यह बात समझ से परे है कि इस फिल्म से पंजाब लफ्ज हटाने की मांग क्यों की जा रही है। अरे भई, ‘मिशन कश्मीर’ फिल्म बनी, ‘बॉम्बे’ बनी, ‘कलकत्ता-71’ बनी। यह सबकी सब फिल्में भी बहुत संवेदनशील ज्वलंत मुद्दों पर बनीं थी लेकिन कभी इनका नाम बदलने विवाद नहीं हुआ। आने वाले दिनों में पंजाब में एक फिल्म रिलीज होने जा रही है जिसका नाम है ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन अमृतसर’। अब कल को यह कह दिया जाएगा कि इस फिल्म के नाम से अमृतसर शब्द हटा दो। मैंने खुद वर्ष 2008 में एक पंजाबी फिल्म में काम किया था जिसका नाम ‘पंजाब’ था। यह फिल्म आरक्षण के खिलाफ थी। अब आप कहेंगे कि इस फिल्म का नाम पंजाब क्यों रखा गया।
देश में इस समय बहुत ही अलोकतांत्रिक माहौल है। मेरा मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में हर इंसान को अपनी बात कहने का हक है। पंजाब की समस्याएं किसी से ढकी-छिपी नहीं हैं। कौन नहीं जानता कि पंजाब और पंजाबियत को ड्रग्स माफिया ने बरबादी के कगार पर खड़ा कर दिया है। यह समस्या कोई आज की नहीं है। बीते 30 सालों से पंजाब नशे की गिरफ्त में है। जिस भी हुकूमत ने पंजाब पर राज किया, उसके सिपहसालार नशों के कारोबार से वाकिफ रहे हैं लेकिन अफसोस कि कोई हुकूमत इस पर शिकंजा नहीं कस पाई। सियासतदानों की नाक के नीचे यह कारोबार फलता-फैलता रहा।