आज़मगढ़ (उप्र) : मुसलमानों को आतंक से जोड़कर देखने वाले और उनसे से देशभक्ति का सर्टिफिकेट मांगने में मसरूफ लोग शायद इस बात से बेखबर हैं कि महज 25 साल का मुस्लिम नौजवान बॉर्डर पर दुश्मन की गोली खाकर देश पर जान न्यौछावर कर चुका है |
रिज़ाजुद्दीन खान दानिश कल कश्मीर बार्डर पर दुश्मन से लड़ते हुए देश के लिए क़ुर्बान हो गये | रिज़ाजुद्दीन खान दानिश उत्तर प्रदेश आजमगढ़ के कोल्हापुर के रहने वाले थे | आज़मगढ़ वही शहर है जिसे मीडिया आतंक का गढ़ कहती नहीं हिचकिचाती थी | लेकिन आज जब उसी आज़मगढ़ का एक मुस्लिम नौजवान देश के लिए शहीद हो गया तो मीडिया में गहरा सन्नाटा है |
दानिश खान कश्मीर में तैनात थे। दानिश उसी देश के सैनिकों की गोली लगने से शहीद हुए हैं | जहाँ बात बात पर मुसलमानों को भेजने की धमकी दी जाती है | अपने देश के लिए पाकिस्तानी सेना के हाथों मारे जाने वाले इस मुसलिम सैनिक पर मीडिया और सोशल मीडिया खामोश है | ये खामोशी जताती है कि मुसलमान इस देश के लिए जान भी दे दें लेकिन उनकी देशभक्ति हमेशा ही संदिग्ध ही रहेगी|
इस सैनिक की शहादत पर इतना गहरा सन्नाटा क्यों है| ये सन्नाटा बात-बात पर भारतीयों को पाकिस्तान चले जाने की नसीहत देने वाले राजनेताओं की सोच पर सवाल खड़े करता है | वैसे दानिश पहला मुस्लिम नाम नहीं है जिसने इस देश के लिए अपने जान गवाई हो | इससे पहले भी वीर अब्दुल हमीद ब्रिगेडियर उस्मान ऐसे कई सैनिक अपने वतन के लिए दुश्मनों से लड़े है |
शहीद दानिश खान को आखिरी सलामी उनके गाँव ‘कल्हापुर’ में दी गयी | बेहद दुःखद है कि शहीद को न तो बंदूक द्वारा सलामी दी गयी और इस मौक़े बड़े अधिकारियों में सिर्फ SDM मौजूद थे | अल्पसंख्यकों के हित की बात कर उनका वोट हासिल करने वाले अखिलेश यादव सरकार का कोई मंत्री तो दूर प्रतिनिधि भी शहीद को आखिरी सलामी देने नहीं पहुंचा | एक मुस्लमान और बाकी नागरिकों में यही अंतर है | शहीद को सलाम, इंक़लाब ज़िंदाबाद, जय हिंद।
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