैं करना भूल ही गया.. कल्चर की बात. आजकल कुछ मीडिया चैनल वाले और कुछ छुटभय्ये नेता ये बात कह रहे हैं कि पाकिस्तानी गायकों,अदाकारों पर पाबंदी लगानी चाहिए. इस बेतुकी बात का क्या मतलब है.. और क्या ये मुमकिन है कि कोई हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का कल्चर एकदम अलग कर ले. क्या आप हिन्दुस्तानियों के दिलों पे पाबंदी लगाना चाहते हैं? और क्या ये मुमकिन है?.. क्या ये मुमकिन है कि कोई चीज़ आपको अच्छी लगे और आप वो ना करें. तालिबान सरकार तो है नहीं देश में कि हम आतिफ़ असलम सुनना चाहें और आप कहें नहीं इस पर पाबंदी है. आतिफ़ असलम को कोई रोक भी ले नुसरत फ़तेह अली ख़ान को लोगों के दिमाग़ से कैसे निकाल पाओगे, क्या आप नूर जहां,इक़बाल बानो नैयारा नूर या आबिदा परवीन को किसी भारतीय संगीत प्रेमी के दिल से निकाल सकते हैं? क्या मेहँदी हसन और ग़ुलाम अली के दीवाने हिन्दुस्तान में ख़त्म हो जायेंगे? हो सकता है किसी को लगता हो लेकिन भारतीय प्रेमी-प्रेमिका बिना अहमद फ़राज़ की शाइरी के संजीदगी का रिश्ता नहीं बढाते. फ़ैज़, इक़बाल, जौन, जालिब..कोई किसी पर पाबंदी नहीं लगा सकता. आपको बुरा लगे या भला लगे लेकिन जिस सिन्धु घाटी सभ्यता पर सारे भारतीय नाज़ करते हैं उसका बड़ा हिस्सा भारत में नहीं बल्कि पाकिस्तान में है. बात सिर्फ़ इतनी सी है कि कल्चर का युद्ध से कोई लेना देना नहीं है.

युद्ध होगा या नहीं होगा ये तो वक़्त बतायेगा और इस पर जो भी ज़रूरी कार्यवाही होगी वो भारतीय फ़ौज करेगी और हमें उसपर पूरा भरोसा भी है लेकिन हालात चाहे जो हों कोशिश हमें हमेशा शान्ति की करनी चाहिए. क्यूँकि आख़िर तो शान्ति ही ज़रूरी है. ये अलग बात है कि युद्ध की स्थिति आ जाए और युद्ध हो जाए और मेरा ख़याल है तब युद्ध करना पड़ेगा लेकिन युद्ध कभी अच्छा नहीं होता और कभी भी कोई भी सच्चा देशभक्त युद्ध की वक़ालत नहीं कर सकता..अगर वो कर रहा है तो उसे अभी देश को और समझने की ज़रुरत है.

(अरग़वान रब्बही)

(नोट: लेखक के विचार निजी हैं)